हीमोफीलिया एक दुर्लभ आनुवंशिक बीमारी है जो आपके शरीर की रक्त के थक्के जमने की क्षमता को प्रभावित करती है। यह आनुवंशिक बीमारी लगभग 10 हजार लोगों में से 1 व्यक्ति को प्रभावित करती है। यह बीमारी आपके शरीर की रक्तस्राव रोकने की क्षमता को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकती है।
हीमोफीलिया को “रॉयल डिजीज” भी कहा जाता है। आइए जानते हैं हीमोफीलिया के बारे में कुछ दिलचस्प बातें।
हीमोफीलिया क्या है और इसे रॉयल डिजीज क्यों कहा जाता है?
हीमोफीलिया खून से संबंधित एक दुर्लभ बीमारी है जो चोट लगने के दौरान खून बहने से रोकने के लिए थक्के जमने की प्रक्रिया को रोकती है। इस बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति में थक्के जमने में मदद करने वाले फैक्टर VIII नामक प्रोटीन की कमी हो जाती है। यह प्रोटीन प्लेटलेट्स के साथ मिलकर रक्त के थक्कों का निर्माण करता है, लेकिन किसी हीमोफीलिक व्यक्ति के मामले में ऐसा नहीं हो पाता है। इसका मतलब है कि ऐसे व्यक्ति को लंबे समय तक आंतरिक रक्तस्राव और चोट लगने की आशंका अधिक होती है।
यह माना जाता है कि क्वीन विक्टोरिया से उनके तीन बच्चों में पीढ़ियों से चली आ रही यह बीमारी संचारित हुई थी और इसलिए इसे 'रॉयल डिजीज' या शाही रोग के रूप में जाना जाता है।
संयुक्त राज्य अमेरिका के बाद हीमोफीलिया से ग्रस्त लोगों की संख्या भारत में सबसे ज्यादा है। हालांकि केवल 15% मामले ही सामने आ पाते हैं और उनका इलाज हो पाता है। चूंकि, हीमोफीलिया एक दुर्लभ बीमारी है और इसके इलाज में भी ज्यादा खर्च आता है इसलिए भारत में अधिकांश मरीज़ों को इलाज की सुविधा नहीं मिल पाती है।
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सामान्य रक्त के थक्के कैसे काम करते हैं?
जब आपके शरीर में कट या चोट लगती है, तो शरीर खून को बहने से रोकने के लिए चोट वाली जगह पर खून का थक्का बनाने लगता है। जिस व्यक्ति को हीमोफीलिया की बीमारी नहीं है उसके शरीर में रक्त के थक्के बनने की यही सामान्य प्रक्रिया होती है।
हीमोफीलिया के कारण क्या हैं और सबसे ज्यादा खतरा किसे होता है?
गुणसूत्रों (क्रोमोसोम) में एक्स-लिंक्ड रिसेसिव पैटर्न के कारण हीमोफिलिया की बीमारी होती है और यह महिलाओं की तुलना में पुरुषों को अधिक प्रभावित करती है। कट लगने पर आपका शरीर क्लॉटिंग फैक्टर या फैक्टर VIII के माध्यम से रक्तस्राव की दर को धीमा करने में मदद करता है।
हीमोफीलिया से ग्रस्त व्यक्ति में यह क्लॉटिंग फैक्टर या तो पाया ही नहीं जाता है या पर्याप्त मात्रा में नहीं होता है। हीमोफीलिया एक आनुवंशिक बीमारी भी है, जो ज्यादातर मां से बच्चों में आती है। तात्पर्य यह है कि यदि किसी महिला में फैक्टर VIII वाला जीन विकृत है, तो उनके बच्चों को भी यह बीमारी प्रभावित करेगी ।
हालांकि अक्वायर्ड हीमोफीलिया कोई आनुवंशिक स्थिति नहीं है और इसके निम्नलिखित कारण हो सकते हैं:
- गर्भावस्था
- स्वप्रतिरक्षित रोग (ऑटोइम्यून डिजीज)
- मल्टीपल स्केलेरोसिस
- कैंसर
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हीमोफीलिया कितने प्रकार का होता है?
