बेल्जियम स्थित गेंट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने बुढ़ापे से जुड़े अंधेपन के लिए एक भरोसेमंद इलाज ढूंढने का दावा किया है। रेटिना का केंद्रीय भाग मैक्युला आंखों के साफ देखने की क्षमता के लिए जिम्मेदार होता है। वृद्धावस्था में कई लोगों का मैक्युला प्रभावित होता है। मैक्युलर डीजेनरेशन यानी मैक्युला के क्षतिग्रस्त होने के कारण होने वाला अंधापन बढ़ती उम्र या कहें 65 या उससे ज्यादा उम्र के लोगों में पाई जाने वाली आंख की एक सामान्य बीमारी है। बताया जाता है कि 75 वर्ष से ऊपर के 30 प्रतिशत बुजुर्ग मैक्युलर डीजेनरेशन से ग्रस्त होते हैं। दुर्भाग्य की बात यह है कि इस बीमारी का अभी तक कोई प्रभावी इलाज नहीं मिल पाया है। हालांकि, अब गेंट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने आई ड्रॉप के रूप में एक संभावित इलाज विकसित किया है, जो बुढ़ापे में होने वाले ब्लाइंडनेस डिसीज का जड़ से उपचार करने का काम करता है।
वैज्ञानिकों ने बताया है कि जैसे-जैसे हमारी उम्र बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे शरीर में ग्लाइकेटिड प्रोटीन इकट्ठा होने लगते हैं। ये प्रोटीन एक लोकल इन्फ्लेमेशन पैदा करने और वाहिकाओं तथा न्यूरॉन्स को डैमेज करने का काम करते हैं। आयु से संबंधित मैक्युलर डीजेनरेशन में ग्लाइकेडिट प्रोटीन आंख के रेटिना में इकट्ठा हो जाते हैं। इससे मरीजों को पढ़ने में दिक्कतें होने लगती हैं, क्योंकि साफ दिखने के बजाय काले धब्बे दिखते हैं या अन्य प्रकार के डिस्टॉर्शन महसूस होते हैं। ऑफ्थोमोलॉजिस्ट यानी आंखों के विशेषज्ञ इस कंडीशन को आसानी से पहचान लेते हैं। आगे चलकर ये डॉट्स या धब्बे आपस में मिल जाते हैं और आयु संबंधी 'ड्राई' मैक्युलर डीजेनरेशन की वजह बनते हैं। इससे मरीज आंशिक रूप से अंधा हो जाता है और उसके पढ़ने की क्षमता पूरी तरह चली जाती है। अभी तक ऐसे पीड़ित और उनका इलाज कर रहे आंखों के विशेषज्ञ इस कंडीशन का कोई प्रभावी इलाज नहीं होने के चलते इसका उपचार करने में असमर्थ थे।
हालांकि, गेंट यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों द्वारा तैयार किए गए आई ड्रॉप को चूहों पर आजमाने के बाद इस बीमारी का इलाज मिलने की उम्मीद जगी है। इस आई ड्रॉप में वैज्ञानिकों ने फ्रुक्टोसैमिन-3-काइनेस (एफएन3के) नामक प्रोटीन मिलाया है, जिसे गेंट के एक प्रतिष्ठित मेडिकल संस्थान वीआईबी ने तैयार किया था। अध्ययन के मुताबिक, एफएन3के एक प्राकृतिक प्रोटीन है जो शरीर में मौजूद प्रोटीनों के ग्लाइकेशन (सहसंयोजन) को नियंत्रित करने का काम करता है। इसकी मदद से तैयार किए आई ड्रॉप से शोधकर्ताओं ने चूहों में रेटीना स्पॉट्स को गायब करने में कामयाबी हासिल की है। उन्होंने प्रोटीन को इन जानवरों की आंखों में डाला था। जांच के दौरान पता चला कि प्रोटीन के प्रभाव के चलते चूहों की आंखों के रेटिना में पड़े काले धब्बे पूरी तरह दूर हो गए थे।
इस कामयाबी से उत्साहित वैज्ञानिक अब एफएन3के प्रोटीन युक्त आई ड्रॉप को इन्सानों पर आजमाने के लिए क्लिनिकल ट्रायल की तैयारी में जुट गए हैं। अगर इसमें भी वे कामयाब रहे तो यह उन करोड़ों लोगों के लिए वरदान की तरह होगा, जो बुढ़ापे से जुड़े मैक्युलर डीजेनरेशन के चलते अंधापन झेल रहे हैं। चलते-चलते बता दें कि इस महत्वपूर्ण खोज और इसके अध्ययन से जुड़े परिणामों को जर्नल ऑफ क्लिनिकल मेडिसिन नामक मेडिकल पत्रिका में प्रकाशित किया जा चुका है।
क्या है मैक्युलर डीजेनरेशन?
रेटीन का केंद्रीय हिस्सा होने के चलते मैक्युला आंख के लिए महत्वूपूर्ण होता है। यह रेटीना के पास एक छोटे से निशान के रूप में दिखाई देता है। मैक्युला हमारी आंख की सीध में आने वाली किसी भी वस्तु को देखने में मदद करता है। जब उसकी इस क्षमता को क्षति पहुंचती है तो इससे एक सामान्य आंख की बीमारी हो जाती है, जिसे मैक्युलर डीजेनरेशन कहते हैं। मेडिकल जानकारों के मुताबिक, इस कंडीशन के चलते कुछ लोग अंधेपन का भी शिकार हो सकते हैं, विशेषकर बुजुर्ग।
मैक्युलर डीजेनरेशन दो प्रकार का होता है, सूखा (ड्राई) और गीला (वेट)। यह बीमारी होने पर पीड़ित को निम्नलिखित लक्षणों का सामना करना पड़ सकता है-
- आंखें लाल होना या उनमें दर्द होना
- आंखों के सामने कोई छाया या काला पर्दा सा दिखना
- सीधी रेखाएं टेढ़ी-मेढ़ी दिखना
- धुंधला या ठीक से न दिखना
- वस्तुओं का आकार सामान्य से छोटा दिखाई देना
- कभी धुंधला तो कभी साफ दिखना
- मतिभ्रम या ऐसी चीजें देखना जो मौजूद नहीं हैं
- सामने की वस्तुओं को देखने में दिक्कत होना
- अंधापन या आंखों का कमजोर होना