अमेरिका में हुए एक हालिया अध्ययन में पता चला है कि पाइनएपल यानी अनानास कोरोना वायरस के खिलाफ बतौर एंटीवायरल एजेंट के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। स्टडी में शामिल शोधकर्ताओं का यह भी कहना है कि भविष्य में भी कोरोना वायरस से बचाने में अनानास कारगर हो सकता है। हालांकि यहां स्पष्ट कर दें कि यह अध्ययन और इससे जुड़े परिणाम अभी तक किसी मेडिकल जर्नल में प्रकाशित नहीं हुए हैं। इनकी समीक्षा होना बाकी है। फिलहाल इसे मेडिकल शोधपत्र ऑनलाइन मुहैया कराने वाले प्लेटफॉर्म बायोआरकाइव पर पढ़ा जा सकता है।

अभी तक हुए अध्ययनों से यह मालूम चला है कि कोविड-19 महामारी की वजह बने नए कोरोना वायरस को मानव कोशिका में घुसने के लिए तीन चीजों की जरूरत है - ट्रांसमेम्ब्रेन सीरीन प्रोटीन 2 (टीएमपीआरएसएस2), स्पाइकग्लाइको प्रोटीन (एस-प्रोटीन) और एंजियोटेनसिन-कनवर्टिंग एंजाइम 2 (एसीई2) रिसेप्टर। अध्ययन से जुड़े वैज्ञानिकों का दावा है कि अनानास में पाया जाने वाला एक एंजाइम इन तीनों के खिलाफ एक अवरोधक के रूप में काम करता है, जिसके चलते वायरस कोशिकाओं को संक्रमित नहीं कर पाता।

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इस समय कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों का अलग-अलग एंटीवायरल, एंटी-इनफ्लेमेटरी और एंटी-मलेरियल एजेंट्स की मदद से इलाज किया जा रहा है। मरीजों के ठीक होने के लिहाज से इन एजेंट से मिलने वाले परिणाम तुलनात्मक रूप से मामूली बताए जाते हैं। वहीं, इन ड्रग्स की क्षमता और सुरक्षा को लेकर पुष्टि किए जाने की जरूरत महसूस की जाती रही है। उधर, पहले से मौजूद दवाओं में बदलाव कर या नए एंटीवायरल विकसित कर सार्स-सीओवी-2 को खत्म करना अभी दूर की बात लगती है। तमाम बहस के बीच यह सवाल खड़ा हुआ है कि क्या ब्रोमलेन को कोरोना वायरस के खिलाफ बतौर एंटीवायरल एजेंट इस्तेमाल किया जा सकता है। यह एक डायट्री सप्लिमेंट है, जो अनानास में पाया जाता है। दर्द, इनफ्लेमेशन और थ्रोम्बोसिस से पीड़ित लोगों के इलाज के लिए अनानास से ब्रोमलेन को आइसोलेट किया जाता है।

इस तथ्य ने अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ नेब्रास्का मेडिकल सेंटर और सेंटर फॉर बायोलॉजिक्स इवैलुएशन एंड रिसर्च (सीबीईआर) के वैज्ञानिकों को इस हाइपोथीसिस (परिकल्पना) पर काम करने के लिए प्रेरित किया कि क्या अनानास या कहें इसमें पाए जाने वाले एंजाइम ब्रोमलेन को कोरोना वायरस के मरीजों के इलाज में इस्तेमाल किया जा सकता है।

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एसीई2 और टीएमपीआरएसएस2 में सिस्टीन (एक सल्फर युक्त अमीनो एसिड जो ज्यादातर प्रोटीन में पाया जाता है) भरा होता है। शोधकर्ताओं ने एसीई2 और टीएमपीआरएसएस2 पर ब्रोमलेन के प्रभाव की पुष्टि की है, जो एक प्रकार का सिस्टीन प्रोटीज है। इसके लिए वैज्ञानिकों ने अफ्रीका में पाए जाने वाले ग्रीन बंदर की किडनी वाहिका (वीरो ई6) से संबंधित कोशिकाओं को वायरस से संक्रमित करने के लिए बतौर प्राइमरी सेल के रूप में चुना। इस दौरान, सार्स-सीओवी-2 के 45 नमूनों के जीनोम सीक्वेंस का गहन विश्लेषण किया गया। शोधकर्ताओं ने इन वायरस के क्लोन तैयार किए और उन्हें वीरो ई6 में इन्जेक्ट किया।

इसके बाद ब्रोमलेन आधारित ट्रीटमेंट से वाहिका में एसीई2 और टीएमपीआरएसएस2 के प्रभाव को कम करने की कोशिश की गई, जिसमें वैज्ञानिकों ने कामयाबी मिलने का दावा किया है। अध्ययन में मिले अन्य सकारात्मक परिणामों के आधार पर शोधकर्ताओं ने कहा है कि शरीर में कोरोना वायरस को फैलने का रास्ता देने वाले तीनों होस्ट - एसीआई2, टीएमपीआरएसएस2 और (सार्स-सीओवी-2 का) स्पाइक प्रोटीन - पर हमला करते हुए ब्रोमलेन नए कोरोना वायरस को फैलने से रोक सकता है।

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