दुनियाभर में होने वाले संक्रमण में सबसे सामान्‍य फंगल इन्फेक्शन है। शरीर के ऊतकों में किसी कवक (फुंगी) के बढ़ने और फैलने पर फंगल इंफेक्‍शन होता है। सामान्‍य पैथोजेनिक फुंगी (मनुष्‍य में बीमारी पैदा करने वाले फुंगी) में एस्पेरगिलस, ब्लास्टोमायकोसिस, कैंडिडा, कोक्सीडिओडोडेस, क्रिप्टोकोकस निओफोरमंस, क्रिप्टोकोकस गट्टी और हिस्‍टोप्‍लाज्‍मा शामिल हैं। ये शरीर के विभिन्‍न हिस्‍सों को प्रभावित करता है जैसे कि आंखें, कान, जठरांत्र मार्ग, योनि, मुंह, गला, पैरों के नाखून, ऊंगलियों के नाखून, फेफड़ों और त्‍वचा आदि।

फंगल इंफेक्शन का आयुर्वेदिक इलाज जानने के लिए कृपया यहां दिए लिंक पर क्लिक करें।

फंगल संक्रमण के उपचार के लिए कुछ आयर्वेदिक जड़ी बूटियों और औषधियों का इस्‍तेमाल किया जाता है जिनमें रसोनम (लहसुन), अदरक, यष्टिमधु (मुलेठी), अश्वगंधा, नीम, तुलसी, हरिद्रा (हल्दी), वासा (अडूसा), हिंगुलिया माणिक्‍यरस, दद्रुघ्न वटी, चंद्रप्रभा वटी, आरोग्‍यवर्धिनी वटी, कैशोर गुग्‍गुल और गंधक रसायन शामिल हैं। फंगल इंफेक्‍शन के आयुर्वेदिक उपचार में वमन (औषधियों से उल्‍टी) और लेप (शरीर के प्रभावित हिस्‍से पर औषधि लगाना) प्रभावी है। 

  1. आयुर्वेद के दृष्टिकोण से फंगल संक्रमण - Ayurveda ke anusar Fungal Infections
  2. फंगल इन्फेक्शन के आयुर्वेदिक उपाय - Fungal Infections ka ayurvedic upchar
  3. फंगल इन्फेक्शन की आयुर्वेदिक जड़ी बूटी और औषधि - Fungal Infections ki ayurvedic dawa aur aushadhi
  4. आयुर्वेद के अनुसार फंगल संक्रमण होने पर क्या करें और क्या न करें - Ayurved ke anusar Fungal Infections hone par kya kare kya na kare
  5. फंगल संक्रमण में आयुर्वेदिक दवा कितनी लाभदायक है - Fungal Infections ka ayurvedic upchar kitna labhkari hai
  6. फंगल इन्फेक्शन की आयुर्वेदिक औषधि के नुकसान - Fungal Infections ki ayurvedic dawa ke side effects
  7. फंगल संक्रमण के आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट से जुड़े अन्य सुझाव - Fungal Infections ke ayurvedic ilaj se jude anya sujhav
फंगल इन्फेक्शन के आयुर्वेदिक उपाय के डॉक्टर

आयुर्वेद में फंगल संक्रमण के लिए कोई विशेष वर्ग नहीं बनाया गया है लेकिन इसे प्रत्‍येक प्रणाली से संबंधित समस्‍या में शामिल किया गया है, जैसे कि – फंगल त्‍वचा संक्रमण को कुष्‍ठ रोग (त्‍वचा रोग) में रखा गया है। आयुर्वेद के अनुसार अनुचित चीजों को एक साथ (जैसे दूध के साथ मछली) खाने, ताजा कटे खाद्य पदार्थों और भारी भोजन जैसे कुछ कारणों की वजह से त्रिदोष खराब होते हैं एवं त्‍वचा रोग पनपने लगते हैं।

इस श्रेणी में त्‍वचा से संबंधित कई रोगों को रखा गया है जिनकी 18 उपश्रेणियां भी हैं। आगे इन 18 प्रकार के त्‍वचा रोगों को महा कुष्‍ठ (गंभीर त्‍वचा रोग) और शूद्र कुष्‍ठ (सामान्‍य त्‍वचा समस्‍याएं) के रूप में वर्गीकृत किया गया है। त्‍वचा के कुछ सामान्‍य फंगल संक्रमणों में दद्रु (दाद) और एथलीट फुट (पैरों में होने वाला एक आम संक्रमण है) हैं।

