वैज्ञानिकों ने बच्चों से जुड़े दुर्लभ आनुवंशिक विकार प्रोजीरिया के उपचार के लिए एक नई दवा विकसित की है, जिसे संभावित रूप से कारगर पाया गया है। हाल ही में अमेरिका की शीर्ष ड्रग नियामक एजेंसी फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) ने जोकिनवाई नामक इस दवा को मंजूरी दी है। वैज्ञानिकों की मानें तो क्लीनिकल स्टडी के दौरान दवा के इस्तेमाल से बेहतर नतीजे सामने आए हैं, जिसके बाद एफडीए ने इस ड्रग के इस्तेमाल को अनुमति दी है। बता दें कि दवा के निर्माण के लिए प्रोजीरिया से जुड़े शोधकार्य करने वाली प्रोजीरिया रिसर्च फाउंडेशन ने आर्थिक मदद दी थी, जिसमें ईगर बायोफार्मास्यूटिकल्स नामक दवा कंपनी की भूमिका अहम बताई गई है।
वैज्ञानिकों के अनुसार, जोकिनवाई अपनी तरह की पहली दवा है जो प्रोजीरिया के विकास को रोकने का काम करेगी। अध्ययन के तहत किए क्लीनिकल ट्रायल के परिणामों में शोधकर्ताओं ने पाया है कि इस दवा के इस्तेमाल से रोगियों का जीवनकाल दो साल से अधिक समय तक बढ़ गया था।
क्या है प्रोजीरिया?
प्रोजीरिया को हचिंसन-गिलफोर्ड सिंड्रोम के रूप में भी जाना जाता है। यह एक बेहद दुर्लभ और तेजी से बढ़ने वाला जेनेटिक डिसऑर्डर है। इसमें बच्चों की उम्र जीवन के पहले दो वर्षों में ही तेजी से बढ़ने लगती है। प्रोजीरिया से पीड़ित बच्चे आमतौर पर जन्म के समय सामान्य दिखाई देते हैं, लेकिन बाद में पहले ही साल के दौरान बीमारी से जुड़े लक्षण दिखने शुरू हो जाते हैं। इनमें बालों का झड़ना जैसे लक्षण शामिल हैं। इस दौरान हृदय से संबंधित समस्या या स्ट्रोक की वजह से पीड़ित बच्चे की मौत हो सकती है। जानकार बताते हैं कि प्रोजीरिया बीमारी से ग्रस्त बच्चों का औसत जीवनकाल लगभग 13 वर्ष होता है। कुछ तो इससे भी छोटी उम्र में मर जाते हैं। हालांकि, कुछ बच्चे 20 साल तक जीवित रह सकते हैं। अंतरराष्ट्रीय रिपोर्टों की मानें तो दुनियाभर में इस दुर्लभ आनुवंशिक विकार के रोगियों की अनुमानित संख्या 400 है। इनमें से 20 पीड़ित अमेरिका में हैं।
क्या है इस बीमारी की वजह?
प्रोजोरिया जेनेटिक डिसऑर्डर जरूर है, लेकिन यह माता-पिता से बच्चे में ट्रांसफर हो ऐसा जरूरी बिल्कुल नहीं है। दरअसल, शरीर में एक जीन म्यूटेशन में आए बदलाव के कारण बच्चा इस समस्या की चपेट में आ सकता है। शरीर में मौजूद लैमिन ए नामक जीन में हुए बदलाव के कारण प्रोजीरिन नाम का प्रोटीन अस्तित्व में आता है। लैमिन ए में हुए बदलाव के कारण प्रोजीरिन असामान्य रूप से बनने लगता है। इससे कोशिकाएं अस्थिर हो जाती हैं और हानिकारक रूप से बढ़ने लगती हैं, जो बाद में प्रोजीरिया के रूप में सामने आती है।