कोविड-19 महामारी को एक साल पूरा होने को है, लेकिन वायरस को लेकर लगभग हर दिन नई जानकारी सामने आ रही है। ब्रिटेन के शोधकर्ताओं की एक नई स्टडी में पता चला है कि कोरोना के हल्के लक्षण वाले या फिर एसिम्टोमैटिक रोगियों में संक्रमित होने के छह महीने के बाद तक "सेलुलर इम्यूनिटी" बरकार रहती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस सेलुलर इम्यूनिटी से इन लोगों को कम से कम उस समय के लिए संक्रमण से कुछ स्तर की सुरक्षा मिल सकती है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इस अध्ययन को bioRvix में ऑनलाइन प्रकाशित किया गया है। लेकिन अन्य विशेषज्ञों द्वारा अभी इस रिसर्च की समीक्षा की जानी बाकी है।

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कैसे की गई रिसर्च?
इस रिसर्च के तहत शोधकर्ताओं ने ब्रिटेन में कोविड-19 के 100 रोगियों से जुड़े आंकड़े पेश किए। यह वह रोगी थे, जिन्हें कोरोना वायरस से संक्रमित होने के बाद अस्पताल में भर्ती नहीं होना पड़ा था। शोधकर्ताओं का कहना है कि वो इस रिसर्च के निष्कर्ष से आश्वस्त हैं, लेकिन इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि व्यक्ति संक्रमण से दोबारा संक्रमित नहीं हो सकता है। ब्रिटेन की बर्मिंघम यूनिवर्सिटी में हेमेटोलॉजी के प्रोफेसर और शोधकर्ता पॉल मॉस का कहना है "रिसर्च के जरिए मिले निष्कर्ष से यह पता चलता है कि सार्स-सीओवी-2 से संक्रमित होने के बाद मजबूत इम्यूनिटी मिलती है। लेकिन हमें आशावादी होने के साथ-साथ सतर्क भी रहना होगा। बावजूद इसके कोरोना वायरस को लेकर अभी बहुत कुछ सीखना बाकी है। ये समझने के लिए कि आखिर कोविड-19 संक्रमण के खिलाफ इम्यूनिटी किस तरह काम करती है।"

रिपोर्ट में बताया गया है कि सार्स-सीओवी-2 से संक्रमित होने के छह महीने बाद इन 100 रोगियों के रक्त का विश्लेषण किया गया था। इसमें एसिम्टोमैटिक और हल्के लक्षण वाले रोगी शामिल थे। इस दौरान शोधकर्ताओं ने पाया गया कि कुछ रोगियों में एंटीबॉडी का स्तर तो कम हो गया। लेकिन उनका टी-सेल रिस्पॉन्स मजबूती से बना रहा। यहां टी-सेल का मतलब इम्यूनिटी सिस्टम के एक और मजबूत हिस्से से है जो संक्रमण से बचाव में सहायक होता है। पब्लिक हेल्थ इंग्लैंड में एपिडेमियोलॉजिस्ट कंसलटेंट और शोधकर्ता शमेज़ लाधनी का कहना है "हमारी रिसर्च के शुरुआती परिणाम बताते हैं कि टी-सेल रिस्पॉन्स, प्रारंभिक एंटीबॉडी प्रतिक्रिया को अधिक समय तक बनाकर रख सकते हैं।"

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हर रोगी में अलग-अलग होता है टी-सेल का साइज
अध्ययन में यह भी पता चला है कि टी-सेल रिस्पॉन्स का आकार हर रोगी में अलग-अलग था। रिपोर्ट के मुताबिक एसिम्टोमैटिक रोगियों की तुलना में विशेष रूप जिनमें कोरोना वायरस के लक्षण थे उनमें ये अधिक था। शोधकर्ताओं ने बताया कि इसकी दो प्रमुख तरीके से व्याख्या की जा सकती है। यह संभव है कि उच्च सेलुलर प्रतिरक्षा (हायर सेलुलर इम्यूनिटी) उन लोगों को दोबारा संक्रमित होने से बेहतर सुरक्षा दे सकती है, जिनमें संक्रमण के लक्षण थे। या फिर समान रूप से जो एसिम्टोमैटिक थे वो बिना इम्यूनिटी रिस्पॉन्स के बेहतर तरीके से वायरस से लड़ने में सक्षम होते हैं। अध्ययन में सीधे तौर पर शामिल नहीं होने वाले विशेषज्ञों का कहना कि इस रिसर्च के निष्कर्ष महत्वपूर्ण थे और इससे कोविड-19 की संभावित सुरक्षात्मक प्रतिरक्षा के बारे में पता चलता है। 

इंपीरियल कॉलेज लंदन में इम्यूनोलॉजी विभाग के अध्यक्ष चार्ल्स बैंगैम का कहना है "ये परिणाम आश्वस्त करते हैं कि सार्स-सीओवी-2 के खिलाफ कुछ ही महीने में एंटीबॉडी में बेशक गिरावट आती हो, लेकिन इम्यूनिटी का एक स्तर बना रहता है जो कि वायरस से रक्षा करता है। हालांकि, एक अहम सवाल जो अब भी बरकार है कि क्या टी-सेल री-इंफेक्शन से लगातार सुरक्षा दे सकते हैं।"

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