ल्यूकेमिया और लिम्फोमा जैसे कैंसरों के इलाज के लिए इंब्रूवीका दवा का इस्तेमाल काफी समय से हो रहा है। अमेरिका में इस कैंसर ड्रग का उपयोग काफी ज्यादा होता है। लेकिन यहां की एक दवा कंपनी इलाई लिली का कहना है कि उसकी एक दवा लोक्सो-305 इस प्रकार के कैंसरों के खिलाफ ज्यादा सुरक्षित, सक्षम और प्रभावी हो सकती है। इसे साबित करने के लिए कंपनी ने ड्रग को सीधा ही टेस्ट करने का एलान कर दिया है, जिसे कई मेडिकल विशेषज्ञों ने अजीब बताया है। खबर के मुताबिक, घोषणा में इलाई लिली ने कहा है कि वह अगले साल इस दवा को दो अंतिम चरण के क्लिनिकल ट्रायलों के तहत आजमाएगी। मकसद है दवा को इंब्रूवीका से बेहतर साबित करना।
लोक्सो-305 को लेकर इलाई लिली के इस विश्वास की वजह को पूर्व में किए गए एक ट्रायल से जोड़कर देखा जा रहा है। सोमवार को अमेरिकन सोसायटी ऑफ हीमाटोलॉजी की बैठक में इस टेस्ट का डेटा कंपनी की तरफ से पेश किया गया था। इसमें उसने बताया कि ट्रायल में लोक्सो-305 का सेवन करने के बाद 52 प्रतिशतों मेंटल सेल लिम्फोमा (एमसीएल) के मरीजों के कैंसर ने रेस्पॉन्स दिया था। वहीं, क्रोनिक लिम्फोसाइटिक ल्यूकेमिया (सीएलएल) के 63 प्रतिशत मरीजों ने दवा के प्रभाव के चलते रेस्पॉन्स दिया था। कंपनी का मानना है कि दोनों कैंसरों के मरीजों में दिखी प्रतिक्रिया दर प्रोत्साहित करने वाली है, क्योंकि प्रतिभागी पीड़ितों को बुखार था और उनके पिछले ट्रीटमेंट सफल नहीं हुए थे।
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अध्ययन से जुड़े शोधकर्ताओं और विशेषज्ञों का कहना है कि मरीजों को लंबे समय तक ट्रैक करके इन रेस्पॉन्स को और बेहतर किया जा सकता है। अध्ययन में इसके साक्ष्य मिले हैं। ट्रायल में शामिल 139 कैंसर मरीजों का जब औसतन छह महीनों तक फॉलोअप किया गया तो उनमें दवा का प्रभाव और अधिक पाया गया था। वहीं, 25 मरीजों में दस महीने या उससे ज्यादा समय के फॉलोअप के बाद रेस्पॉन्स रेट 84 प्रतिशत तक बढ़ गया था। स्थानीय मीडिया रिपोर्टों की मानें तो कई हेल्थ एक्सपर्ट भी लोक्सो-305 को कैंसर मरीजों के लिए अच्छा विकल्प मान रहे हैं। न्यूयॉर्क स्थित चर्चित मेडिकल सेंटर लैंगोन हेल्थ के हीमाटोलॉजिस्ट और ओन्कोलॉजिस्ट कैथरीन डीफनबेक का कहना है, 'यह काफी उत्साहजनक है, क्योंकि जिन मरीजों का (इंब्रूवीका या अन्य दवाओं से) इलाज नहीं हो पाता, उनके पास ज्यादा विकल्प नहीं होते।'
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हालांकि इलाई लिली के ट्रायल में कुछ मरीजों में हृदय संबंधी दुष्प्रभाव या हेमरेज जैसे साइड इफेक्ट देखने को मिले हैं। कैथरीन ने बताया कि इंब्रूवीका के इस्तेमाल में भी ये दुष्प्रभाव देखने को मिलते हैं। इसके अलावा, दो मरीजों में एट्रियल फाइब्रिलेशन के मामले भी देखने को मिले थे। हालांकि बाद में कहा गया कि उनका संबंध दवा के इस्तेमाल से नहीं था। इसके अलावा, 20 प्रतिशत मरीजों में थकान, 17 प्रतिशत में डायरिया और 13 प्रतिशत में खरोंच होने जैसे लक्षण देखने को मिले थे। लेकिन कुल मिलाकर लोक्सो 305 को इंब्रूवीका की अपेक्षा ज्यादा सहनीय पाया गया है, जिसके लेबल पर यह डॉक्टरी सलाह छपी होती है कि इसे लेने वाले मरीजों में हेमरेज और हार्ट एरिथमिया जैसे साइड इफेक्ट हो सकते हैं, लिहाजा उनकी निगरानी की जाए।
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कैसे काम करती है दवा?
इलाई लिली लोक्सो-305 की मूल निर्माता नहीं है। दरअसल यह दवा लोक्सो ओन्कोलॉजी नामक दवा कंपनी द्वारा बनाई गई थी। बाद में इलाई लिली ने दवा के अधिकार लोक्सो ओन्कोलॉडी से खरीद लिए थे। बहरहाल, लोक्सो के मुताबिक, इंब्रूवीका की तरह लोक्सो-305 भी शरीर में ब्रूटोन्स टाइरोसिन काइनेस (बीटीके) नाम के सिग्नलिंग प्रोटीन को ब्लॉक करने का काम करती है। माना जाता है कि सीसीएल और एमसीएस में यह प्रोटीन कैंसरकारी बी सेल्स को फैलाने में प्रमुख भूमिका निभाता है। दवा निर्माता की मानें तो लोक्सो-305 इस प्रोटीन को इंब्रूवीका और अन्य सीएलएल-एमसीएल रोधी दवाओं की तुलना में अलग प्रकार से बांधता है, जिससे कैंसर के खिलाफ बेहतर सक्षम और सुरक्षित परिणाम मिलते हैं। यह डेटा से भी पता चलता है कि जिन मरीजों का कैंसर एक विशेष म्यूटेशन डेवलेप कर चुका था, जो मौजूदा बीटीकी इनहिबिटर्स (ड्रग्स) के प्रभाव को कम कर देता है, उनमें भी लोक्सो-305 ने असर दिखाया है।