दद्रु को आचार्य सुश्रुत द्वारा महा कुष्ठ और आचार्य चरक ने शूद्र कुष्‍ठ के रूप में वर्गीकृत किया है। ये समस्‍या कफ और पित्त प्रधान के खराब होने के साथ सभी तीन दोषों के खराब होने के कारण होती है। एथलीट फुट को आचार्य चरक ने शूद्र कुष्‍ठ बताया है एवं त्‍वचा का ये फंगल संक्रमण वात और कफ दोष के अधिक खराब होने के कारण होता है। 

(और पढ़ें - वात पित्त और कफ क्या है)

Antifungal Cream
₹629  ₹699  10% छूट
खरीदें
  • वमन
    • वमन एक पंचकर्म थेरेपी है जिसमें विभिन्‍न जड़ी बूटियों से मरीज को उल्‍टी करने के लिए प्रेरित किया जाता है।
    • वमन चिकित्‍सा में वमन (उल्‍टी) के लिए दो प्रकार की जड़ी बूटियों का इस्‍तेमाल किया जाता है। इनमें वामक और वमनोपेग जड़ी बूटियां होती हैं।
    • वामक जड़ी बूटियों (जैसे वच और यष्टिमधु) से उल्‍टी लाई जाती है तथा वमनोपेग जड़ी बूटियां (जैसे नीम और आमलकी) वमक जड़ी बूटियों के प्रभाव को बढ़ाती हैं।
    • पेट को साफ करने और छाती एवं परिसंचरण नाडियों से बलगम तथा अमा (विषाक्‍त पदार्थ) को बाहर निकालने के लिए वमन कर्म का इस्‍तेमाल किया जाता है।
    • ये फेफडों के रोगों जैसे कि पल्‍मोनरी टीबी, वायरल इन्फेक्शन, फंगल संक्रमण, फाइलेरिया (हाथीपांव) और ट्यूमर के इलाज में असरकारी है।
       
  • लेप
    • किसी एक या एक से ज्‍यादा जड़ी बूटियों को मिलाकर बने पेस्‍ट को प्रभावित हिस्‍से पर लगाया जाता है जिसे लेप कहते हैं।
    • लेप के लिए जड़ी बूटियों का चयन व्‍यक्‍ति की स्थिति के आधार पर किया जाता है। जड़ी बूटियों को घी में मिलाकर लेप तैयार किया जाता है।
    • दाद के इलाज के लिए निम्‍न जड़ी बूटियों से लेप बनाया जाता है:

फंगल इंफेक्‍शन के लिए आयुर्वेदिक जड़ी बूटियां

  • रसोनम
    • रसोनमक परिसंचरण, पाचन, तंत्रिका, प्रजनन और श्‍वसन प्रणाली पर कार्य करता है। इसमें कृमिनाशक, परजीवी-रोधी, कफ-निस्‍सारक (बलगम निकालने वाले), वायुनाशक (पेट फूलने से राहत), निसंक्रामक, ऊर्जादायक और उत्तेजित गुण हैं।
    • लहसुन शरीर एवं लसीका की सफाई तथा अमा को बाहर निकालने का काम करता है।
    • इस जड़ी बूटी के रोगाणुरोधक गुण फेफड़ों और त्‍वचा संक्रमण के इलाज में मदद करते हैं। ये वात बुखार को नियंत्रित करने में भी असरकारी है।
    • लहसुन मिले पानी में पैर भिगोने से पैरों के फंगल इंफेक्‍शन जैसे कि एथलीट फुट के इलाज में मदद मिल सकती है। जैतून के तेल में लहसुन को भिगोकर उस तेल को सीधा संक्रमित हिस्‍से पर लगा सकते हैं। ये फुंगी (fungi) को बढ़ने से रोकता है।
       
