ब्रिटेन में कोविड-19 से ग्रस्त जिन लोगों को अस्पतालों में भर्ती किया गया है, उनमें दक्षिण एशियाई लोगों के मारे जाने की संभावना सबसे अधिक है। इस संबंध में एक मेडिकल पत्रिका में प्रकाशित शोध में कहा गया है कि इस नस्लवाद आधारित तथ्य को गंभीरता से लिए जाने की जरूरत है। शोध के लेखकों ने अपने निष्कर्ष में कहा है कि अगर कोविड-19 की कोई वैक्सीन तैयार हो जाती है, तो उसे पहले किन लोगों को दिया जाएगा यह सवाल अध्ययन के परिणाम की वजह से और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, शोध में कहा गया है, 'सबसे आगे की पंक्ति के कर्मचारियों और सार्वजनिक रूप से लोगों से जुड़े पेशों में दक्षिण एशियाई लोगों का प्रतिनिधित्व काफी ज्यादा है और इसलिए (कोरोना वायरस से जुड़े) दिशा-निर्दशों और नीतियों के तहत इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए।'
क्या कहता है शोध?
इसके मुताबिक, ब्रिटेन में कोविड-19 के चलते अस्पतालों में भर्ती मरीजों में से दक्षिण एशियाई देशों के मरीजों के मरने की संभावना श्वेत लोगों की अपेक्षा 20 प्रतिशत अधिक है। यह भी बताया गया है कि ब्रिटेन में कोविड-91 से जितने दक्षिण एशियाई लोग मारे गए हैं, उनमें से 18 प्रतिशत डायबिटीज से पहले से ग्रस्त थे।
अध्ययन के तहत ब्रिटेन के 260 अस्पतालों में फरवरी से लेकर मई के बीच भर्ती हुए करीब 35 हजार संदिग्ध और कन्फर्म कोरोना वायरस के मरीजों का विश्लेषण किया गया। इसमें शोधकर्ताओं ने पाया कि दक्षिण एशियाई, अश्वेत और अन्य जातीय समूहों के कोरोना मरीजों के आईसीयू और वेंटिलेटर पर जाने की आशंका उनके श्वेत समकक्षों की अपेक्षा अधिक थी। यह भी गौर किया गया इनमें से 40 प्रतिशत अश्वेत और दक्षिण एशियाई मरीज पहले से डायबिटीज से पीड़ित थे। शोध यह भी कहता है कि अगर कोविड-19 के दक्षिण एशियाई मरीज युवा हैं और पहले से कुछ अन्य प्रकार के रोगों से पीड़ित है तो उनके भी मारे जाने की आशंका काफी अधिक है।
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ब्रिटेन के राष्ट्रीय सांख्यिकीय कार्यालय द्वारा किए गए एक अन्य अध्ययन में कहा गया है कि ब्रिटेन में भारतीय मूल के पुरुषों के कोविड-19 मारे जाने की दर, वहां के श्वेत पुरुष नागरिकों के मुकाबले 1.8 ज्यादा है। वहीं, भारतीय मूल की महिलाओं की मृत्यु दर उनकी श्वेत महिला समकक्षों की अपेक्षा डेढ़ गुना अधिक है। यह तथ्य लांसेट पत्रिका में प्रकाशित उस शोध से अलग है, जिसमें बताया गया था कि ब्रिटेन में अश्वेतों के कोविड-19 से मरने का खतरा सबसे अधिक है।
इस शोध के मुताबिक, यूनाइटेड किंगडम में अश्वेत पुरुषों के कोविड-19 से मारे जाने की दर गोरों की अपेक्षा 2.9 गुना ज्यादा है, जबकि महिलाओं में यह अंतर 2.3 गुना अधिक है। लांसेट पत्रिका की रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि अफ्रीकी मूल के लोगों के अलावा धार्मिक रूप से मुसलमानों, यहूदियों, हिंदू और सिख संप्रदाय के लोगों में भी कोविड-19 की मृत्यु दर ईसाई या अन्य धार्मिक समूह के लोगों के मुकाबले अधिक है।