अगर किसी व्यक्ति को हाई कोलेस्ट्रॉल की समस्या हो या परिवार में कोलेस्ट्रॉल का इतिहास रहा हो तो खून में कोलेस्ट्रॉल के लेवल को कम करना कितना मुश्किल होता है यह तो आप जानते ही हैं। वैसे तो लाइफस्टाइल में किया गया बदलाव और दवाइयों का सेवन कोलेस्ट्रॉल के लेवल को मैनेज करने में मदद कर सकता है, लेकिन कोलेस्ट्रॉल को एक निश्चित लेवल से नीचे ले जाना बेहद मुश्किल होता है।
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एवीनाकुमैब नाम के मोनोक्लोनल एंटीबॉडी का अब एक डबल-ब्लाइंड प्लेसबो-कंट्रोल्ड (यह एक ऐसी मेडिकल स्टडी है जिसमें ना तो डॉक्टरों को पता होता है, ना ही किसी भी ग्रुप को पता नहीं होता कि उन्हें क्या इलाज मिल रहा है और कंट्रोल ग्रुप को प्लेसबो दिया जाता है) फेज-2 ट्रायल हुआ है जिसमें दिखाया गया है कि यह अनुसंधानात्मक दवा उन मरीजों में जिनमें हाइपरकोलेस्ट्रोलीमिया की समस्या होती है उनमें बैड कोलेस्ट्रॉल (एलडीएल) को कम कर सकती है। ट्रायल में इस बात की पुष्टि हुई कि इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि मरीज को फैमिलियल हाइपरकोलेस्ट्रोलीमिया है या नहीं।
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फैमिलियल हाइपरकोलेस्ट्रोलीमिया एक आनुवंशिक बीमारी है, जिसमें मरीज को जन्म से ही उच्च एलडीएल यानी बैड कोलेस्ट्रॉल की समस्या होती है। होमोजाइगस फैमिलियल हाइपरकोलेस्ट्रोलीमिया एक प्रकार का फैमिलियल हाइपरकोलेस्ट्रोलीमिया है, जिसमें मरीज को माता-पिता दोनों ही से बैड एलडीएल रेसिप्टर्स (जो शरीर से बैड कोलेस्ट्रॉल को हटाता है) के लिए जीन्स प्राप्त होते हैं। ऐसे मरीजों में हाई ब्लड कोलेस्ट्रॉल को मैनेज करना मुश्किल हो जाता है। ऐसे मरीजों में बेहद कम उम्र में ही हृदय रोग का जोखिम भी काफी बढ़ जाता है।
इससे पहले एवीनाकुमैब के हुए फेज 3 ट्रायल में दिखाया गया था कि एवीनाकुमैब को जब लिपिड-कम करने वाली दवाइयों के साथ मिलाकर दिया जाता है, तो यह होमोजाइगस फैमिलियल हाइपरकोलेस्ट्रोलीमिया के मरीजों में 47 प्रतिशत तक ब्लड कोलेस्ट्रॉल को कम कर सकता है। लेकिन सिर्फ तभी जब इसे शरीर के वजन के हिसाब से 15 मिलिग्राम प्रति किलो की डोज से 6 महीने तक महीने में एक बार दिया जाए। इस ट्रायल के नतीजों को अगस्त 2020 में द न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित किया गया है।
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फेज 2 के नए ट्रायल को उन मरीजों के साथ किया गया था, जिनमें हाई कोलेस्ट्रॉल था लेकिन सिर्फ उन मरीजों के साथ नहीं जिनमें हाई कोलेस्ट्रॉल आनुवंशिक कारणों से था। इस ट्रायल के नतीजों को 15 नवंबर 2020 को द न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित किया गया। इस नए ट्रायल के लिए अनुसंधानकर्ताओं ने 272 मरीजों को दवा की डिलिवरी का तरीका, खुराक और क्या मरीज को 16 सप्ताह तक प्लेसबो या कोई दवा दी गई, इसके आधार पर 7 समूहों में बांटा :
मरीजों की संख्या | डिलिवरी का तरीका | खुराक | ब्लड कोलेस्ट्रॉल में कमी |
40 | सबक्यूटेनियस एवीनाकुमैब (त्वचा में इंजेक्ट किया गया) | 450 एमजी हर सप्ताह 16 सप्ताह तक | 56 पर्सेंटेज पॉइंट्स |
43 | सबक्यूटेनियस एवीनाकुमैब | 300 एमजी हर सप्ताह 16 सप्ताह तक | 52.9 पर्सेंटेज पॉइंट्स |
39 | सबक्यूटेनियस एवीनाकुमैब | 300 एमजी 2 सप्ताह में एक बार 16 सप्ताह तक | 38.5 पर्सेंटेज पॉइंट्स |
41 | प्लेसबो | n/a | n/a |
39 | इंट्रावीनस एवीनाकुमैब | 15 एमजी प्रति किलो शरीर के वजन के हिसाब से हर 4 सप्ताह में एक बार 16 सप्ताह तक | 50.5 पर्सेंटेज पॉइंट्स |
36 | इंट्रावीनस एवीनाकुमैब | 5 एमजी प्रति किलो हर 4 सप्ताह में एक बार 16 वीक तक | 24.2 पर्सेंटेज पॉइंट्स |
16 सप्ताह के बाद अनुसंधानकर्ताओं ने पाया कि एवीनाकुमैब उन मरीजों में जिनमें कोलेस्ट्रॉल का इलाज बेहद मुश्किल होता है उनमें भी कोलेस्ट्रॉल को कम कर सकता है। दवा के सबक्यूटेनीयस इंजेक्शन और इंट्रावीनस इंजेक्शन दोनों ही तरीकों में दवा की उच्च खुराक ने कम खुराक की तुलना में बेहतर नतीजे दिखाए। इस ट्रायल को अमेरिका बेस्ड बायोटेक्नोलॉजी कंपनी रीजेनेरॉन फार्मासूटिकल्स ने फंड किया था। यह कंपनी आधुनिक चिकित्सा संबंधी कार्यों के साथ ही मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज विकसित करने में भी शामिल है।
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यह ट्रायल क्यों अहम है?
