जापानी इन्सेफेलाइटिस वैक्सीन से पहले आपको जापानी इन्सेफेलाइटिस रोग के बारे में जानना होगा। यह रोग मुख्य रूप से एशियाई देशों में होता है। भारत में भी इसके कई मामले देखने को मिलते हैं। जापानी इन्सेफेलाइटिस एक वायरल संक्रमण है जो मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी को प्रभावित करता है और फ्लेविवायरस (flavivirus) प्रजाति के संक्रमित मच्छर के काटने से फैलता है।
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जापानी इन्सेफेलाइटिस वायरस से संक्रमित अधिकांश लोगों के शरीर में कोई लक्षण उभरकर दिखाई नहीं देते हैं, जबकि कुछ मामलों में मरीज को हल्के लक्षण महसूस होते हैं, जो अक्सर फ्लू के लक्षण समझ लिए जाते हैं। सामान्यतः जापानी इन्सेफेलाइटिस से प्रभावित हर 250 लोगों में से 1 व्यक्ति में गंभीर लक्षण हो सकते हैं। मरीज के मस्तिष्क में संक्रमण फैलने की वजह से ऐसा होता है। आमतौर पर गंभीर लक्षण संक्रमण होने के 5 से 15 दिनों के बाद दिखाई देते हैं। इस रोग में व्यक्ति को तेज बुखार, सिरदर्द, दौरे पड़ना, गर्दन में अकड़न, उल्टी आना, चक्कर आना, किसी चीज का भ्रम होना, मांसपेशियों को हिलाने में मुश्किल होना और लकवा पड़ना आदि लक्षण हो सकते हैं।
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सामान्यतः इस रोग से ग्रसित हर तीन व्यक्ति में से एक व्यक्ति की मृत्यु होने की संभावना काफी अधिक होती है। इतना ही नहीं इस रोग के गंभीर मामलों में कई बार व्यक्ति स्थाई रूप से विकलांग भी हो जाते हैं। हालांकि यह रोग मरीज को छूने या उसके संपर्क में रहने से नहीं फैलता है। जापानी इन्सेफेलाइटिस उस मच्छर के काटने से फैलता है, जो पहले से ही इस वायरस से संक्रमित होते हैं। जापानी एनसेफेलिटिस रोग का कोई इलाज उपलब्ध नहीं है।
यदि किसी व्यक्ति को यह संक्रमण हो जाए तो उपचार से केवल उसके लक्षणों में सुधार किया जा सकता है। जो एंटीबायोटिक दवाएं मौजूद है वो इस वायरस के खिलाफ प्रभावी नहीं होती हैं और इस वायरस के लिए किसी एंटी वायरल दवा की खोज अभी तक नहीं की गई है। इसका बचाव जापानी इन्सेफेलाइटिस वैक्सीन के माध्यम से ही किया जा सकता है।
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भारत सहित एशिया के ग्रामीण इलाकों में इस रोग के होने की संभावना बेहद अधिक होती है। इसलिए शिशु और वयस्कों को इस संक्रमण से सुरक्षित रखने के लिए ही जापानी इन्सेफेलाइटिस वैक्सीन दी जाती है।
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