बच्चे को कम सुनाई देने पर उसके बोलने, समझने व सामाजिक कौशल के विकसित होने की क्षमता प्रभावित होती है. अगर बच्चे को कम सुनाई देने का इलाज समय पर कराया जाए, तो वह जल्द से जल्द ठीक हो सकता है. इसलिए, जैसे ही माता-पिता को यह अनुभव हो कि उनके बच्चे को कम सुनाई दे रहा है, तो इस स्थिति में बच्चे का इलाज तुरंत शुरू कर देना चाहिए. बच्चे को कम सुनाई देने के पीछे मुख्य कारण आनुवंशिक व इंफेक्शन हो सकता है.

आज हम इस लेख में बच्चों को कम सुनाई देने के कारण व उसके इलाज के बारे में विस्तार से बताएंगे -

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  1. कम सुनाई देना व बहरेपन में अंतर
  2. कम सुनाई देने के कारण
  3. बच्चों में कम सुनाई देने के लक्षण
  4. बच्चे को कम सुनाई देने का इलाज
  5. सारांश
बच्चे को कम सुनाई देने के कारण, लक्षण, इलाज के डॉक्टर

कम सुनाई देना वह स्थिति होती है, जिससे प्रभावित बच्चे सामान्य बच्चे की तुलना में सुनने में कम सक्षम होते हैं. यह समस्या दोनों में या फिर 1 कान में हो सकती है. कम सुनाई देना हल्का, मध्यम या फिर गंभीर हो सकता है. इस स्थिति में प्रभावित बच्चे को ठीक से सुनाई नहीं देता है. इस स्थिति में अगर बच्चे का समय पर इलाज कराया जाए, तो उन्हें बहरेपन का शिकार होने से बचाया जा सकता है.

वहीं, बहरापन वह स्थिति है, जिसमें बच्चे की सुनने की क्षमता पूरी तरह के खत्म हो जाती है. इस स्थिति में बच्चे को बिल्कुल भी सुनाई नहीं देता है. ऐसे बच्चे अपनी बात को कहने के लिए सांकेतिक भाषा का इस्तेमाल करते हैं.

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बच्चों को कम सुनाई देने के कई कारण हो सकते हैं. इन कारणों को जानकर समय पर इलाज शुरू किया जा सकता है. आइए जानते हैं इस बारे में -

आनुवंशिक

शिशुओं में कम सुनाई देने के लगभग 2 में से 1 मामला आनुवंशिक होता है. इसका मतलब यह है कि अगर बच्चे के परिवार में किसी व्यक्ति को कम सुनाई देता है, तो हो सकता है कि यह समस्या बच्चे को भी प्रभावित करे. इस स्थिति में जन्म के बाद से बच्चे की समय-समय पर सुनने की क्षमता को चेक करवाते रहना जरूरी है.

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संक्रमण

गर्भावस्था के समय मां को इंफेक्शन होने से भी शिशु को कम सुनाई देने की समस्या हो सकती है, ये संक्रमण कुछ इस प्रकार के हैं -

  • गर्भवती महिला के रूबेला या साइटोमेगालो वायरस से ग्रस्त होने पर शिशु को जन्म से ही कम सुनाई दे सकता है
  • अगर शिशु को बचपन में मेनिनजाइटिस (दिमाग की सूजन), मम्प्स (गले की सूजन) व खसरा (दाने) आदि संक्रमण होता है, तो इसके कारण भी उसे कम सुनाई देने की समस्या हो सकती है.
  • बच्चे को कान में संक्रमण होने से भी सुनने की क्षमता प्रभावित हो सकती है.

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डिलीवरी के दौरान होने वाली परेशानी

बच्चे में कम सुनाई देने की समस्या गर्भावस्था के दौरान आई किसी प्रकार की जटिलता के कारण भी हो सकती है. वहीं, डिलीवरी के बाद की जटिलताएं या फिर किसी कारण से शिशु के सिर पर चोट लगने की वजह से भी कम सुनाई देने की परेशानी हो सकती है. इसके अलावा, शिशु को डिलीवरी के दौरान कुछ अन्य परेशानी हो सकती है, जिसकी वजह से उन्हें कम सुनाई दे सकता है, जैसे -

  • जन्म से पहले शिशु या मां का किसी तरह के संक्रमण के संपर्क में आना.
  • जन्म के बाद शिशु गंभीर स्थिति की वजह से एनआईसीयू में 5 दिन या उससे अधिक समय तक भर्ती रहा हो.
  • जन्म के बाद शिशु को पीलिया या ब्लड से जुड़ी किसी तरह की परेशानी हुई हो.
  • शिशु को सिर पर गंभीर रूप से चोट लगी हो, जिसकी वजह से उसे अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा हो.

