शीर्ष अमेरिकी ड्रग नियामक एजेंसी फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन यानी एफडीए ने इनमैजब को इबोला वायरस की पहला दवा के रूप में स्वीकृति दी है। इस दवा को अमेरिका की जानी-मानी दवा कंपनी रीजेनेरॉन ने तैयार किया है। एफडीए ने बच्चों और वयस्कों दोनों के इबोला वायरस ट्रीटमेंट के लिए इनमैजब के इस्तेमाल को मंजूरी दी है। एफडीए ने इस मोनोक्लोनल एंटीबॉडी को 'ऑर्फन ड्रग' बताते हुए यह अप्रूवल दिया है। एफडीए और कुछ अन्य ड्रग नियामक प्राधिकरण दुर्लभ बीमारियों के इलाज से जुड़ी एक विशेष श्रेणी की दवाओं के लिए 'ऑर्फन ड्रग' शब्दावली का इस्तेमाल करते हैं। इन दवाओं की बिक्री से मुनाफे की उम्मीद कम होती है। इसके अलावा, इस्तेमाल के लिए मंजूरी देने की प्रक्रिया भी अन्य दवाओं से थोड़ी अलग होती है।
क्या है इनमैजब?
इबोला वायरस के लिए तैयार की गई इनमैजब तीन मोनोक्लोन एंटीबॉडी का एक कॉकटेल है। इनके नाम हैं एटोलटिविमैब, मैफ्टीविमैब और ओडिसीविमैब-ईबीजीएन। मोनोक्लोनल एंटीबॉडी संक्रमण से लड़ने वाले ऐसे प्रोटीन होते हैं, जिन्हें लैब में आइसोलेशन और टेस्टिंग के जरिये बड़ी संख्या में विकसित किया जाता है। ये सिंथैटिक एंटीबॉडी अक्सर कॉन्वलेसेंट प्लाज्मा थेरेपी की तरह फायदेमंद होते हैं। हालांकि इनके निर्माण की प्रक्रिया अक्सर जटिल और खर्चीली होती है।
किस तरह काम करता है इनमैजब एंटीबॉडी?
इबोला वायरस ग्लाइकोप्रोटीन की मदद से स्वस्थ मानव कोशिकाओं में घुसपैठ करता है, जो सेल्स की सतह पर मौजूद होता है। ग्लाइकोप्रोटीन कार्बोहाइड्रेट (ग्लाइकेन) से बनते हैं और प्रोटीन मानव कोशिकाओं का भोजन हैं। इसलिए शरीर के सेल रिसेप्टर इन प्रोटीनों को खुद से बांध लेते हैं और उन्हें कोशिका के अंदर आने देते हैं। इसी का फायदा इबोला और अन्य वायरस उठाते हैं और ग्लाइकोप्रोटीन का इस्तेमाल कर कोशिका में घुस जाते हैं। एक बार अंदर जाने के बाद इबोला अपनी कॉपियां बनाना शुरू कर देता है। इनमैजब में शामिल किए गए तीनों मोनोक्लोनल एंटीबॉडी इबोला के ग्लाइकोप्रोटीन से खुद को बांध लेते हैं और उन्हें स्वस्थ कोशिकाओं से जुड़ने नहीं देते। जब वायरस कोशिका में घुस ही नहीं पाएगा तो लाजमी वह उसे संक्रमित भी नहीं कर पाएगा, जिससे बीमारी का फैलना बंद हो जाएगा।
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स्वीकृति मिलने से पहले इनमैजब को अफ्रीकी देश जैर में इबोला वायरस से बीमार पड़े 154 मरीजों पर आजमाया गया था। इनमें बच्चे और वयस्क दोनों शामिल थे। ट्रायल में कुल 382 मरीजों को शामिल किया गया था। चूंकि यह एक रैंडमाइज्ड कंट्रोल ट्रायल था, इसलिए ड्रग के प्रभावों की तुलना के लिए कुछ मरीजों को यह दवा नहीं दी गई थी। रिपोर्ट के मुताबिक, जिन 154 मरीजों को इनमैजब में शामिल तीनों मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज के 50-50 मिलीग्राम के डोज एक ही शॉट में दिए गए थे, उनमें से 66.2 प्रतिशत की मौत नहीं हुई थी। वहीं, जिन 168 इबोला पीड़ितों को अन्य प्रकार का ट्रीटमेंट दिया गया, उनमें से 51 प्रतिशत की मौत हो गई। एफडीए ने 28 दिनों तक चले इस ट्रायल से जुड़े परिणामों को साझा किया है।
