एस्प्रिन दवा का कम से कम सेवन करने वाले लोगों के लिए अच्छी खबर है। शोधकर्ताओं को क्रॉनिक वायरल हेपेटाइटिस लिवर इन्फेक्शन और एस्प्रिन दवा के प्रभाव से जुड़े अनजान तथ्य का पता चला है। जानी-मानी स्वास्थ्य पत्रिका ‘न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, जो लोग एस्प्रिन दवा का इस्तेमाल कम से कम या बिल्कुल नहीं करते हैं, उनमें लिवर कैंसर का खतरा भी कम होता है। रिपोर्ट में एक अध्ययन के हवाले से बताया गया कि इसमें शामिल लोगों में से जिन्होंने एस्प्रिन की कम खुराक (प्रतिदिन 163 मिलीग्राम से कम) ली थी, उनमें लिवर कैंसर होने या लिवर से संबंधित बीमारी से मरने की आशंका 31 प्रतिशत तक कम थी।

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  1. एस्प्रिन क्या है?
  2. क्या है क्रॉनिक वायरल हेपेटाइटिस?
  3. जितनी कम खुराक, उतना ज्यादा फायदा

एस्प्रिन एक दवा है। इसका इस्तेमाल बुखारसिरदर्द और जोड़ों के दर्द (अर्थराल्जिया) से बचाव के लिए किया जाता है। इसके अलावा दांतों में होने वाला दर्द और गठिया के इलाज में भी एस्प्रिन लेने की सलाह दी जाती है।

myUpchar के डॉक्टरों ने अपने कई वर्षों की शोध के बाद आयुर्वेद की 100% असली और शुद्ध जड़ी-बूटियों का उपयोग करके myUpchar Ayurveda Yakritas Capsule बनाया है। इस आयुर्वेदिक दवा को हमारे डॉक्टरों ने कई लाख लोगों को लिवर से जुड़ी समस्या (फैटी लिवर, पाचन तंत्र में कमजोरी) में सुझाया है, जिससे उनको अच्छे प्रभाव देखने को मिले हैं।

हेपेटाइटिस बी एक वायरस है जो लिवर को संक्रमित करता है। इससे ग्रस्त होने वाले अधिकांश लोग कुछ समय बाद बेहतर महूसस करने लगते हैं। ऐसे में इस वायरस से होने वाली समस्या को एक्यूट हेपेटाइटिस कहा जाता है। लेकिन जब वायरस का संक्रमण लंबे वक्त तक बना रहता है, तो उसे क्रॉनिक हेपेटाइटिस बी कहा जाता है।

मेडिकल विशेषज्ञों के मुताबिक, शिशुओं और छोटे बच्चों को यह समस्या होने की अधिक संभावना रहती है। वे ये भी बताते हैं कि हो सकता है कि क्रॉनिक हेपेटाइटिस बी के लक्षण दिखाई न दें और अगर दिखाई दें तो फ्लू जैसे जानने में आएं। ऐसे में पीड़ित व्यक्ति अपने आसपास के लोगों को भी संक्रमित कर सकता है।

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इस शोध में शामिल शोधकर्ताओं की टीम में स्वीडन के कैरोलिन इंस्टीट्यूट और ओरेब्रो यूनिवर्सिटी अस्पताल के वैज्ञानिक शामिल थे। इनके अलावा अमेरिका के मैसाच्युसेट्स के जांचकर्ताओं की टीम भी इसमें शामिल थी। विश्लेषण के आधार पर किए गए इस अध्ययन में 50,275 वयस्कों का मूल्यांकन किया गया।

शोध के परिणामों से पता चला कि लंबे समय तक एस्प्रिन दवा की कम खुराक लेने से (लिवर कैंसर के मामले में) अधिक फायदा मिलता है। शोधकर्ताओं की मानें तो छोटे या अल्प समय (3 महीने से एक साल) की तुलना में एक साल से तीन साल के बीच एस्प्रिन की कम खुराक लेने से लिवर कैंसर का खतरा 10 प्रतिशत तक कम हो सकता है। वहीं, तीन साल से पांच साल के बीच यह खतरा 34 प्रतिशत और पांच साल या उससे अधिक समय तक एस्प्रिन के कम मात्रा में किए गए सेवन से लिवर कैंसर का खतरा 43 प्रतिशत तक कम हो सकता है।

इतना ही नहीं, लिवर से जुड़ी अन्य प्रकार की बीमारियों से होने वाली मृत्यु दर में भी अनुमानित कमी देखी गई। आंकड़ों के आधार पर बताया गया कि जिन लोगों (11 प्रतिशत) ने दस सालों तक एस्प्रिन का सेवन किया था, उनके मुकाबले उन लोगों (18 प्रतिशत) में लिवर कैंसर से मृत्यु का जोखिम 27 प्रतिशत कम था, जो एस्प्रिन का कम या बिल्कुल सेवन नहीं करते थे।

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