आंखें हमारे शरीर का अहम हिस्सा हैं, आंखों की वजह से ही हम सामाजिक घटनाओं के गवाह बनते हैं। आंखों के जरिए हम सब कुछ देख सकते हैं। एक पल के लिए भी अगर आंखों की रोशनी चली जाए या खराब हो जाए तो... ये खयाल ही हमें अंदर से हिलाकर रख देता है। जिनकी आंखें खराब होती हैं, उनका जीवन रंगहीन और अंधकारमय हो जाता है।

आज हम आपको आंखों की बीमारियों के बारे में नहीं बता रहे, बल्कि इन बीमारियों की बढ़ती तदात से रू-ब-रू करा रहे हैं। ताकि आने वाले समय में आप इसका शिकार ना हो जाएं। दरअसल मौजूदा समय में बीमारियों का ग्राफ या स्तर तेजी से बढ़ा है, जिससे एक व्यक्ति का जीवन बहुत हद तक प्रभावित हुआ है।

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  1. कई बीमारियां आंखों को कर रहीं प्रभावित
  2. क्या कहती है रिपोर्ट?
  3. डायबिटीज से रेटिना को कैसे हो रहा नुकसान?
  4. डायबिटीज रेटिनोपैथी के लक्षण
  5. डायबिटीज रेटिनोपैथी से कैसे करें बचाव?
  6. सारांश

डायबिटीज, हृदय रोग और अन्य कई पुरानी बीमारियां व्यक्ति के सिर्फ एक अंग को प्रभावित नहीं करती, बल्कि इन बीमारियों की वजह से हमारे शरीर का पूरा सिस्टम प्रभावित होता है। आंखों पर भी इनका नकारात्मक असर पड़ा है, जिससे आंखों के रेटिना में सूजन की समस्या भी आ रही है। इससे व्यक्ति अंधा भी हो सकता है।

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हार्वर्ड हेल्थ में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका में 3 करोड़ से ज्यादा लोग डायबिटीज (शुगर और मधुमेह) से ग्रसित हैं और करीब 77 लाख लोग इसके साथ रेटिनोपैथी (आंखों की रेटिना का खराब होना, जिससे आंखों की रोशनी प्रभावित होती है) की समस्या से जूझ रहे हैं। बाद में यह समस्या सामान्य तौर पर वयस्कों में अंधेपन या धुंधलेपन का कारण बनती है।

आंकड़ों के तौर पर देखा जाए तो पिछले दो दशकों यानि 20 सालों में डायबिटीज रेटिनोपैथी की समस्या काफी हद तक बढ़ी है, जिसका एक प्रमुख कारण शुगर या मधुमेह से पीड़ित लोगों की संख्या में वृद्धि का होना है।

वहीं भारत के परिपेक्ष से देखा जाए तो हमारे देश में अमेरिका की तुलना में डायबिटीज रोगियों की संख्या अधिक है। एक अनुमान के तौर पर हमारे यहां शुगर के मरीजों का आंकड़ा करीब 4 करोड़ है। डायबिटीज मरीजों की संख्या के मामले में भारत पूरी दुनिया में नंबर एक पर है।

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रेटिना ऊतकों की एक पतली परत होती है, जो आंख के पिछले भाग में अंदर की तरफ फैली होती है। यह ऑप्टिक नर्व के पास स्थित होती है। रेटिना का काम उस रोशनी को आगे पहुंचाना है, जिस पर आंख का लेंस फोकस कर रहा होता है। उसके बाद इस रोशनी को तंत्रिका संकेतों में बदल कर उसे मस्तिष्क तक भेज दिया जाता है।

डायबिटीज की स्थिति में हाई ब्लड शुगर का स्तर रक्त वाहिकाओं यानि ब्लड सेल्स को नुकसान पहुंचाता है, जिस नुकसान के चलते ब्लड सेल्स से खून का रिसाव हो जाता है। इसके कारण रेटिना को पर्याप्त या उचित मात्रा में ऑक्सीजन नहीं मिल पाती और इस वजह से व्यक्ति रेटिना इस्केमिया से ग्रसित हो जाता है। परिणामस्वरूप रेटिना की कोशिकाएं नष्ट होने लगती हैं और उनकी कार्यक्षमता खत्म हो जाती है।

इतना ही नहीं, इस स्थिति में डायबिटीज सीधे तौर पर रेटिना के न्यूरॉन्स (तंत्र कोशिकाएं, जो रेटिना से मिले संदेशों को ट्रांसफर करती हैं) को भी नुकसान पहुंचाती हैं। इस तरह डायबिटीज के दोहरे आक्रामण से रेटिनोपैथी की समस्या पैदा होती है।

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रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिकन डायबिटीज एसोसिएशन यह सुझाव देती है कि डायबिटीज या शुगर से ग्रसित लोग रेटिनोपैथी के जोखिम को रोकने के लिए अपने A1c स्तर (पिछले दो से तीन महीनों में मापा गया औसतन ब्लड शुगर का स्तर) को 7 प्रतिशत से कम रखते हैं तो उनको मदद मिल सकती है।

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दरअसल ब्लड शुगर सीधे तौर पर रेटिना की रक्त वाहिकाओं (ब्लड सेल्स) को नुकसान पहुंचाता है और इसके कुछ एपिडेमियोलॉजिकल (मेडिकल की वह शाखाएं, जो बीमारी नियंत्रित से जुड़ी हैं) प्रमाण मिले हैं जो यह बताते हैं कि ब्लड शुगर को नियंत्रित करके डायबिटीज रेटिनोपैथी में कमी लाई जा सकती है।

रिपोर्ट के आधार पर देखा जाए तो रेटिनोपैथी कोई नई बीमारी नहीं है, लेकिन पिछले 20 सालों में इसके मामलों में काफी हद तक बढ़ोतरी हुई है, जो कि एक चिंता का विषय है। मगर ब्लड शुगर को नियंत्रित किया जाए तो भविष्य में होने वाली इस समस्या को कम किया जा सकता है।

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