प्रिवेंटिव मेडिकेशन की मदद से डायबिटीज के मरीजों में हार्ड अटैक के खतरे को कम किया जा सकता है। डेनमार्क स्थित आरहुस यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल के शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन के हवाले से यह जानकारी दी है। हाल में उन्होंने यूरोपियन सोसायटी ऑफ कार्डियोलॉजी के वार्षिक सम्मेलन में अपने अध्ययन के परिणाम सामने रखे थे। इसमें इन वैज्ञानिकों ने बताया कि प्रिवेंटिव मेडिकेशन का इस्तेमाल बढ़ाने से उन्हें टाइप 2 डायबिटीज के मरीजों में हार्ट अटैक का खतरा नाटकीय रूप से कम करने में कामयाबी मिली है। इस बारे में अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ता और आरहुस यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल की डॉ. क्रिस्टिन गिल्डिनकेर्न का कहना है, 'हमारे परिणाम बताते हैं कि टाइप 2 डायबिटीज होने का पता चलने पर हृदय रोग निरोधक दवाएं लेने से हार्ट अटैक और अकाल मृत्यु के खतरे पर पर्याप्त रूप से असर पड़ता है।'

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  1. टाइप 2 डायबिटीज में हृदय रोग का खतरा दाेगुना - स्टडी
  2. दवा से होता है हार्ट अटैक का खतरा कम

मेडिकल जानकारों के मुताबिक, सामान्य स्वास्थ्य वाले लोगों की अपेक्षा टाइप 2 डायबिटीज के मरीजों में हार्ट अटैक और हृदय रोग से मरने का खतरा दोगुना ज्यादा होता है। बीते दो दशकों के दौरान टाइप 2 डायबिटीज के मरीजों के इलाज से जुड़े मेडिकल प्रबंधन में उल्लेखनीय बदलाव हुए हैं। ऐसे मरीजों में हृदय वाहिनी (कार्डियोवस्कुलर) संबंधी रोगों की रोकथाम पर ज्यादा ध्यान दिया गया है। आरहुस में हुआ अध्ययन इसी सिलसिले में किया गया नया प्रयास है। इसमें वैज्ञानिकों ने यह जानने की कोशिश की टाइप 2 डायबिटीज के मेडिकल प्रबंधन में आए परिवर्तनों का हार्ट अटैक और कार्डियोवस्कुलर बीमारी से मरने के खतरे पर क्या असर पड़ा है। अध्ययन ऐसे लोगों पर किया गया जो टाइप 2 डायबिटीज के नए मरीज थे और पहले कभी हृदय वाहिनी संबंधी रोग से पीड़ित नहीं रहे।

इसके लिए वैज्ञानिकों ने डेनमार्क में टाइप 2 डायबिटीज के उन मरीजों को आइडेंटिफाई किया, जिन्होंने 1996 से 2011 के बीच अपनी समस्या का इलाज कराना शुरू किया था। इस दौरान कोई दो लाख 11 हजार 278 मरीजों की पहचान की गई। इनमें से हरेक की तुलना आबादी में शामिल सामान्य स्वास्थ्य वाले हर पांच लोगों से की गई। यह काम लिंग और आयु के आधार पर किया गया। ऐसा करते हुए उन लोगों को अलग कर दिया गया, जो पहले कार्डियोवस्कुलर डिसीज से पीड़ित रहे हैं। बाद में सभी प्रतिभागियों का सात सालों तक फॉलोअप किया गया। इस दौरान शोधकर्ताओं ने डेनमार्क की नेशनल हेल्थ रजिस्ट्री की मदद से हार्ट अटैक और हृदय रोग से जुड़े मामले रिकॉर्ड किए। साथ ही डायबिटीज के डायग्नॉसिस के समय हृदय वाहिनी से जुड़ी बीमारी को रोकने के लिए अपनाए गए प्रिवेंशन मेडिकशन को नोट किया गया।

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इस प्रयास में वैज्ञानिकों को पता चला कि जो लोग टाइप 2 डायबिटीज के नए-नए मरीज बने थे, लेकिन पहले कभी हृदय रोग से पीड़ित नहीं रहे, उनमें बढ़े हुए मेडिकेशन से हार्ट अटैक और इससे मरने का खतरा काफी ज्यादा कम हो गया था। हालांकि क्रिस्टीन ने यह भी माना कि ये परिणाम केवल प्रिवेंटिव मेडिकेशन की मदद से नहीं मिले, बल्कि इसमें अन्य फैक्टर्स की भी भूमिका रही। इनमें स्मोकिंग बंद करना, फिजिकल एक्टिविटी (जैसे व्यायाम), स्वस्थ भोजन जैसे कारण शामिल हैं।

अध्ययन के मुताबिक, मेडिकेशन की मदद से 1996 से 2011 के बीच ऐस लोगों में हार्ट अटैक का तुलनात्मक खतरा 61 प्रतिशत तक कम हो गया था और मृत्यु का खतरा 41 प्रतिशत तक कम हो गया था। इसी अवधि के दौरान चार प्रतिशत प्रतिभागियों में हार्ट अटैक का खतरा पूरी तरह खत्म हो गया था, जबकि मौत का खतरा 12 प्रतिशत प्रतिभागियों में पूरी तरह चला गया था। वहीं, जब मरीजों की तुलना जनरल पॉपुलेशन से की गई तो समय के साथ हार्ट अटैक का खतरा कम दर्ज किया गया। अध्ययन के अंत में डायबिटीज के मरीजों में हार्ट अटैक का खतरा 0.6 प्रतिशत रह गया। हालांकि सामान्य आबादी के लिहाज से यह ज्यादा रहा।

अध्ययन में शोधकर्ताओं ने डायबिटीज के मरीजों में कोलेस्ट्रॉल कम करने वाले मेडिकशन को दस गुना बढ़ाया था। एस्पिरिन का इस्तेमाल 50 प्रतिशत तक बढ़ाया गया था और ब्लड प्रेशर कम करने वाली दवाओं में चार गुना बढ़ोतरी की गई थी। इनसे मिले परिणामों पर डॉ. क्रिस्टीन ने कहा है, '1996 से 2011 के बीच टाइप 2 डायबिटीज के नए मरीजों, जिनमें पहले से कार्डियोवस्कुलर डिसीज नहीं थी, में हार्ट अटैक और मौत का खतरा लगभग आधा हो गया था। वहीं, इस दौरान आम जनसंख्या से तुलना करने पर डायबिटीक लोगों में हार्ट अटैक और मौत का खतरा काफी हद तक कम होता पाया गया था।'

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