पर्याप्त नींद स्वास्थ्य जीवन का सबसे बड़ा मूलमंत्र है। बेहतर नींद की वजह से हमें मानसिक और शारीरिक रूप से फिट रहने में मदद मिलती है। लेकिन सोने के समय में होना वाला बदलाव आपको बीमार बना सकता है। दरअसल शोधकर्ताओं द्वारा की गई ताजा रिसर्च में यह बात सामने आई है। स्वास्थ्य के क्षेत्र से जुड़ी पत्रिका ‘जर्नल ऑफ द अमेरिकन कॉलेज ऑफ कार्डियोलॉजी’ के मुताबिक नींद के चक्र में परिवर्तन होना हृदय के लिए घातक हो सकता है।

दरअसल, आज नौकरियों की अलग-अलग टाइमिंग और अन्य कारणों के चलते कई लोगों को रात में भी काम करना पड़ता। जाहिर है इससे उनकी नींद प्रभावित होती है। इस नुकसान की भरपाई लोग दिन में सोकर पूरी करने की कोशिश करते हैं। लेकिन नाइट शिफ्ट खत्म होने के बाद फिर से रात को नींद लेने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। ऐसे में व्यक्ति के सोने का समय निर्धारित नहीं हो पाता और उसकी नींद प्रभावित होती है। पत्रिका की रिपोर्ट के मुताबिक, शोधकर्ताओं ने पाया है कि नींद के मामले में ऐसी रुकावटों का बार-बार आना हृदय रोग का जोखिम अधिक बढ़ा सकता है।

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नींद चक्र में बदलाव से प्रभावित होता बॉडी क्लॉक
शोधकर्ताओं द्वारा की गई ये रिसर्च पूरी तरह से शिफ्ट में काम करने वाले लोगों पर आधारित है। शोध के अनुसार, नाइट शिफ्ट में काम करने से शरीर का 'सर्केडियन रिदम' (बॉडी क्लॉक या शारीरिक चक्र) प्रभावित होता है। यानी इससे सोने और उठने की समय प्रक्रिया बाधित होती है। परिणामस्वरूप, व्यक्ति में शारीरिक, मानसिक और व्यावहारिक बदलाव देखने को मिलते हैं।

वहीं, कई मेडिकल विशेषज्ञों का कहना है कि शिफ्ट में काम करने के अलावा भी सर्केडियन रिदम के प्रभावित होने के कई कारण हो सकते हैं जो लंबे समय तक आपकी नींद को खराब करने की वजह बनते हैं। इनमें आधुनिक जीवन से जुड़े कई फैक्टर हैं। उदाहरण के लिए, देर रात तक मोबाइल का अत्यधिक इस्तेमाल और टीवी देखने की आदत भी नींद के चक्र को प्रभावित करती है। यह आदत बाद में हृदय रोग के जोखिम को बढ़ने का काम कर सकती है।

इस बारे में बात करते हुए अध्ययन में शामिल एक शोधकर्ता ने कहा, ‘अगर लोग आधुनिक जीवनशैली के तहत सोने के समय में बदलाव करते हैं तो इससे नींद के निर्धारित समय पर प्रभाव पड़ता है। रिसर्च में शामिल एक तिहाई लोगों के सोने का समय पूरी तरह अनियमित था। इस तरह ये लोग अपनेआप हृदय रोग के खतरे की ओर बढ़ रहे हैं।'

कैसे की गई रिसर्च?
सोने के अनियमित समय और हृदय रोग के जोखिम के बीच संबंध को जानने के लिए शोधकर्ताओं ने एक पुराना तरीका खोजा। इसके लिए टीम ने कई प्रकार का डेटा इस्तेमाल किया। नींद से जुड़े विकार का पता लगाने के लिए पॉलीसोमोग्राफी मशीन से शोध में शामिल हर व्यक्ति का टेस्ट किया गया। साथ ही, उनसे सोने की अवधि, समय और उसके पैटर्न से जुड़े सवाल पूछे गए। गौरतलब है कि शोध के लिए किए गए सभी अध्ययनों में शामिल किए गए लोगों की उम्र 45 से 84 साल थी, जिनकी कुल संख्या 1,992 थी। इन लोगों में हृदय रोग से जुड़ी कोई बीमारी नहीं थी। शोध के दौरान इन लोगों पर करीब पांच साल तक निगरानी रखी गई। 

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शोध के परिणाम
इस दौरान रिसर्च टीम ने पाया कि 786 रोगियों (39.5 प्रतिशत) की नींद की अवधि 90 मिनट तक बढ़ गई थी। वहीं, फॉलोअप के दौरान पाया गया कि शोध में शामिल 111 लोगों में कई हृदय रोगों के लक्षण पाए गए थे। इसके अलावा इनमें स्ट्रोक और अन्य धमनी से जुड़ी बीमारियां भी मिली थीं। परिणाम में यह भी निकला कि जिन लोगों की नींद की अवधि में एक घंटे से कम की कमी आई थी, उनमें हृदय रोग का खतरा नौ प्रतिशत अधिक था।

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हृदय रोग के लक्षण
कार्डियोवास्कुलर रोग उन स्थितियों में होते हैं जब रक्त वाहिकाओं के सिकुड़ने या बाधित होने की वजह से दिल का दौरा, एनजाइना या स्ट्रोक आने का खतरा रहता है। हृदय की अन्य स्थितियों में आपके दिल की मांसपेशियों, वॉल्व या हृदय वाहिकाओं का प्रभावित होना भी हृदय रोग से जुड़ा है। इस स्थिति में कई लक्षण महसूस किए जा सकते हैं, जैसे-

  • छाती में भारीपन, दबाव और असुविधा या दर्द महसूस होना
  • ऊपरी शरीर में बार-बार दर्द होना जैसे कि हाथों, जबड़े, गर्दन, पीठ या पेट के ऊपरी भाग में।
  • थकान और कमजोरी
  • सांस फूलना
  • धड़कन तेज होना (अनियमित धड़कन)
  • चक्कर आना, पसीना आना और जी मचलाना
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