मेटाबॉलिज्म के माध्यम से शरीर खाए गए भोजन को ऊर्जा में बदलने का काम करता है. दरअसल, खाने के बाद शरीर कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और फैट को तोड़ने का काम शुरू कर देता है. इससे शरीर में पर्याप्त ऊर्जा का संचार हो पाता है, लेकिन कुछ स्थितियां मेटाबॉलिज्म के कार्य में रुकावट पैदा कर सकती हैं. इसमें डायबिटीज भी शामिल है.

आप यहां दिए लिंक पर क्लिक करके जान सकते हैं कि डायबिटीज का आयुर्वेदिक इलाज क्या है.

आज इस लेख में आप डायबिटीज और मेटाबॉलिज्म में संबंध के बारे में विस्तार से जानेंगे -

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  1. डायबिटीज से मेटाबॉलिज्म कैसे प्रभावित होता है?
  2. डायबिटीज प्रोटीन मेटाबॉलिज्म को कैसे प्रभावित करता है?
  3. डायबिटीज फैट मेटाबॉलिज्म को कैसे प्रभावित करता है?
  4. सारांश
डायबिटीज और मेटाबॉलिज्म में संबंध के डॉक्टर

जब कोई व्यक्ति कार्बोहाइड्रेट खाता है, तो शरीर उसे तोड़ना शुरू कर देता है. इससे ग्लूकोज बनता है. फिर यह ग्लूकोज रक्त प्रवाह में जाता है और शरीर की सभी कोशिकाओं को ऊर्जा प्रदान करता है.

अग्न्याशय इंसुलिन हार्मोन को रिलीज करता है. यह हार्मोन लिवर को रक्त से ग्लूकोज को हटाने और इसे ग्लाइकोजन में बदलने के लिए कहता है. फिर इसे शरीर बाद में उपयोग करता है. वहीं, डायबिटीज वाले लोगों में इंसुलिन का स्तर जरूरत से कम हो जाता है.

डायबिटीज को मेटाबॉलिक डिसऑर्डर माना गया है. डायबिटीज होने पर शरीर भोजन से मिलने वाली ऊर्जा को संग्रहित करने की क्षमता को सीधे तौर पर प्रभावित करता है. दरअसल, ऐसा इंसुलिन का उत्पादन प्रभावित होने के कारण होता है.

शरीर में इंसुलिन का उत्पादन न होने या कम होने से मेटाबॉलिज्म पर भी असर पड़ता है. यह स्थिति शरीर को भोजन से मिलने वाली ऊर्जा को संग्रहित करने से रोक सकती है. टाइप 1 डायबिटीज में मेटाबॉलिज्म इसलिए प्रभावित होता है, क्योंकि प्रतिरक्षा प्रणाली इंसुलिन बनाने वाली कोशिकाओं पर हमला कर रही होती है. वहीं, टाइप 2 डायबिटीज में शरीर इंसुलिन के साथ-साथ प्रतिक्रिया करना भी बंद कर देता है -

टाइप 1 डायबिटीज

टाइप 1 डायबिटीज होने पर शरीर में इंसुलिन का स्तर कम या फिर बिल्कुल नहीं होता है. दरअसल, टाइप 1 डायबिटीज में प्रतिरक्षा प्रणाली गलती से अग्न्याशय में कोशिकाओं पर हमला करना शुरू कर देती हैं. ऐसे में टाइप 1 डायबिटीज वाले लोगों को जीवन भर इंसुलिन इंजेक्शन की जरूरत होती है. टाइप 1 डायबिटीज बच्चों या फिर वयस्कों को हो सकता है.

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टाइप 2 डायबिटीज

टाइप 2 डायबिटीज वाले लोगों में शरीर इंसुलिन के साथ-साथ प्रतिक्रिया देना भी बंद कर देता है. इससे शुगर का स्तर बहुत ज्यादा बढ़ जाता है. इस स्थिति में शरीर में पर्याप्त रूप से ऊर्जा का उपयोग नहीं कर पाता है. टाइप 2 डायबिटीज टाइप 1 की तुलना में अधिक सामान्य है. 

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शरीर कार्बोहाइड्रेट के साथ ही प्रोटीन को भी ऊर्जा के स्रोत के रूप में उपयोग कर सकता है. दरअसल, कुछ स्थितियों में शरीर ऊर्जा के लिए अपनी मांसपेशियों से प्रोटीन को तोड़ सकता है. इसे केटाबोलिज्म कहा जाता है. एक रिसर्च के अनुसार टाइप 1 डायबिटीज वाले लोग केटाबोलिज्म का अनुभव कर सकते हैं. इन लोगों की मांसपेशियों में कमी आ सकती है, लेकिन टाइप 2 डायबिटीज वाले लोगों में प्रोटीन मेटाबॉलिज्म समान रूप से प्रभावित नहीं होता है.

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जब किसी व्यक्ति के शरीर में पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन हार्मोन का उत्पादन होता है, तो उनका शरीर ग्लूकोज का प्रभावी ढंग से उपयोग करने में सक्षम हो पाता है. वहीं, जब किसी व्यक्ति के शरीर में इंसुलिन पर्याप्त नहीं होता है, तो शरीर फैट का उपयोग कर पाने में सक्षम नहीं हो पाता है. आपको बता दें कि यह एक प्रक्रिया के माध्यम से होता है, जिसे किटोसिस कहा जाता है यानी जब डायबिटीज में कोई व्यक्ति फैट का उपयोग नहीं कर पाता है, तो उसका मेटाबॉलिज्म प्रभावित हो सकता है.

दरअसल, कीटोसिस के दौरान शरीर कीटोन्स रिलीज करता है. कीटोन्स केमिकल्स होते हैं, जो फैट से टूट जाते हैं. अगर कीटोन्स का स्तर अधिक होता है, तो ये ब्लड एसिड का कारण बन सकते हैं. यह स्थिति बेहद गंभीर हो सकती है, इसे डायबिटीज केटोएसिडोसिस (डीकेए) के रूप में जाना जाता है. आपको बता दें कि डीकेए मुख्य रूप से टाइप 1 डायबिटीज वाले लोगों में होता है, लेकिन यह टाइप 2 मधुमेह वाले लोगों में भी विकसित हो सकता है. इस स्थिति में व्यक्ति को तुरंत इलाज की जरूरत होती है.

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डायबिटीज शरीर के मेटाबॉलिज्म को प्रभावित कर सकता है. आपको बता दें कि डायबिटीज ऊर्जा को संसाधित और संग्रहित करने की प्रक्रिया को बाधित कर सकता है. दरअसल, ऐसा शरीर में इंसुलिन हार्मोन की कमी के कारण होता है. यह ऐसा हार्मोन है, जो रक्त में ग्लूकोज की मात्रा को नियंत्रित करता है. ऐसे में जब शरीर में पर्याप्त इंसुलिन नहीं होता है, तो ब्लड शुगर का स्तर काफी अधिक हो जाता है, इसकी वजह से व्यक्ति को तरह-तरह की समस्याएं होने लगती हैं.

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