हृदय रोगियों के जीवन स्तर में सुधार लाने की दिशा में ब्रिटेन के एक मशहूर अस्पताल ने अनोखा परीक्षण किया है। एनएचएस अस्पताल ने हृदय रोग से संबंधित एक मरीज के दिल में पहली बार माइक्रो कंप्यूटर इम्प्लांट किया है, जिसके सफल परिणाम सामने आए हैं।
डॉक्टरों का दावा है कि यह परीक्षण मरीज के हृदय से जुड़ी समस्याओं के बारे में जानकारी देता रहेगा जिससे मरीज को आवश्यक चिकित्सकीय सुविधाएं देने में आसानी होगी।
कंप्यूटर की क्या है खासियत
दुनिया में पहली बार किसी मरीज के दिल में लगाया गया यह माइक्रोकंप्यूटर कई मामलों में खास है। इसे चिकित्सा प्रौद्योगिकी कंपनी ‘वेक्टर’ ने बनाया है। इसका आकार मटर के दाने के बराबर है। हृदय के अंदर वी-एलएपी सेंसर लगाया गया है जिससे डॉक्टरों को मरीज के हृदय से जुड़ी गतिविधियों की रियल टाइम (कोई गतिविधि होने के समय पर ही) जानकारी मिलती रहेगी।
यह कंप्यूटर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और डिजीटल टेक्नोलॉजी द्वारा संचालित है। इससे हृदय पर दबाव बढ़ने पर रियल टाइम में ही डॉक्टरों को सूचना मिल जाएगी। डॉक्टरों का दावा है कि इस परीक्षण के बाद हृदय रोगियों के स्वास्थ्य का ख्याल रखना काफी आसान हो जाएगा, साथ ही हार्ट अटैक के खतरों को समय रहते पहचान कर उनका उपचार किया जा सकेगा।
कैसा रहा मरीज का अनुभव
पहली बार यह परीक्षण ब्रिटेन के 71 वर्षीय एंड्रयू स्मिथ पर किया गया है। एक सुबह उन्हें अचानक सीने में दर्द होना शुरू हुआ, जिसके बाद उन्हें अस्पताल ले जाया गया। अस्पताल में जांच के बाद पता चला कि उन्हें हार्ट अटैक आया है।
डॉक्टरों ने बताया कि हृदय की एक प्रमुख रक्त वाहिका में रुकावट और बाएं वेंट्रिकल में कुछ नुकसान के चलते हार्ट अटैक आया था। डॉक्टर ने दिल की धड़कन को धीमा करने के लिए कुछ दवाएं खाने को दीं जिसमें ब्लड प्रेशर कम करने वाली दवाइयां भी शामिल थीं।
एंड्रयू ने बताया कि हार्ट अटैक की वजह से उनके हृदय के कुछ ऊतक क्षतिग्रस्त हो चुके थे। मुझे अब भी सांस लेने में दिक्कत हो रही थी और दस साल बाद दिल की धड़कन को बेहतर करने के लिए डॉक्टर ने मेरे हार्ट में एक पेसमेकर और दिल के धड़कने की गति को नियंत्रित करने के लिए डिफिब्रिलेटर भी फिट किया था।
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हार्ट की अवरूद्ध हुई रक्त वाहिका में स्टेंट भी डाला गया था जो कि वसा युक्त पदार्थ जमने के कारण संकुचित हो गया था।
दो साल पहले सांस लेने में आ रही दिक्कत की वजह से मैं कार्डियोलोजिस्ट (हृदय रोग विशेषज्ञ) के पास गया। डॉक्टर ने बताया कि मेरा हार्ट 20 प्रतिशत की कार्यक्षमता पर कार्य कर रहा है और मुझमें हार्ट फेलियर का निदान किया गया। इसमें हृदय ठीक तरह से खून को पंप नहीं कर पाता है।
वहां से निकलने के बाद मैंने विश्व के पहले वायरलैस माइक्रोकंप्यूटर इंप्लांट के बारे में पढ़ा। इस इंप्लांट से डॉक्टर को रियल टाइम में हृदय की स्थिति की जानकारी मिलती रहती है।
मुझे लगा अगर मैंने ये इंप्लांट करवा लिया तो डॉक्टर बारीकी से मेरे हार्ट पर नजर रख सकते हैं और दिल की धड़कन बढ़ने पर जल्द से जल्द मुझे इलाज मिल सकता है।
कैसे काम करता है यह डिवाइस
हृदय संबंधित बीमारियों के इलाज और रोगियों की देखरेख के संबध में विशेषज्ञों ने इस परीक्षण को बेहतर बताया है। लंदन स्थित इंपीरियल कॉलेज हेल्थकेयर के वरिष्ठ सलाहकार कार्डियोलोजिस्ट के तौर पर कार्यरत डॉ. जाचरी व्हिनेट इस परीक्षण के परिणामों को देखते हुए काफी उत्साहित हैं।
डॉ. व्हिनेट बताते हैं कि वी-एलएपी नाम का उपकरण दुनिया का पहला वायरलैस इन-हार्ट माइक्रो कंप्यूटर है। यह उन रोगियों के इलाज में काफी मददगार साबित हो सकता है जिनके हृदय की गतिविधियों पर लगातार नजर रखना जरूरी लेकिन मुश्किल होता है।
इस माइक्रो कंप्यूटर के माध्यम से हृदय में होने वाली हर गतिविधि की सूचना डॉक्टरों तक पहुंचती है, ऐसे में इसे एक अच्छे संकेत के तौर पर देखा जा सकता है।
वी-एलएपी एक मटर के आकार का सेंसर है, जिसमें दो छतरी के आकार के लचीले नाइटिनोल तार बने होते हैं, जो इसे हृदय के ऊपरी कक्षों के बीच की दीवार में डालते हैं। इसे लगाने में एक घंटे का समय लगता है।
इस डिवाइस के लग जाने के बाद महज एक टांके की सहायता से घाव को बंद कर दिया जाता है। इस प्रक्रिया के बाद यह कंप्यूटर हमेशा के लिए हृदय में लगा रहता है।
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इस इम्प्लांट से मरीज को जरूरत पड़ने पर तुरंत इलाज देने या अस्पताल ले जाने में मदद मिलेगी। डॉ. व्हिनेट ने कहा कि पहले डिवाइस के सफलतापूर्ण परीक्षण के बाद अब हम दुनियाभर से 30 मरीजों के हृदय में इस डिवाइस को इम्प्लांट करना चाह रहे हैं जिससे हमें इसके व्यापक परिणाम प्राप्त करने में और आसानी होगी।
क्या कोई खतरा भी है
- वरिष्ठ कार्डियोलोजिस्ट और इलेक्ट्रोफिजियोलोजिस्ट डॉ. स्टीफन मुरे बताते हैं कि पहला परीक्षण सफल रहा है लेकिन इसके जोखिम भी संभव हैं। हालांकि, इससे हृदय और रक्त वाहिकाओं को नुकसान पहुंचने की संभावना महज 1 से 2 फीसदी ही है।
- एक और डर यह होता है कि इसे इम्प्लांट करते वक्त खून के थक्के जमने का खतरा रहता है जिसकी वजह से हार्ट अटैक या स्ट्रोक आ सकता है।
डॉक्टर बताते हैं कि कुछ मौकों पर इम्प्लांट के बाद इसके ढीले पड़ जाने का भी डर रहता है। ऐसी स्थिति में इसे हटाने के लिए ओपन हार्ट सर्जरी करनी पड़ सकती है।