हीमोफीलिया के तीन प्रकार होते हैं - टाइप ए, टाइप बी और टाइप सी। नीचे इनके बारे में विस्तार से बताया गया है।
- टाइप ए हीमोफीलिया:
इसे क्लासिक हीमोफीलिया के रूप में भी जाना जाता है और यह हीमोफीलिया का सबसे सामान्य प्रकार है। यह शरीर में क्लॉटिंग फैक्टर VIII की अनुपस्थिति के कारण होता है।
- टाइप बी हीमोफीलिया:
इसे क्रिसमस रोग के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि इसका पहला मामला 1952 में स्टीफन क्रिसमस नामक रोगी में पता चला था। यह एक दुर्लभ प्रकार का हीमोफिलिया है और यह शरीर में क्लॉटिंग फैक्टर IX की कमी के कारण होता है।
- टाइप सी हीमोफीलिया:
टाइप सी हीमोफीलिया एक बहुत ही दुर्लभ स्थिति है, जो पुरुषों और महिलाओं दोनों को समान रूप से प्रभावित करती है। यह बीमारी शरीर में क्लॉटिंग फैक्टर XI की कमी के कारण होती है।
हीमोफीलिया के सामान्य लक्षण और संकेत क्या हैं?
यदि व्यक्ति के परिवार में हीमोफीलिया का पारिवारिक इतिहास नहीं है, तो उसे हीमोफीलिया का टेस्ट करवाने की जरूरत नहीं है। लेकिन अगर परिवार में किसी सदस्य को हीमोफीलिया रहा है, तो बच्चे की गर्भनाल के रक्त से परीक्षण किया जा सकता है। यहां कुछ ऐसे लक्षण बताए गए हैं जो बच्चे के जन्म के बाद 18 महीनों के अंदर दिखाई दे सकते हैं:
- जन्म के समय सिर से रक्तस्राव होना
- चलना सीखते समय जोड़ों का छिलना और सूजन
- अक्सर नाक से खून आना और मामूली चोट लगने पर ही छिल जाना
- मसूड़ों से खून आना
- मूत्र और मल में खून आना
- मोटापे के लक्षण
वॉन विलेब्रांड रोग और हीमोफीलिया में क्या अंतर है?
वॉन विलेब्रांड रोग एक ऑटोसोमल रिसेसिव डिसऑर्डर है, जो हीमोफीलिया के जैसा ही होता है। ब्लीडिंग से संबंधित यह एक दुर्लभ विकार है जो पुरुषों और महिलाओं दोनों में होता है। हालांकि, हीमोफीलिया महिलाओं की तुलना में पुरुषों को अधिक प्रभावित करता है।
क्या है हीमोफिलिया का इलाज?
हीमोफीलिया एक ऐसी स्थिति है जो जीवनभर रहती है। शरीर में क्लोटिंग फैक्टर VIII और IX का स्तर पूरी जिंदगी एक समान ही रहता है। हीमोफीलिया के स्टेज के अनुसार डॉक्टर निम्नलिखित उपचार की सलाह दे सकते हैं:
- क्लोटिंग फैक्टर की रिप्लेसमेंट थेरेपी, जो नसों के द्वारा की जाती है।
- खून बहने से रोकने के लिए हर सप्ताह दवाएं दी जाती हैं।
- जोड़ों से खून बहने का इलाज किया जाता है।
क्या हीमोफिलिया से ग्रस्त व्यक्ति एक्सरसाइज या स्पोर्ट्स में हिस्सा ले सकते हैं?
कुछ लोगों का मानना है कि खेल या एक्सरसाइज करने से जोड़ों में दर्द और रक्तस्राव अधिक हो सकता है। हालांकि, हल्की एक्सरसाइज और खेल बार-बार होने वाले दर्द और रक्तस्राव से बचने में मदद करते हैं। हीमोफीलिया में मजबूत मांसपेशियों के विकास से अत्यधिक रक्तस्राव को नियंत्रित करने में मदद मिल सकती है।
फुटबॉल, क्रिकेट या मुक्केबाजी जैसे स्पोर्ट्स में चोट लगने का खतरा अधिक रहता है जबकि हीमोफीलिया के रोगियों के लिए तैराकी, बैडमिंटन और साइकिल चलाना ज्यादा सुरक्षित विकल्प हैं।
हालांकि, हीमोफीलिया का कोई इलाज नहीं है, लेकिन देखभाल और कुछ सावधानियां बरत कर इस बीमारी को नियंत्रित किया जा सकता है। जीन थेरेपी पर अभी रिसर्च चल रही है। उचित उपचार एवं सहायता मिलने पर हीमोफीलिया के रोगी सामान्य जीवन जी सकते हैं। हीमोफीलिया से पीड़ित लोग अपनी स्थिति को बेहतर और इस बीमारी को नियंत्रित करने के लिए अपने आसपास के हीमोफिलिया सपोर्ट ग्रुप से जुड़ सकते हैं।
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