नदियों में बढ़ता प्रदूषण कोई नई बात नहीं, बल्कि हमारे देश में गंगा-यमुना जैसी बड़ी नदियां आज प्रदूषण की मार झेल रही हैं। इंसान की खराब नीतियों का ही नतीजा है कि आज विशालकाय समुद्र भी प्रदूषण से अछूता नहीं। समुद्र का पानी पीने योग्य नहीं है और नदियां पेयजल का बड़ा स्रोत हैं। बावजूद इसके इंसान ही इन नदियों का काल बन अपनी समस्या दोगुनी करने चला है। जिसका ताजा उदाहरण उत्तर प्रदेश के मेरठ से निकलने वाली काली नदी है। काली नदी में बढ़ता प्रदूषण आसपास के गांवों में बांझपन का खतरा बढ़ाने लगा है, जो बेहद गंभीर है।

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काली से काल बनी नदी
करीब चालीस साल पहले, काली नदी 1200 गांवों के लोगों के लिए एक वरदान थी, लेकिन आज वो अभिशाप बन चुकी है। काली नदी, जो उत्तर प्रदेश में मुजफ्फरनगर जिले के अंतवाड़ा से शुरू होती है और कन्नौज में खत्म होती है, उसमें अब पानी के अलावा कई गंभीर बीमारियों का समावेश हो गया है। जो इस प्रकार हैं -

काली नदी उत्तर भारत की सबसे अधिक प्रदूषित नदियों में से एक है। प्रदूषण के चलते नदी के पानी की ऊपरी परत गंभीर रूप से प्रभावित हुई है। खासकर नदी का तल एक किलोमीटर के दायरे में सबसे खराब है। इसकी एक वजह है नदी में साफ पानी बिल्कुल नहीं बचा है। क्योंकि काली नदी में नाले, औद्योगिक क्षेत्र से आने वाला कैमिकल और बूचड़खानों का गंदा पानी आकर मिल रहा है।

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काली नदी ने बढ़ाया बांझपन

  • दुख की बात है कि काली नदी का जानलेवा प्रदूषण केवल गंभीर बीमारियों (कैंसर और हृदय रोग) को ही नहीं बढ़ा रहा है, बल्कि बांझपन के खतरे को बढ़ाकर यहां लोगों के अस्तित्व को ही खतरे में डाल रहा है।
  • मेरठ के आसपास के गांवों में, जहां से काली नदी बहती है वहां करीब 80 प्रतिशत परिवारों में बांझपन सबसे प्रमुख और बड़ी समस्या बनी हुई है।

डॉक्टर की क्या राय है?
बांझपन की समस्या को लेकर कुछ डॉक्टरों का कहना है, चूंकि पिछले कई दशकों से पुरुषों के अंदर शुक्राणु की संख्या या उपलब्धता कम हुई है। इसलिए ये बांझपन का एक कारण हो सकता है। वहीं डीएनए रिपोर्ट से भी पता चला है कि यहां रह रहे अधिकतर लोगों में शुक्राणुओं की कार्यक्षमता क्षतिग्रस्त हो रही है। यही कारण है कि यहां के लोगों में बांझपन की स्थिति पैदा हुई है। 

डॉक्टरों के मुताबिक लोगों में बांझपन का एक प्रमुख कारण काली नदी का पानी है, जो दूषित हो चुका है। काली नदी का प्रदूषित पानी अब युग्मकों (नई पीढी) को भी नष्ट कर रहा है और अगर ऐसी ही स्थिति रही तो आने वाले 30 सालों में यानी 2050 तक आधी से ज्यादा आबादी बांझ हो जाएगी।

myUpchar से जुड़ी डॉक्टर अर्चना निरूला के मुताबिक प्रदूषित पानी के संपर्क में आने से ओवरी का आकार और उसकी गुणवता खराब हो जाती, इसलिए ये भी बांझपन का एक बड़ा कारण हो सकता है। 

बांझपन की वजह
काली नदी के किनारे बसे गांव में रहने वाले लोगों में इस (बांझपन) समस्या की वजह जानने की कोशिश की गई तो पता चला कि प्रदूषित हो चुकी काली नदी के पानी में लोहा, सीसा (लेड) और क्रोमियम (एक कठोर पदार्थ) की मात्रा अधिक है। इन भारी मेटल के चलते ही लोगों में यह समस्या बढ़ी है।

  • इस जांच के बाद पता चला कि नदी के पानी में भारी तत्वों की वजह से महिलाओं के गर्भाशय में अंडे विकसित नहीं हो रहे हैं, जिसके कारण कई बार गर्भपात (मिसकैरेज या गर्भस्राव) जैसी स्थिति उत्पन्न हो रही है।
  • पुरुषों के मामलों में पाया कि उनके अंदर हार्मोन्स अवरोधक बन रहे हैं, जिसके कारण पुरुषों में शुक्राणुओं की संख्या कम हो रही है।

कुल मिलाकर डॉक्टरों और विशेषज्ञों के अनुसार नदी के पानी में मौजूद हैवी मेटल्स पुरुषों में शुक्राणुओं और महिलाओं में अंडाणुओं को नुकसान पहुंचाते हैं। यही वजह है कि काली नदी के आसपास रहने वाले लोगों में बांझपन के साथ अन्य कई गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ रहा है।

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