माता-पिता बनने का सपना हर शादीशुदा कपल का होता है. कई पति-पत्नी आसानी से कंसीव कर लेते हैं, लेकिन कुछ तमाम कोशिशों के बादवजूद गर्भधारण नहीं कर पाते हैं. इस स्थिति को इनफर्टिलिटी यानी बांझपन कहा जाता है. तनाव, खराब खानपान, मेडिकल कंडीशन और असक्रिय जीवनशैली को बांझपन का मुख्य कारण माना गया है. यही वजह है कि आजकल अधिकतर कपल्स बांझपन का सामना कर रहे हैं.

आज इस लेख में हम बांझपन से जुड़े कुछ मिथक और उनकी सच्चाई के बारे में बता रहे हैं -

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  1. बांझपन से जुड़े मिथक
  2. सारांश
  3. बांझपन से जुड़े 5 मिथक के डॉक्टर

कई रिसर्च में साबित हुआ है कि जब लगातार एक वर्ष तक असुरक्षित यौन संबंध बनाने के बाद भी महिला गर्भवती नहीं हो पाती है, तो इसे बांझपन कहा जाता है. ऐसा तब हो सकता है, जब महिला या पुरुष साथी में गर्भावस्था को रोकने वाले कुछ कारक जिम्मेदार होते हैं.

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बांझपन लोगों को इतना प्रभावित कर देता है कि इसके बारे में कई अफवाहें फैल रही है और लोगों के बीच में मिथक बनकर प्रचलित हो रही हैं. बांझपन से जुड़े ऐसे ही कुछ मिथक इस प्रकार हैं -

  1. आपको बस आराम करने की जरूरत है
  2. उम्र सिर्फ महिलाओं की प्रजनन क्षमता को प्रभावित करती है, पुरुषों की नहीं
  3. सेहत से प्रजनन क्षमता प्रभावित नहीं होती है
  4. बांझपन की समस्या सिर्फ महिलाओं को होती है
  5. अगर पहले से ही संतान है, तो बांझपन के बारे में चिंता करने की जरूरत नहीं है

आपको बस आराम करने की जरूरत है

सच: यह समाज में फैला बड़ा मिथ है. आराम करके कभी भी बांझपन को ठीक नहीं किया जा सकता है. बांझपन एक चिकित्सा स्थिति होती है. इसलिए, इसका इलाज करवाना जरूरी होता है. हालांकि, कई बार तनाव के कारण बांझपन के लक्षण नजर आते हैं. ऐसे में आराम करने से तनाव कम होगा और आप रिलैक्स फील करेंगे, लेकिन आराम करने से बांझपन का इलाज संभव नहीं होता है.

(और पढ़ें - पुरुषों में बांझपन दूर करने के घरेलू उपाय)

उम्र सिर्फ महिलाओं की प्रजनन क्षमता को प्रभावित करती है, पुरुषों की नहीं

सच: हमारे समाज में बांझपन को लेकर यह प्रमुख मिथक है, जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं होता है. उम्र बढ़ने पर महिलाओं के साथ ही पुरुषों की प्रजनन क्षमता भी प्रभावित होती है. जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, पुरुषों में भी प्रजनन क्षमता कम होने लगती है.

आपको बता दें कि महिलाओं में 32 से 37 वर्ष की आयु से प्रजनन क्षमता में कमी आनी शुरू हो सकती है. इसके साथ ही पुरुषों में 40 वर्ष की आयु के बाद प्रजनन क्षमता पर असर पड़ने लगता है. दरअसल, बढ़ती उम्र में पुरुषों में स्पर्म काउंट में कमी आने लगती है. वहीं, शुक्राणुओं की गुणवत्ता और गतिशीलता भी कम होने लगती है. इसलिए, बढ़ती उम्र पुरुष और महिला दोनों में बांझपन का कारण बन सकती है.

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सेहत से प्रजनन क्षमता प्रभावित नहीं होती है

सच: कई लोगों को अक्सर कहते सुना होगा कि आपकी स्वास्थ्य स्थिति का प्रजनन क्षमता या बांझपन से कोई लेना-देना नहीं होता है, जबकि ऐसा कहना बिल्कुल गलत है. स्वास्थ्य स्थिति या मेडिकल कंडीशन बांझपन का एक मुख्य कारण हो सकता है. 

स्वास्थ्य पुरुषों और महिलाओं की प्रजनन क्षमता को काफी हद तक प्रभावित कर सकता है. जब कोई पुरुष या महिला गंभीर बीमारी से जूझ रही हो, तो इसका सीधा असर प्रजनन क्षमता पर पड़ सकता है. ऐसे में स्वस्थ रहने से प्रजनन क्षमता को बढ़ाया जा सकता है. इसलिए, अगर कोई दंपती गर्भावस्था की प्लानिंग कर रही है, तो पहले एक बार अपना हेल्थ चेकअप जरूर करवाएं.

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बांझपन की समस्या सिर्फ महिलाओं को होती है

सच: प्राचीन काल से ही महिलाओं को बांझपन के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है. जब कोई महिला गर्भधारण नहीं कर पाती है, तो इसके लिए सिर्फ उसी को दोष दिया जाता है, जबकि यह गलत है. पुरुष साथी की प्रजनन क्षमता कमजोर होने से भी महिला के लिए गर्भवती होना संभव नहीं होता है.

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अगर पहले से ही संतान है, तो बांझपन के बारे में चिंता करने की जरूरत नहीं है

सच: कई बार दंपती एक शिशु को जन्म देने के बाद दूसरी बार कंसीव करने में सफल नहीं हो पाती है. ऐसे में कहा जाता है कि पहला बच्चा हो गया है, तो बांझपन के बारे में अधिक चिंतित होने की जरूरत नहीं है. अगर पहला बच्चा है, तो दूसरी बार भी संतान जरूरी होगी. बांझपन की समस्या परेशान नहीं करेगी, जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं है. एक बच्चा होने के बाद अगली बार बांझपन हो सकता है. इसे सेकेंडरी इनफर्टिलिटी कहा जाता है.

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बांझपन की समस्या महिला और पुरुषों दोनों में से किसी को भी हो सकती है. इसकी वजह से कपल गर्भधारण नहीं कर पाते हैं. बांझपन इतना सामान्य हो गया है कि इसके बारे में लोगों के बीच कई मिथक प्रचलित हैं, जिनका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है. अगर कोई भी इनफर्टिलिटी का सामना कर रहा है, तो मिथकों पर ध्यान देने की जगह डॉक्टर से संपर्क करें.

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