]हर थोड़ी देर में हमें भूख लगती है और हम फ्रिज खोलकर कुछ न कुछ खाने लगते हैं। जिंदा रहने के लिए शरीर को खाने की जरूरत होती है लेकिन कभी-कभी किसी वजह से हमें भूखा भी रहना पड़ता है। क्‍या आपने कभी सोचा है कि अगर आप खाना नहीं खाते हैं, तो इसका शरीर पर क्‍या असर पड़ता है?

भारत में 130 करोड़ की आबादी है जिसमें लगभग दो करोड़ लोग कुपोषण का शिकार हैं। ग्‍लोबल हंगर इंडेक्‍स 2019 में 117 देशों में भारत 30.3 स्‍कोर के साथ 102 नंबर पर था। 9.9 से कम स्‍कोर का मतलब है कि वहां भूखमरी कम है और 50 से ऊपर स्‍कोर का मतलब है कि वहां पर बहुत ज्‍यादा भूखमरी है। भारत में भूखमरी की हालत बहुत खराब है।

कुछ लोग वजन घटाने के लिए भूखे रहते हैं जबकि कुछ लोगों को दो वक्‍त की रोटी नसीब नहीं हो पाती है। भूखे रहने से कई मानसिक और शारीरिक परेशानियां हो जाती हैं जैसे कि कमजोरी, चक्‍कर आना, कुपोषण, विकास रूकना, डिप्रेशन और एंग्‍जायटी

गर्भावस्‍था में पोषण की कमी की वजह से प्रीमैच्‍योर डिलीवरी हो सकती है, शिशु लो बर्थ वेट हो सकता है और शिशु के दिमाग का साइज छोटा हो सकता है और कभी-कभी स्टिलबर्थ भी हो सकता है। जो लोग लंबे समय तक कुछ नहीं खाते हैं, उनके लिए भूखा रहना जानलेवा साबित हो सकता है।

इस आर्टिकल में हम आपको बता रहे हैं कि भूखा रहने के पीछे विज्ञान क्‍या कहता है और जब आप लंबे समय तक भूखे रहते हैं, तो शरीर पर इसका क्‍या प्रभाव पड़ता है।

  1. क्‍यों लगती है भूख?
  2. खाना खाने के बाद पेट भरा क्‍यों लगता है?
  3. कितनी देर तक भूखे रह सकते हैं
  4. लंबे समय तक भूखे रहने पर क्‍या होता है?
  5. शरीर पर भूख का क्‍या असर पड़ता है?
  6. क्‍या भूख से मर सकते हैं?

जब हमारे शरीर को कैलोरी या एनर्जी की जरूरत होती है, यह हमारे मस्तिष्‍क को संकेत देता है कि खाने का समय हो गया है इसलिए पेट में हलचल होने लगती है। इस तरह की भूख को होमियोस्टैटिक हंगर कहते हैं।

जब हमारे पेट का खाना पूरी तरह से एनर्जी में बदल जाता है, तब ब्‍लड शुगर और इंसुलिन का लेवल गिरना शुरू हो जाता है। ऐसा होने पर हंगर हार्मोन, घ्रेलिन (पेट में रिलीज) हाइपोथैलेमस को मैसेज भेजता है जो अपना काम करना शुरू कर देता है।

मस्तिष्‍क के मध्‍य में हाइपोथैलेमस एक छोटा-सा हिस्‍सा होता है जो शरीर के कार्यों जैसे कि स्‍लीप साइकिल को बनाए रखने, महत्‍वपूर्ण हार्मोंनों को रिलीज करने, ब्‍लड प्रेशर को बनाए रखने इत्‍यादि करता है।

हाइपोथैलेमस शरीर के अलग-अलग हिस्‍सों में कई हार्मोंनों को भेजता है जो शरीर को सही कार्य करने में मदद करता है। उदाहरण के तौर हाइपोथैलेमस शरीर की ग्रोथ के लिए जिम्‍मेदार हार्मोन को रिलीज करता है। ये बाद में पिट्यूटरी ग्‍लैंड पर काम करता है और शरीर के लिए जरूरी मात्रा में हार्मोन को रिलीज करता है।

जब हाइपोथैलेमस को घ्रेलिन से मैसेज मिलता है, वो सबसे ज्‍यादा शक्‍तिशाली ओरेक्सिजेनिक पेप्‍टाइड, न्‍यूरोपेप्‍टाइड के रिलीज को ट्रिगर करता है जिससे भूख उत्तेजित होती है।

एक और तरह की भूख होती है जिसे हेडोनिक हंगर कहते हैं, जो कुछ लोगों में प्रचलित है। इस भूख में लोगों को शरीर को खाने की जरूरत न लगने पर भी कुछ खाने की जरूरत महसूस होती है। हेडोनिक हंगर कैलोरी से ज्‍यादा मन को शांत करने के लिए होती है।

