चमकी बुखार, मुजफ्फरपुर इंसेफेलाइटिस या एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (एइएस) के बारे में लगभग पिछले एक महीने से काफी खबरें आ रही हैं और काफी लोगों में इन रोगों से संबंधित भय बना हुआ है। हर हफ्ते रोगियों की मृत्यु की संख्या लगातार बढ़ रही है, जिसके पीछे के कारण का अभी तक सटीक रूप से पता नहीं चल पाया है, ऐसे में लोगों का इन बीमारियों से डरना आम बात है।

एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम एक काफी व्यापक शब्द है, क्योंकि इसका उपयोग वायरल, बैक्टेरियल और परजीवी संक्रमण से संबंधित स्थितियों के संदर्भ में किया जाता है। ये रोग चाहे किसी भी कारण विकसित हुऐ हों, लेकिन इनसे आमतौर पर लगभग एक ही जैसे लक्षण उत्पन्न होते हैं, जैसे उलझन महसूस होना, प्रलाप, मिर्गी के दौरे पड़ना और मतिभ्रम आदि। वैसे अभी तक इस रोग का कारण बनने वाले किसी विशेष रोगजनक (रोगाणु) का अभी तक पता नहीं लग पाया है। लेकिन इसके ज्यादातर मामलों में दो चीजें समान पाई गई हैं, कुपोषण और खाली पेट लीची खाना। भारत के एनसीडीसी (नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल) और अमेरिका के सीडीसी (सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल) द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट्स के अनुसार गंभीर चमकी बुखार के मामले उन लोगों में पाए गए हैं, जिनके ब्लड शुगर का स्तर 70 मिली ग्राम प्रति डेसीलीटर (mg/dl) से भी कम है। रिपोर्ट्स में यह भी संकेत किया गया है कि बिहार में होने वाली तंत्रिका संबंधी (न्यूरोलॉजिकल) बीमारी के लक्षण एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम की बजाए नोन इन्फ्लेमेट्री एन्सेफैलोपैथी के हैं। ऐसे में यह चिंता का कारण बनता है कि ये कोई संक्रामक रोग होने की बजाए एक मेटाबॉलिज्म संबंधी रोग है, जो पिछले कुछ सालों में कई लोगों की जान ले चुका है।

एनसेफैलोपैथी एक ऐसी स्थिति है, जिसके लक्षण एक्यूट इंसेफेलाइटिस से काफी मिलते झुलते हैं। लेकिन इन दोनों स्थितियों के विकसित होने के कारण अलग-अलग हो सकते हैं, क्योंकि एनसेफैलोपैथी आमतौर पर मस्तिष्क क्षतिग्रस्त होने के कारण विकसित हो सकती है। मस्तिष्क में क्षति होने के कई अलग-अलग कारण हो सकते हैं जैसे मस्तिष्क में चोट लगना, ऑक्सीजन की कमी होना या ब्लड शुगर का स्तर कम (हाइपोग्लाइसीमिया) हो जाना।

लीची में एमसीपीजी और हाइपोग्लासिन (Hypoglycin) जैसे तत्व पाए जाते हैं, जो खून में ग्लूकोज (शुगर) को कम कर देते हैं। इसलिए यह संभावना बढ़ जाती है कि लीची एक्यूट इंसेफेलाइटिस के कारणों से संबंधित हो सकती है या फिर कहीं न कहीं इस स्थिति को बदतर बनाने का काम करती है।

लीची एक्यूट इंसेफेलाइटिस के कारणों से कैसे संबंधित है?

अगर आंकड़ों को देखा जाए, तो पता चलता है कि बिहार में अल्पोषण (कुपोषण) की समस्या काफी अधिक है, जिसके कारण बच्चों में बीएमआई का स्तर कम और एनीमिया के काफी मामले पाए जाते हैं। साथ ही बिहार देश में लीची उत्पादन का केंद्र है, इसलिए ये दोनों स्थितियां स्पष्ट रूप से एक दूसरे से जुड़ती हैं। वास्तव में, “इमर्जिंग इंफेक्शियस डिजीज” नामक पत्रिका में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार इस न्यूरोलॉजिकल रोग (तंत्रिकाओं संबंधी) और लीची के मौसम की शुरुआत के बीच सीधा संबंध देखा गया है। देखा गया है कि मई-जून के महीने में लीची की कटाई होने वाले क्षेत्रों की तुलना में जिन राज्यों में जून-जुलाई के महीने में लीची की कटाई होती है, उनमें एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम के मामलों में बढ़ोतरी होती है।

क्या लीची खाना पूरी तरह से सुरक्षित है?

कुपोषण संबंधी समस्याओं के बारे में जागरुकता फैलाना बहुत जरूरी है, खासतौर पर देश के उन क्षेत्रों में जहां पर लीची की पैदावार होती है। इसके अलावा आपको भी आपके शरीर के पोषण संबंधी स्थिति के बारे में जानकारी होना बहुत जरूरी है ताकि पता लगे की कहीं आपको कुपोषण आदि होने का खतरा तो नहीं है। ध्यान में रखने वाली सबसे जरूरी बात ये है कि लीची को खाली पेट ना खाएं। इस समस्या से संबंधित सही जानकारी फैलाना और अफवाहों से दूर रहने से ही इस स्थिति को दूर किया जा सकता है।

(और पढ़ें - जापानी इंसेफेलाइटिस वैक्सीन क्या है)

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