हमारे शरीर में मौजूद लिवर 2 तरह का कोलेस्ट्रॉल बनाता है- लो डेंसिटी लिपोप्रोटीन (एलडीएल) और हाई-डेंसिटी लिपोप्रोटीन (एचडीएल)। जैसा कि नाम से ही पता चलता है इन दोनों ही प्रकार में अंतर मॉलिक्यूल्स में शामिल प्रोटीन में होता है- लिवर से लिपिड को लेकर कोशिकाओं तक पहुंचाने के लिए प्रोटीन की जरूरत होती है।
शरीर में कई विभिन्न कार्यों को करने के लिए कोलेस्ट्रॉल की जरूरत होती है। उदाहरण के लिए- यह कोशिकाओं की दीवार या मेम्ब्रेन में मौजूद सबसे अहम इन्ग्रीडिएंट है। इसके अलावा विटामिन डी और एस्ट्रोजेन जैसे हार्मोन के निर्माण के लिए भी शरीर को कोलेस्ट्रॉल की जरूरत होती है। हालांकि जब शरीर में एलडीएल यानी बैड कोलेस्ट्रॉल की मात्रा अधिक हो जाती है तो यह रक्तवाहिकाओं में जमने लगता है। समय के साथ यह रक्तवाहिका को संकुचित कर देता है। वहीं, दूसरी तरफ एचडीएल यानी गुड कोलेस्ट्रॉल रक्तवाहिकाओं में जमा नहीं होता। साथ ही एचडीएल, अतिरिक्त एलडीएल को वापस लिवर तक ले जाने का भी काम करता है जहां इसे तोड़कर शरीर से बाहर किया जा सकता है।
खून में सामान्य कोलेस्ट्रॉल का लेवल 125 से 200 मिलिग्राम प्रति डेसिलीटर (लीटर के दसवें हिस्से को डेसिलीटर कहते हैं) होता है। (240 मिलिग्राम प्रति डेसिलीटर या इससे अधिक के लेवल को हाई कोलेस्ट्रॉल और 200 मिलिग्राम प्रति डेसिलीटर से 239 मिलिग्राम प्रति डेसिलीटर को बॉर्डरलाइन हाई कोलेस्ट्रॉल माना जाता है) हाई कोलेस्ट्रॉल की समस्या शरीर की कई क्रियाओं को एक साथ प्रभावित कर सकती है खासकर रक्त संचार और हृदय को। समय के साथ हाई कोलेस्ट्रॉल का हानिकारक असर रक्तवाहिकाओं और दूसरे अंगों को भी नुकसान पहुंचा सकता है।
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दवाइयां जैसे- स्टेटिन्स के साथ ही हाई कोलेस्ट्रॉल के लिए एक्सरसाइज और हाई कोलेस्ट्रॉल के लिए हेल्दी डाइट भी खून में मौजूद कोलेस्ट्रॉल को कंट्रोल करने में मदद कर सकता है। हालांकि, कुछ मरीजो में कोलेस्ट्रॉल के लेवल को कम करने में मुश्किल हो सकती है। अगर अनुसंधानात्मक दवा एवीनाकुमैब को रेग्यूलेटर्स से इजाजत मिल जाती है तो यह दवा 25 साल से अधिक उम्र की दुनिया की एक बड़ी आबादी जो हाई कोलेस्ट्रॉल की समस्या से पीड़ित है उनके जीवन में सुधार लाने में मदद कर पाएगी।
एवीनाकुमैब पूरी तरह से ह्यूमन मोनोक्लोनल एंटीबॉडी है। (उन मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज के विपरित जिन्हें गाय और लामा जैसे जानवरों के शरीर में उत्पन्न किया जाता है) यह एन्जियोपॉयटिन-जैसे प्रोटीन 3 (एएनजीपीएलटी3) नाम के खास तरह के प्रोटीन को रोकता है जिसका संबंध लो एलडीएल कोलेस्ट्रॉल और एथेरोस्क्लेरोटिक कार्डियोवस्कुलर डिजीज जैसी बीमारियों के खतरे को कम करने से है। लिपिड को कम करने वाली कुछ दवाइयां जो एलडीएल-रिसेप्टर के मार्ग को टार्गेट करती हैं उनकी तुलना में यह दवा अलग तरह से काम करती है।
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एथेरोस्क्लेरोसिस एक ऐसी बीमारी है जिसमें कोलेस्ट्रॉल प्लाक रक्तवाहिकाओं में जमा होने लगते हैं जिससे रक्तवाहिका संकुचित हो जाती है और हाई ब्लड प्रेशर, कोरोनरी आर्टरी डिजीज, पेरिफेरल आर्टरी डिजीज, स्ट्रोक और हार्ट अटैक जैसी समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है।