  • अदरक
    • अदरक श्‍वसन और पाचन तंत्र पर कार्य करती है। इसमें दर्द निवारक, सुगंधक, वायुनाशक, कफ-निस्‍सारक और नसों को आराम देने वाले गुण होते हैं। (और पढ़ें - नसों में दर्द के घरेलू उपाय)
    • अदरक तीनों दोषों के विकारों का इलाज कर सकती है।
    • इसे रोग की स्थिति के आधार पर विभिन्‍न जड़ी बूटियों के साथ मिलाकर भी इस्‍तेमाल कर सकते हैं।
    • अदरक पाचन अग्नि को बढ़ाती है इसलिए पाचन में सुधार के लिए इसका इस्‍तेमाल किया जाता है। ये खराब वात को संतुलित और अधिक कफ को कम करती है। (और पढ़ें - पाचन शक्ति मजबूत करने के लिए घरेलू उपाय)
    • अदरक में कैप्रिलिक एसिड होता है जो कि एक फंगल-रोधी तत्‍व है।
    • फंगल संक्रमण के इलाज के लिए अदरक को पानी में उबाल लें और फिर इस पानी से प्रभावित हिस्‍से को धोएं।
       
  • यष्टिमधु
    • यष्टिमधु पाचन, तंत्रिका, प्रजनन, श्‍वसन और उत्‍सर्जन प्रणाली पर कार्य करती है। ये सूजन और जलन से राहत दिलाती है। इसमें ऊर्जादायक, कफ-निस्‍साक, शामक (आराम देने वाले) और शक्‍तिवर्द्धक गुण होते हैं। 
    • ये फेफडों और पेट से कफ को साफ करती है एवं अल्सर तथा सूजन को ठीक करती है।
    • मुलेठी खून को साफ करती है और शरीर से अमा को बाहर निकालती है। ये थकान और पेट दर्द के इलाज में भी उपयोगी है। (और पढ़ें - खून को साफ करने वाले आहार)
    • इसमें कई फंगल-रोधी फाइटो-घटक (पौधों में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले रासायनिक यौगिक) होते हैं जो कि इसे फंगल संक्रमण के इलाज में असरकारी बनाते हैं।
    • यष्टिमधु को अदरक के साथ या पानी में उबालकर भी ले सकते हैं।
    • मुलेठी को काढ़े, दूध के काढ़े, पाउडर या घी के रूप में इस्‍तेमाल कर सकते हैं।
       
  • हरिद्रा
    • हरिद्रा परिसंचरण, पाचन, मूत्र और श्‍वसन प्रणाली पर कार्य करती है। इसमें जीवाणु-रोधी, कृमिनाशक, उत्तेजक और घाव को ठीक करने के गुण होते हैं।
    • ये रक्‍तप्रवाह (ब्‍लड सर्कुलेशन) और खून के ऊतकों के निर्माण में सुधार लाती है। ये पेट के फ्लोरा के लिए प्राकृतिक एंटी-बायोटिक का काम करती है। (और पढ़ें - ब्लड सर्कुलेशन बढ़ाने के उपाय)
    • ये सोरायसिस, मुंहासे और सूजन का इलाज कर सकती है। ये कई फंगल संक्रमण को भी नियंत्रित करने में उपयोगी है।
    • हरिद्रा का इस्‍तेमाल अर्क, दूध के काढ़े, काढ़े और लेप के रूप में कर सकते हैं।
       
  • नीम
    • नीम परिसचंरण, श्‍वसन, मूत्र और पाचन तंत्र पर कार्य करती है। इसमें शीतल, कृमिनाशक, रोगाणुरोधक, वायरस-रोधी, निसंक्रामक, कीटनाशक और भूख बढ़ाने वाले गुण होते हैं।
    • ये खून को साफ और शरीर से अमा को बाहर निकालती है। इस प्रकार नीम फंगल को बढ़ने से रोकती है।
    • ये एक्जिमा, अल्‍सर और त्‍वचा से संबंधित कई रोगों के इलाज में मददगार है।
    • अर्क, काढ़े या औषधीय घी या तेल के रूप में इसका इस्‍तेमाल कर सकते हैं।
       
  • अश्‍वगंधा
    • अश्‍वगंधा तंत्रिका, प्रजनन और श्‍वसन प्रणाली पर कार्य करती है। इसमें ऊर्जादायक, सूजन-रोधी, शामक, कामोत्तेजक, शक्‍तिवर्द्धक और संकुचक गुण होते हैं।
    • इम्‍युनिटी बढ़ाने वाली जड़ी बूटियों में अश्‍वगंधा भी शामिल है। कमजोर इम्‍युनिटी वाले लोगों में होने वाले सबसे सामान्‍य फंगल संक्रमण कैंडिडाइसिस को नियंत्रित करने में अश्‍वगंधा उपयोगी है। (और पढ़ें - इम्युनिटी बढ़ाने के लिए क्या खाये)
    • अश्‍वगंधा दर्द और थकान से राहत दिलाती है एवं ऊतकों में सुधार को बढ़ावा देती है। ये गठिया में होने वाली सूजन को नियंत्रित करने में असरकारी है।
    • इसे काढ़े, घी, पाउडर या हर्बल वाइन के रूप में ले सकते हैं।
       