मान लीजिए कि एक व्‍यक्‍ति ने 12 या इससे ज्‍यादा घंटे से कुछ नहीं खाया है, उसे होमियोस्‍टैटिक हंगर महसूस होगी जबकि जब व्‍यक्‍ति को खाना खाने के बाद मीठा खाने का मन करता है, उसे हेडोनिक हंगर कहते हैं।

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जब हम खाने से अपने पेट को भरना शुरू करते हैं, तब शरीर में सिग्‍नलों की अन्‍य सीरीज बनना शुरू हो जाती है जो हमे ओवरईटिंग से बचाए रखते हैं। जब मुंह, पेट और आंत संतुष्ट होने की प्रत‍िक्रिया देता है, तब शरीर के फैट टिश्‍यू लेप्टिन हार्मोन रिलीज करता है।

लेप्टिन दिमाग को मैसेज भेजता है कि शरीर संतुष्‍ट हो चुका है और अब खाना बंद कर देना चाहिए। तब हाइपोथैलेमस न्‍यूरोपेप्‍टाइड वाई को बनाना बंद कर देता है और खून में भूख को दबाने वाले सबसे शक्‍तिशाली हार्मोन एनोरेक्सिजेनिक, पेप्‍टाइड प्रूपिओमेलानोकोर्टिन को रिलीज करना शुरू कर देता है।

पेप्‍टाइड प्रूपिओमेलानोकोर्टिन रिलीज होने से पहले हाइपोथैलेमस इंसुलिन और ब्‍लड शुगर लेवल को चैक करता है। इस प्रक्रिया में थोड़ा ज्‍यादा समय लगता है। आमतौर पर ज्‍यादा खाने के बाद असहज महसूस होगा।

खाने से शरीर को एनर्जी मिलती है जो जिंदा रहने के लिए जरूरी है। जब हम खाना खाना बंद कर देते हैं, तब शरीर में स्‍टोर हुए फैट और प्रोटीन का इस्‍तेमाल कर मस्तिष्‍क के लिए ग्‍लूकोज की रोजाना की जरूरत को पूरा करने लगता है।

आपकी बॉडी 6 घंटे तक बिना खाए ठीक तरह से रह सकता है। इसके बाद शरीर को ठीक तरह से काम करने के लिए स्‍टोर की गई एनर्जी का इस्‍तेमाल करना शुरू कर देता है।

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शुरुआत में भूख का असर धीरे-धीरे महसूस होता है, शरीर खाने की कमी के साथ जूझने की कोशिश करता है लेकिन धीरे-धीरे और थोड़ी देर में हार जाता है।

भूख लगने के पहले 6 घंटे

भूख लगने के पहले 6 घंटे में शरीर खाने के बिना भी नॉर्मल रहता है क्‍यों‍कि यह ग्‍लाइकोजन को ग्‍लूकोज में तोड़ता है और जब शरीर की कोशिकाओं को इसकी जरूरत पड़ती है, तब ऐसा करता है।

हालांकि, एनर्जी का लगभग 25 पर्सेंट ग्‍लाइकोजन से बनता है जिसे मस्तिष्‍क द्वारा इस्‍तेमाल किया जाता है जबकि बाकी की मांसपेशीय ऊतक और लाल रक्‍त कोशिकाएं आराम पर चली जाती हैं।

6 घंटे के बाद स्‍टोर किया गया ग्‍लाइकोजन खत्‍म हो जाता है और शरीर के पास एनर्जी बनाने का कोई रास्‍ता नहीं होता है, इसलिए आपको भूख महसूस होने लगती है।

6 से 71 घंटे के अंदर

छठे घंटे से अगले 72 घंटों में, बॉडी कीटोसिस के स्‍टेज में रहता है जहां शरीर व्रत रखने के लिए खुश को तैयार करने की कोशिश करता है। चूंकि, इस समय शरीर में ग्‍लूकोज बहुत कम बचता है इसलिए बॉडी पहले से मौजूद फैट से एनर्जी बनाने लगता है।

हालांकि, फैट लॉन्‍ग-चेन फैटी एसिडों में टूटता है जो मस्तिष्‍क द्वारा इस्‍तेमाल किया जा सकता है। मस्तिष्‍क लॉन्‍ग-चेन फैटी एसिडों को घुसने की अनुमति नहीं देता है।

जब शरीर में कोई ग्‍लूकोज नहीं बचता है और फैट ब्‍लड ब्रेन बैरियर को पार करने के लिए बहुत बड़े हो जाते हैं, मस्तिष्‍क खुद की मरम्‍मम करना शुरू कर देता है। इसलिए एनर्जी पाने के लिए मस्तिष्‍क कीटोन बॉडीज का इस्‍तेमाल करना शुरू कर देता है। चूंकि, कीटोंस मस्तिश्‍क की 75 पर्सेंट जरूरत को ही पूरा कर सकता है, मस्तिष्‍क ग्‍लूकोज की मांग करने लगता है। ग्‍लूकोज न होने पर दिमाग की बौद्धिक क्षमता बिगड़ने लगती है।

