भारत में कोरोना वायरस के मरीजों की संख्या 1,250 से ज्यादा हो गई है। हालांकि सोमवार को स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा अपडेट किए गए टेबल में 46 मामले कम दिखाई पड़ते हैं। इन 46 लोगों के बारे में मंत्रालय ने अलग से जानकारी दी है। उसने बताया है कि उसने राज्य सरकारों को इन लोगों की 'कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग' करने को कहा है। इस रिपोर्ट में जानेंगे कि कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग क्या है और कोविड-19 या व्यापक स्तर पर फैल चुकी किसी भी संक्रामक बीमारी को रोकने के संबंध में इसका क्या महत्व है।

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क्या है कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग?
कोविड-19, इबोला आदि संक्रामक रोगों से बीमार हुए या मारे गए लोगों के करीबियों के भी वायरस से संक्रमित होने की काफी ज्यादा संभावना होती है। इन करीबी लोगों में मरीज की पत्नी, संतान, माता-पिता, भाई-बहन, अन्य रिश्तेदार और मित्र शामिल होते हैं। यह तथ्य अब सभी जानते हैं कि कोरोना वायरस के लक्षण मरीज में कुछ दिनों के बाद दिखाई पड़ते हैं। उसे पता ही नहीं चलता कि वह जानलेवा बीमारी की चपेट में है। ऐसे में वह सामान्य रूप से इन करीबी लोगों से मिलता-जुलता रहता है। बाद में जब उसके बीमार होने की पुष्टि होती है, तो सरकार और प्रशासन की मेडिकल जांच के घेरे में पीड़ित के ये करीबी लोग भी आ जाते हैं, क्योंकि इसकी काफी संभावना होती है कि मरीज के संपर्क में आने की वजह से वायरस इन लोगों के शरीर में प्रवेश कर गया हो।

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ऐसे में यह पुष्टि करने के लिए कि पीड़ित के इन करीबी लोगों में बीमारी फैली है या नहीं, सरकार अधिकारियों के जरिये मरीज से उन सभी लोगों की जानकारी लेती है जो हाल के समय में उसके संपर्क में आए। इन लोगों का पता लगाने के बाद सरकार इन पर कुछ दिन (14 या 21) नजर रखती है। इसे कहते हैं 'कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग'। यह एक तरह का जासूसी वाला काम है, जिसमें पता लगाया जाता है कि मरीज के संपर्क में आने वाले व्यक्ति संक्रमित हुए हैं या नहीं। अगर हुए हैं तो वे किन-किन लोगों के संपर्क में आए हैं। एक बार ऐसे लोगों का पता लगाने के बाद उन्हें आइसोलेट या क्वारंटाइन किया जाता है। अगर उनके बीमार होने की पुष्टि होती है, तो आइसोलेशन की प्रक्रिया अपनाई जाती है। वहीं, संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने के बाद भी बीमारी के लक्षण नहीं दिखते, तो क्वारंटाइन का विकल्प अपनाया जाता है ताकि संक्रमण से प्रभावित होने की सूरत में वह व्यक्ति और लोगों को संक्रमित न कर दे।

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निपाह वायरस के समय केरल ने अपनाई थी यह तकनीक
भारत के केरल राज्य में कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग के तहत वायरस को नियंत्रित करने का काम पहले भी किया जा चुका है। 2018 में जब निपाह वायरस ने केरल के लोगों को बीमार करना शुरू किया तो इसे रोकने के लिए राज्य सरकार ने लोगों को ट्रेस करना शुरू किया। इसके तहत हर उस व्यक्ति की निगरानी की गई जो वायरस से संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आया था। इससे कई महत्वपूर्ण जानकारियां मिलीं, मसलन, पीड़ित हालिया समय में कहां-कहां गया और किन-किन लोगों से मिला। इससे बाकी लोगों को ट्रेस करने और आइसोलेशन या क्वारंटाइन की प्रक्रिया आसान हो जाती है।

गौरतलब है कि कोरोना वायरस से निपटने में भी केरल सरकार यही तकनीक अपना रही है। भारत में कोविड-19 के पहले तीन मरीजों की पुष्टि केरल में ही हुई थी। तीनों मामले जनवरी के अंत और फरवरी की शुरुआत में सामने आए थे। लेकिन उसके बाद अगले एक महीने तक केरल में कोई भी नया मामला सामने नहीं आया था। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, इसकी एक बड़ी वजह कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग को अपनाने की नीति रही। वहीं, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक, जब इबोला वायरस ने अफ्रीका महाद्वीप को अपनी चपेट में लिया, तो कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग के जरिये ही उसे नियंत्रित करने का प्रभावी काम संभव हो पाया।

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