  • तुलसी
    • तुलसी पाचन, तंत्रिका और श्‍वसन प्रणाली पर कार्य करती है। इसमें जीवाणु-रोधी, रोगाणुरोधक, ऐंठन-रोधी और दर्द निवारक गुण पाए जाते हैं। 
    • ये परिसंचरण और तंत्रिका तंत्र को साफ करती है एवं इसी वजह से तुलसी फंगल संक्रमण के लिए असरकारी थेरेपी है।
    • तुलसी पाचन में सुधार और अमा को खत्‍म करती है।
    • अर्क, जूस, घी या पाउडर के रूप में तुलसी का इस्‍तेमाल कर सकते हैं।
       
  • वासा
    • वासा श्‍वसन, परिसंचरण, तंत्रिका और उत्‍सर्जन प्रणाली पर कार्य करती है। इसमें ऐंठन-रोधी और कफ-निस्‍सारक गुण होते हैं।
    • ये जड़ी बूटी प्रमुख तौर पर श्‍वसन तंत्र पर कार्य करती है। ये अस्‍थमा, खांसी, टीबी और ब्रोंकाइटिसजैसे रोगों के इलाज में उपयोगी है।
    • इसे फंगल संक्रमण के इलाज में बहुत असरकारी माना जाता है। मच्‍छरों और अन्‍य कीड़े-मकोडों को दूर भगाने के लिए भी इसका इस्‍तेमाल किया जा सकता है। (और पढ़ें - मच्छर काटने पर क्या करना चाहिए)
    • कफ विकारों और इंफ्लुएंजा को नियंत्रित करने के लिए वासा का इस्‍तेमाल कर सकते हैं।
    • अर्क, काढ़े, रस, पुल्टिस या पाउडर के रूप में वासा का इस्‍तेमाल कर सकते हैं।

फंगल संक्रमण के लिए आयुर्वेदिक औषधियां

  • हिंगुलिया माणिक्‍यरस
    • हिंगुलिया माणिक्‍यरस को शुद्ध हिंगुला (हींग), गंधक, हरीतला और पलाश के फूलों के रस से तैयार किया जाता है।
    • इस औषधि में मौजूद हरीतला में जीवाणु-रोधी और फंगल-रोधी गुण होते हैं जो कि स्टैफिलोकॉकस ऑरियस एवं कैंडिडा अल्बिकन्स जैसी प्रजातियों पर असर करते हैं। ये दवा योनि में यीस्ट संक्रमण जैसे कि कैंडिडिआसिस को नियंत्रित करने में उपयोगी है। (और पढ़ें - योनि में यीस्ट संक्रमण का आयुर्वेदिक इलाज)
       
  • दद्रुघ्न वटी
    • गोली के रूप में उपलब्‍ध इस दवा में प्रमुख घटक चक्रमर्द है।
    • ये सबसे बेहतरीन एंटी-फंगल आयुर्वेदिक औषधियों में से एक है। ये सभी प्रकार के त्‍वचा संक्रमणों जैसे कि दाद और सफेद दाग को नियंत्रित करने में उपयोगी है। (और पढ़ें - दाद का आयुर्वेदिक इलाज)
       
  • चंद्रप्रभा वटी
  • आरोग्‍यवर्धिनी वटी
    • त्‍वचा रोगों के इलाज में आरोग्‍यवर्धिनी वटी का अत्‍यधिक इस्‍तेमाल किया जाता है एवं यह एक प्रसिद्ध औषधि है।
    • इसमें त्रिवृत्त, नीम, त्रिफला, अभ्रक भस्‍म (अभ्रक को ऑक्सीजन और वायु में उच्च तामपान पर गर्म करके तैयार हुई) और ताम्र भस्‍म (तांबे को ऑक्सीजन और वायु में उच्च तामपान पर गर्म करके तैयार हुई) आदि शामिल हैं।
    • आरोग्‍यवर्धिनी वटी की इन सामग्रियों में पित्त विरेचन (मल द्वारा पित्त को निकालना), वात अनुलोमन (वात को साफ और नियंत्रित करना) तथा कफ शमन (कफ को साफ करने वाला) वाले गुण हैं।
    • इनके शरीर पर दीपन (भूख बढ़ाने वाले), मेदोहर, पाचन (पाचक) और त्रिदोष शामक (त्रिदोष साफ करने वाले) प्रभाव पड़ते हैं।
    • आरोग्‍यवर्धिनी वटी बढ़े हुए दोष को खत्‍म करने में मदद करती है। ये विभिन्‍न शुद्धिकरण चिकित्‍सा में भी काम आती है।
       