72 घंटों के बाद

भूख लगने के 72 घंटों के बाद मस्तिष्‍क प्रोटीन को तोड़ना शुरू कर देता है क्‍योंकि अब सिर्फ कीटोंस पर जिंदा नहीं रहा जा सकता है। शरीर प्रोटीन को एमीनो एसिडों में तोड़ने लगता है जो बाद में ग्‍लूकोज में बदल जाता है ताकि मस्तिष्‍क की ग्‍लूकोज की जरूरत को पूरा किया जा सके।

हालांकि, प्रोटीन को तोड़ने की प्रक्रिया में शरीर अपने ही मसल मास को खत्‍म करना शुरू कर देता है। इस समय बॉडी फैट की कमी दिखने लगती है। महिलाओं में मसल मास के टूटने से मासिक चक्र बंद हो सकता है।

इसके बाद अन्‍य स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याएं जैसे कि बोन डेंसिटी खत्‍म होना, बदन दर्द और लिबिडो कम होना शुरू हो जाता है।

खाना खाए बिना, शरीर में सभी विटामिनों और पोषक तत्‍वों की कमी होने लगती है जिससे अगले एक से दो हफ्तों में शरीर का इम्‍यून सिस्‍टम कमजोर हो जाता है। इम्‍यूनिटी कमजोर होने पर शरीर सभी तरह की बीमारियों की चपेट में आ सकता है और कुछ चीजें जानलेवा भी साबित हो सकती हैं।

दो हफ्ते के बाद

अगर कोई इंसान दो हफ्ते तक भूखा रह भी ले और फिर भी कुछ न खाए, तो शरीर सारे ग्‍लूकागोन, फैट, टिश्‍यू और मसल मास के खत्‍म होने तक एनर्जी के सभी स्रोतों का पूरा इस्‍तेमाल करता है। अगर भूखा इंसान अब भी कुछ न खाए तो वो मर सकता है।

तीसरे हफ्ते के बाद भूखा इंसान आमतौर पर कार्डियक एरिदमिया या हार्ट, डायफ्राम और शरीर में ऊतकों के घटने की वजह से हार्ट अटैक का शिकार हो सकता है। इन्‍हें मल्‍टीपल ऑर्गन फेलियर तक हो सकता है। एनोरेक्सिया नर्वोसा से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति में भी यह चीजें देखी जा सकती हैं। यह भोजन संबंधी विकार है जिसमें व्‍यक्‍ति का वजन बहुत कम हो जाता है।

हर इंसान को भूख अलग तरह से प्रभावित कर सकती है। बच्‍चों और वयस्‍कों में भूख से कई शारीरिक और मानसिक दिक्‍कतें पैदा हो सकती हैं। कम समय तक होने वाले नुकसान हैं :

लंबे समय तक पड़ने वाले प्रभाव हैं :

  • कुपोषण
  • अपर्याप्‍त पोषण की वजह से बच्‍चे का विकास रूकना
  • लंबाई के हिसाब से बच्‍चे का वजन कम होना
  • बौद्धिक क्षमता कमजोर होना
  • फैट या मसल मास का कम होना नजर आना
  • थायराइड ग्रंथि का काम न कर पाना
  • पोटेशियम की कमी
  • एनीमिया
  • शरीर का तापमान गिरना-बढ़ना
  • डिप्रेशन
  • एंग्‍जायटी
  • टॉक्सिक स्‍ट्रेस
  • हार्ट अटैक
  • मल्‍टीपल ऑर्गन फेलियर
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ऐसा सामने आया है कि 3 हफ्ते तक या 70 दिनों तक भूखे रहने से जान जा सकती है। जिंदा रहने की संभावना, इस बात पर निर्भर करती है भूखे रहने के दौरान आपने कितनी मात्रा में पानी पिया है और शरीर में फैट की कितनी मात्रा है।

नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन, अमेरिका की की नेशनल इंस्‍टीट्यूट ऑफ हेल्‍थ का कहना है कि शरीर बिना पानी और खाने के 8 से 21 दिनों तक जिंदा रह सकता है। हालांकि, अगर कोई इंसान पर्याप्‍त पानी पिएं तो वो एक से दो महीने तक जिंदा रह सकता है।

न्‍यूट्रिशियन जरनल में प्रकाशित स्‍टडी के मुताबिक एक इंसान को जिंदा रहने के लिए कुछ न्यूनतम बॉडी मास इंडेक्स की जरूरत होती है। जरनल के मुताबिक जिंदा रहने के लिए एक पुरुष को 13 से ज्‍यादा और महिला को 11 से ज्‍यादा बीएमआई की जरूरत होती है। 18.50 से 24.99 के बीच के बीएमआई की रेंज को नॉर्मल माना जाता है।

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