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कान के रोग

बच्चे के कान में ज्यादा वैक्स बनने या फिर कान में किसी प्रकार का तरल पदार्थ जमने पर भी हियरिंग लॉस हो सकता है. इसके चलते बच्चे को कम से लेकर मध्यम स्तर तक सुनने की क्षमता कम हो सकती है.

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दवाइयां

बच्चे को मलेरियातपेदिक व कैंसर आदि के इलाज के दौरान दी जाने वाली दवाओं के कारण भी सुनाई देने की क्षमता को हानि हो सकती है.

इनके अलावा, लगभग 4 में से 1 मामले में यह पता लगाना मुश्किल होता है कि बच्चे को किन कारणों से कम सुनाई देता है.  

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कम सुनाई देने के लक्षण हर एक बच्चे में अलग-अलग हो सकते हैं. यदि माता-पिता को ऐसा अनुभव हो कि उनके बच्चों को कम सुनाई दे रहा है, तो इस स्थिति में उन्हें जल्द से जल्द डॉक्टर से संपर्क की आवश्यकता होती है. आइए, जानते हैं कि कम सुनाई देने के लक्षण क्या हैं -

शिशुओं के लक्षण

अगर नवजात या फिर छोटे बच्चे को कम सुनाई देता है, तो इस प्रकार के लक्षण नजर आ सकते हैं -

  • तेज आवाज में भी शिशु का न चौंकना.
  • 6 महीने की उम्र के बाद किसी भी तरह की आवाज देने पर बच्चे न मुड़ना या किसी तरह की प्रक्रिया न देना.
  • 1 वर्ष की आयु का बच्चा "दादा" या "मामा" जैसे शब्दों को सुन न पाए या फिर उच्चारण न कर पाए.

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बच्चों के लक्षण

1 वर्ष से ज्यादा आयु के बच्चों को कम सुनाई देता है, तो उनमें निम्न लक्षण दिख सकते हैं -

  • बोलने में समय लग रहा हो.
  • स्पष्ट तरीके से बोल नहीं पा रहा हो.
  • निर्देशों का पालन नहीं कर रहा, ऐसी स्थिति में माता-पिता को लगता है कि बच्चा जानकर सुन नहीं रहा है, लेकिन जरूरी नहीं है कि यह व्यवहार बच्चा जानबूझ के कर रहा हो.
  • इसके अलावा, बच्चा टीवी का वॉल्यूम बहुत ज्यादा करके सुनता हो.

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कम सुनाई देने का समय पर इलाज किया जाए, तो बच्चे की स्थिति में सुधार किया जा सकता है. कम सुनाई देने की स्थिति का निम्न तरीके से इलाज किया जा सकता है -

  • कम्युनिकेशन के लिए अन्य तरीके सीखना, जैसे - सांकेतिक भाषा.
  • स्पीच थेरेपी के जरिए भी बच्चे की सुनने की क्षमता में सुधार हो सकता है.
  • कम्युनिकेशन को बेहतर करने के लिए टेक्नोलॉजी की मदद लेना, जैसे- श्रवण यंत्र यानी हियरिंग एड्स या फिर कॉक्लियर इंप्लांट मशीन का इस्तेमाल करना. इन्हें बच्चे के कान में लगाया जाता है.
  • संक्रमण के कारण सुनने की क्षमता प्रभावित होने पर डॉक्टर कुछ दवाइयां दे सकते हैं, जिसे लेने से बच्चे को आराम मिल सकता है.
  • कुछ स्थितियों में कम सुनाई देने की समस्या को सर्जरी की मदद से ठीक किया जा सकता है.
  • कम सुनाई देने की स्थिति में माता-पिता और परिवार के सदस्यों को उनके साथ की जरूरत होती है, ताकि बच्चा अपनी भावनाओं को व्यक्त करने में सक्षम हो सके.

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बच्चे को कम सुनाई देने की स्थिति में माता-पिता को उसका खास ध्यान रखना चाहिए. उचित इलाज के साथ-साथ बच्चे को माता-पिता के भावनात्मक स्पोर्ट की भी जरूरत होती है. कम सुनाई देना ऐसी समस्या नहीं है कि जिसका इलाज न हो सके. बस समय-समय पर बच्चे का चेकअप करवाते रहना जरूरी है.

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