  • कैशोर गुग्‍गुल
    • कैशोर गुग्‍गुल में गुग्‍गुल, गुडूची और त्रिफला प्रमुख सामग्री हैं। ये औषधि बढ़े हुए पित्त को खत्‍म एवं खून को साफ करती है।
    • ये सभी प्रकार के त्‍वचा रोगों जैसे कि फंगल संक्रमण का इलाज करती है। यह त्‍वचा की चमक को भी बढ़ाती है। (और पढ़ें - खूबसूरत त्वचा के लिए आहार)
       
  • गंधक रसायन
    • गधंक रसायन एक पॉलीहर्बल मिश्रण (एक से ज्‍यादा जड़ी बूटी से तैयार) है जिसमें शुद्ध गंधक, गाय का दूध एवं त्‍वाक (दालचीनी) का काढ़ा, इला (इलायची), नागकेसर, त्रिफला, शुंथि, गुडूची का रस, भृंगराज, अदरक एवं विभिन्‍न सामग्रियां शामिल हैं।
    • कैंडिडा अल्बिकन्स के कारण हुए फंगल संक्रमण के इलाज में इस औषधि का इस्‍तेमाल किया जाता है।

व्‍यक्‍ति की प्रकृति और कई कारणों के आधार पर चिकित्‍सा पद्धति निर्धारित की जाती है इसलिए उचित औषधि और रोग के निदान हेतु आयुर्वेदिक चिकित्‍सक से परामर्श करें।

Nimbadi Churna
₹392  ₹450  12% छूट
खरीदें

क्‍या करें

क्‍या न करें

  • प्राकृतिक इच्‍छाओं जैसे कि खाने, प्‍यास, मल त्‍याग या पेशाब आदि को रोके नहीं। (और पढ़ें - पेशाब रोकने के नुकसान)
  • व्यायाम करने या धूप से आने के तुरंत बाद ठंडा पानी न पीएं।
  • अनुचित खाद्य पदार्थ जैसे कि दूध के साथ मछली न खाएं।
  • बहुत ज्‍यादा या मुश्किल से पचने वाली चीजें खाने से बचें।
  • डिब्‍बाबंद चीजें न खाएं।
  • बहुत ज्‍यादा अम्‍लीय या नमकीन चीजों से दूर रहें।
  • दिन के समय सोने से बचें। (और पढ़ें - दिन में सोना अच्छा है या नहीं)

एक मामले के अध्‍ययन में 55 वर्षीय दाद से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति को दिन में दो बार 500-500 मि.ग्रा की मात्रा में आरोग्‍यर्धिनी वटी और कैशोर गुग्‍गुल दवा के साथ मरिच्यादि तेल लगाने के लिए दिया गया। व्‍यक्‍ति के आहार और जीवनशैली में भी कुछ बदलाव किए गए जैसे कि अनुचित खाद्य पदार्थों (जैसे दूध के साथ मछली) को न खाने एवं निजी साफ-सफाई का ध्‍यान रखने की सलाह दी गई।

(और पढ़ें - फंगल इन्फेक्शन की होम्योपैथिक दवा)

उपचार से पहले और बाद के लक्षणों को ध्‍यान में रखा गया है। अध्‍ययन के अंत में व्‍यक्‍ति को खुजली, जलन, त्‍वचा पर लाल दाने, शुष्‍क त्‍वचा और फोड़े फुंसी में सुधार देखा गया। इससे पता चलता है कि फंगल इंफेक्‍शन जैसे कि दाद के इलाज में आयुर्वेदिक चिकित्‍साएं असरकारी होती हैं। 

प्राचीन समय से ही बीमारियों एवं स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याओं के इलाज में आयुर्वेदिक उपचार, जड़ी बूटियों और औषधियों का इस्‍तेमाल किया जा रहा है। वैसे तो आयुर्वेदिक दवाओं को पूरी तरह से प्राकृतिक पदार्थों से बनाया जाता है लेकिन फिर भी इनके इस्‍तेमाल के दौरान हानिकारक प्रभावों से बचने के लिए कुछ सावधानियां बरतनी जरूरी हैं। उदाहरणार्थ:

  • गर्भवती महिलाओं, बच्‍चों, बुजुर्ग, कमजोर और हाई ब्‍लड प्रेशर एवं ह्रदय समस्‍याओं से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति को वमन कर्म नहीं लेना चाहिए।
  • तीव्र पीलिया और हेपेटाइटिस (लिवर में सूजन) की स्थिति में हरिद्रा की सलाह नहीं दी जाती है।
  • दुर्बल (पतले या कमजोर) व्‍यक्‍ति को नीम की सलाह नहीं दी जाती है। (और पढ़ें - कमजोरी दूर करने के घरेलू उपाय)
  • छाती में बलगम जमने पर अश्‍वगंधा नहीं लेनी चाहिए।
  • अत्‍यधिक पित्त वाले व्‍यक्‍ति को तुलसी लेने से बचना चाहिए। 
Skin Infection Tablet
₹496  ₹799  37% छूट
खरीदें

फंगल इंफेक्‍शन को त्‍वचा से संबंधित समस्‍या के तौर पर ही देखा जाता है। हालांकि, कमजोर इम्‍युनिटी वाले व्‍यक्‍ति जैसे कि एचआईवी एड्स या कैंसर या अंग प्रत्यारोपण की स्थिति में (प्रभावित तंत्र या प्रणाली में) इस तरह के संक्रमण अपने आप हो सकते हैं।

(और पढ़ें - फंगल संक्रमण के घरेलू उपाय)

फंगल इंफेक्‍शन की समस्‍या के समाधान के लिए फंगल को बढ़ने से रोका जाता है और इसके लिए फंगल-रोधी दवाओं का इस्‍तेमाल किया जाता है। फंगल संक्रमण के आयुर्वेदिक उपचार से प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूती और प्रधान दोष का इलाज एवं खराब हुए दोष को संतुलित किया जाता है। 

Dr. Harshaprabha Katole

Dr. Harshaprabha Katole

आयुर्वेद
7 वर्षों का अनुभव

Dr. Dhruviben C.Patel

Dr. Dhruviben C.Patel

आयुर्वेद
4 वर्षों का अनुभव

Dr Prashant Kumar

Dr Prashant Kumar

आयुर्वेद
2 वर्षों का अनुभव

Dr Rudra Gosai

Dr Rudra Gosai

आयुर्वेद
1 वर्षों का अनुभव

संदर्भ

  1. Center for Disease Control and Prevention [internet], Atlanta (GA): US Department of Health and Human Services; Types of Fungal Diseases
  2. Ramanjeet Kaur et al. Review on antifungal activities of Ayurvedic Medicinal Plants. Drug Invention Today 2009, 2(2),146-148.
  3. Prasanna Kumar, Vijay Kumar, Yumnam Dhanesori Devi. In-Vitro Antifungal Activity Of Gandhaka Rasayana. International Journal of Ayurvedic Medicine, 2010, 1(2), 93-99.
  4. Dr.Dhanya K Anto, Dr.Acharya MV. [link]. International Journal of Medical and Health Research, Volume 2; Issue 5; May 2016; Page No. 21-22.
  5. National Center for Complementary and Integrative Health [Internet]. Bethesda (MD): U.S. Department of Health and Human Services; What the Science Says About the Effectiveness of Ayurvedic Medicine
  6. National Institute of Indian Medical Heritage (NIIMH). Dadru. Central Council for Research in Ayurvedic Sciences (CCRAS); Ministry of AYUSH, Government of India.
  7. Raman Kaushik, Pragya Sharma. Ayurvedic Management Of Dadru Kustha Vis-À-Vis Tineacorporis : A Case Study. International Case Report International Ayurvedic Medical Journal, Vol.4 Issue 11; November- 2016.
  8. Vaidya Y.G. Joshi. Ayurvediya (Ayurveda) Sarirakriya Vivnana. Chaukhambha Visvabharati; 2010 edition.
  9. Vaidya Vasant Patil. Diagnosis and Management of Tvak Vikaras in Ayurveda . Conference Paper. Agnivesha Ayurveda Anushthan, Banglore. August 2016, DOI: 10.13140.
  10. Oushadhi. Gulika & Tablets. Govt of Kerala. [Internet]
ऐप पर पढ़ें