ट्रायल को 2018-19 में ऐसे समय में किया गया था, जब अफ्रीकी देश डेमोक्रैटिक रिपब्लिक ऑफ दि कोंगो (डीआरसी) में इबोला वायरस से महामारी फैल गई थी। ऐसे में अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ और डीआरसी के राष्ट्रीय बायोमेडिकल अनुसंधान संस्थान ने विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ मिलकर इस ट्रायल को अंजाम दिया था, जिसके ज्यादातर परिणाम सकारात्मक निकले हैं। हालांकि अन्य थेरेपी की तरह इनमैजब के भी कुछ साइड इफेक्ट सामने आए हैं। इनमें बुखार, ठंड लगना, दिल की धड़कन बढ़ना, सांस तेज चलना और उल्टी मुख्य रूप से शामिल हैं। कुछ लोगों में एलर्जिक रिएक्शन भी देखने को मिल सकते हैं।
क्या है इबोला वायरस?
यह अफ्रीका महाद्वीप में जन्मा संक्रमण विषाणु है, जिसके प्रभाव में काफी ज्यादा रक्तस्राव होता है। इबोला की चपेट में आने पर शरीर के अंग काम करना बंद कर देते हैं। इस बीमारी की मृत्यु दर काफी ज्यादा है। बताया जाता है कि इससे बीमार होने वाले लोगों में से औसतन आधे मारे जाते हैं। अफ्रीका में दशकों से इबोला अलग-अलग समय पर महामारी के रूप में फैलता रहा है। अब तक हजारों लोग इससे मारे गए हैं। यह वायरस सीधे संपर्क या मरीज के शरीर से निकलने वाले तरल पदार्थों (जैसे ब्लड, उल्टी और मल-मूत्र) के जरिये इन्सानों से इन्सानों के बीच फैल सकता है। इसके अलावा बीमार व्यक्ति के साथ एक ही बिस्तर पर सोने या उसके कपड़े पहनने से भी इबोला वायरस शरीर में फैल सकता है। मृत्यु के बाद भी मरीज इसके संक्रमण को फैला सकते हैं। इसके अलावा, संक्रमित जानवरों के जरिये भी इबोला इन्सानी आबादी में पहुंच सकता है।
अभी तक इबोला वायरस का इलाज नहीं मिला है। हालांकि अलग-अलग ड्रग कैंडिडेट जरूर सामने आए हैं। इनमें रेमडेसिवीर भी शामिल है, जिसे इस साल इबोला के इलाज में असफल पाया गया था। इन दिनों यह दवा कोविड-19 महामारी की वजह बने नए कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-2 के संक्रमण के उपचार को लेकर चर्चा में है। वहीं, इनमैजब बनाने वाली कंपनी रीजेनेरॉन भी अपने कोविड मोनोक्लोनल एंटीबॉडी को लेकर बहस का विषय बनी हुई है। हाल में उसके द्वारा तैयार किए गए एंटीबॉडी को कुछ समय पहले कोरोना वायरस से संक्रमित हुए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के इलाज में इस्तेमाल किया गया था। ट्रंप का दावा है कि वे इस एंटीबॉडी ट्रीटमेंट के चलते ठीक हुए हैं।