नए कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-2 से शरीर को होने वाले नुकसानों को लेकर काफी कुछ बताया जा चुका है। कई अध्ययनों में कहा गया है कि यह वायरस सिर्फ फेफड़ों को नहीं, बल्कि हृदय, किडनी, लिवर और मस्तिष्क जैसे महत्वपूर्ण मानव अंगों को क्षतिग्रस्त कर सकता है। बताया जाता है कि मानव कोशिकाओं में घुसने के लिए वायरस एसीई2 रिसेप्टर का इस्तेमाल करता है, जिसके कई खतरे हो सकते हैं। इनमें कई अंगों के खराब होने (मल्टीपल ऑर्गन फेलियर) का खतरा भी शामिल है। लेकिन स्पेन की जारागोजा यूनिवर्सिटी के एक वैज्ञानिक का कहना है कि सार्स-सीओवी-2 कई अंगों को डैमेज नहीं करता, बल्कि ऐसा वह चयनित तरीके से करता है। इस वैज्ञानिक की मानें तो नया कोरोना वायरस कुछ विशेष अंगों को निशाना बनाता है, जबकि बाकी अंग इसके असर से बच जाते हैं।

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केओस नामक पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में वैज्ञानिक एर्नेस्तो एस्त्रादा ने बताया है कि आखिर क्यों एसीई2 रिसेप्टर युक्त होने के बाद भी कुछ खास मानव अंग सार्स-सीओवी-2 कोरोना वायरस से प्रभावित नहीं होते हैं। एर्नेस्तो कहते हैं, 'यह रिसेप्टर अधिकतर मानव अंगों में पाया जाता है। इसलिए वायरस पूरी बॉडी में सर्कुलेट होता है तो यह अन्य अंगों को भी नुकसान पहुंचा सकता है। हालांकि, सबको डैमेज करने के बजाय वायरस कुछ अंगों के साथ ही ऐसा करता है।' एर्नेस्तो का मानना है कि ऐसा होने की वजह वायरस के किसी और तरीके से ट्रांसमिट होना हो सकता है। यह साबित करने के लिए उन्होंने फेफड़ों के प्रोटीनों को डिस्प्लेस (स्थान से हटना) कर उन्हें बाकी अंगों के प्रोटीनों से इंटरेक्ट कराकर देखा।

एर्नेस्तो ने बताया, 'प्रोटीन का प्रोटीन से इंटरेक्शन होने पर डिफ्यूसिव (फैलाने वाला) प्रोसेस देखने को मिलता है, जिससे एक प्रोटीन नेटवर्क (पीपीआई) बनता है। इसे सार्स-सीओवी-2 (कोशिका में घुसने के लिए) एक अलग रास्ते के रूप में निशाना बनाता है। हमने एक दूसरे सबडिफ्यूसिव रूट का पता लगाया है जो एक खास दर पर पीपीआई नेटवर्क के जरिये वायरस को गड़बड़ी करने का मौका देता है। पीपीआई नेटवर्क में इस मुख्य सबडिफ्यूसिव रूट का पता लगाते हुए हमने पाया है कि हृदय, सेरेब्रल कोर्टेक्स (मस्तिष्क का एक अंदरूनी भाग), थाइमस, टेस्टिस (वृषण), लिम्फ नोड, किडनी जैसे मानव अंग कोविड-19 होने पर ज्यादा प्रभावित होते हैं।' एर्नेस्तो कहते हैं कि प्रोटीन अलग-अलग रूटों के जरिये मानव अंगों में ट्रैवल करते हैं। लेकिन वायरस के प्रभाव के चलते उनमें किस तरह के बदलाव आते हैं, यह जानने के लिए अभी और अध्ययन किए जाने की जरूरत है।

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एर्नेस्तो ने स्पष्ट करते हुए कहा है कि दो प्रोटीनों को एक दूसरे का पता लगाकर एक इंटरेक्शन कॉम्प्लेक्स स्थापित करना होता है। इसके लिए वे कोशिका के अंदर सबडिफ्यूसिव रूट के जरिये मूव करते हैं। यह ऐसा है मानो कोई शराबी किसी भीड़भाड़ वाली गली में चला रहा है, जहां लोग उसे उसकी मंजिल तक पहुंचने से रोक रहे हैं। इसी तरह एक कोशिका में प्रोटीनों को कई प्रकार की चुनौतियों का सामना करना होता है, जिनसे होते हुए वे इंटरेक्ट करते हैं। कुछ प्रोटीन कोशिका या ऑर्गन के अंदर ही इंटरेक्ट करते हैं, लेकिन बाकी के साथ ऐसा नहीं है। ऐसा उनके जटिल मकैनिज्म के कारण है। 

ऐसे में एर्नेस्तो ने 59 प्रकार के अलग-अलग प्रोटीनों को समझने के लिए गणितीय मॉडल विकसित किया है। ये सभी प्रोटीन फेफड़ों में पाए जाते हैं, जो अन्य मानव अंगों को प्रभावित करने में सक्रियता पैदा करने का काम करते हैं। इससे अंगों में प्रोटीन इंटरेक्शन की एक चेन सक्रिय होती है, जिसे प्रोटीनों में बदलाव होने लगते हैं। यह तब तक होता है, जब तक कि संक्रमित व्यक्ति का स्वास्थ्य इससे प्रभावित न हो। एर्नेस्तो की मानें तो पहले से मौजूद दवाओं से ऐसे कुछ विशेष प्रोटीनों को टार्गेट करने से फेफड़ों के अलावा अन्य अंगों के प्रोटीनों में होने वाली गड़बड़ी रुक जाएगी और मल्टीपल-ऑर्गन फेलियर नहीं होगा।

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