भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) द्वारा कोविड-19 की संभावित वैक्सीन 'कोवाक्सिन' के ह्यूमन ट्रायल के लिए तय की गई टाइमलाइन का स्वास्थ्य विशेषज्ञों, वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं की ओर से बड़े पैमाने पर विरोध देखने को मिल रहा है। खबर है कि इंडियन अकेडमी ऑफ साइंसेज (आईएएस) ने वैक्सीन को लॉन्च करने के लिए आईसीएमआर द्वारा तय की गई टाइमलाइन को 'अव्यवाहरिक' करार दिया है। बेंगलुरु स्थित संगठन ने एक बयान जारी कर आईसीएमआर के इस फैसले को लेकर कहा कि यह तर्कसंगत नहीं है। वहीं, सरकार के बड़े मेडिकल व अनुसंधान संस्थानों के उच्च पदाधिकारियों के साथ-साथ विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की प्रमुख वैज्ञानिक सौम्या स्वामीनाथन ने भी ट्रायल की अवधि को लेकर टिप्पणी की है।
खबरों के मुताबिक, बयान में आईएएस ने कहा है, 'हम वैक्सीन बनाए जाने का स्वागत करते हैं और कामना करते हैं कि इसे जल्दी से आम लोगों के उपलब्ध करा दिया जाए। हालांकि, एक वैज्ञानिक संगठन होने के नाते आईएएस को यह दृढ़ विश्वास है कि इसके ट्रायल की टाइमलाइन अव्यावहारिक है। इसने नागरिकों के मन में एक अवास्तविक आशा को बढ़ावा दिया है।' बयान में अकेडमी ने कहा कि मानव परीक्षण के जरिये वैक्सीन डेवलेपमेंट का काम अलग-अलग चरणों के तहत किया जाता है। इन वैज्ञानिकों का कहना है कि ट्रायल करने का अपना एक व्यावहारिक समय होता है, जिसमें कई तरह की मेडिकल, तकनीकी व प्रशासनिक प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है। आईएएस का कहना है कि आईसीएमआर द्वारा तय की गई टाइमलाइन इस हिसाब से तर्कसंगत नहीं है। उसने अंदेशा जताया है कि इस तरह की जल्दबाजी के साथ समाधान निकालने के कई विपरीत प्रभाव हो सकते हैं।
कोवाक्सिन के ट्रायल की टाइमलाइन को लेकर इस तरह की राय केवल स्वतंत्र वैज्ञानिक संगठनों की नहीं है। मीडिया रिपोर्टें बताती हैं कि सरकारी मेडिकल व अनुसंधान एजेंसियों तथा संस्थानों के विशेषज्ञ और उच्च पदाधिकारी भी इस टाइमलाइन को प्रैक्टिकली सही नहीं मानते। भारत की वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद से जुड़े सेलुलर और आणविक जीव विज्ञान केंद्र यानी सीएसआईआर-सीसीएमबी के निदेशक राकेश मिश्रा का भी कहना है कि अगले साल से पहले कोविड-19 की वैक्सीन बनने की उम्मीद नहीं की जा सकती। उन्होंने कहा कि इसमें कई तरह के प्रोसेस शामिल होते हैं, जिनमें क्लिनिकल ट्रायल से लेकर डेटा टेस्टिंग जैसे महत्वपूर्ण काम शामिल हैं। इस संबंध में आईसीएमआर द्वारा भारत बायोटेक कंपनी को लिखे गए पत्र को संस्थान का आंतरिक मामला बताते हुए राकेश मिश्रा ने कहा कि इसका मकसद मानव परीक्षण की तैयारी करने के लिए अस्पतालों पर दबाव बनाना हो सकता है। सीएसआईआर-सीसीएमबी के निदेशक ने कहा, 'अगर सबकुछ सही जाता है तब भी यह तय करने में छह से आठ महीने लग जाएंगे कि अब हमारे पास एक वैक्सीन है।'
कोवाक्सिन के ट्रायल की टाइमलाइन को लेकर कुछ इसी तरह का बयान अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया ने भी दिया है। उन्होंने कहा है कि भारत में कोरोना वायरस संकट का सबसे घातक प्रकोप आने वाला है और वैक्सीन डेवलेपमेंट के लिए तय की गई डेडलाइन वास्तविक नहीं लगती। एनडीटीवी से बातचीत में डॉ. गुलेरिया ने वैक्सीन तैयार करने की तमाम स्टेजों से जुड़ी विस्तृत जानकारी देते हुए यह बात कही।
आईसीएमआर द्वारा निर्धारित टाइमलाइन को लेकर छिड़े विवाद के बीच विश्व स्वास्थ्य संगठन की प्रमुख वैज्ञानिक सौम्या स्वामीनाथन ने भी कहा है कि वैक्सीन का ट्रायल करते समय इसकी क्षमता और सुरक्षा दोनों का संतोषजनक दिखना जरूरी है। प्रतिष्ठित अंग्रेजी अखबार द हिंदू से बातचीत में उन्होंने कहा कि वैक्सीन के ट्रायल करने में छह से नौ महीनों का समय लगता ही है।
तमाम राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मेडिकल संस्थानों व विशेषज्ञों द्वारा आपत्ति जताने के बाद खुद केंद्र सरकार के तहत आने वाले विज्ञान व तकनीकी विभाग ने एक प्रेस रिलीज जारी कर कहा था कि 2021 से पहले कोरोना वायरस के खिलाफ एंटीडोट तैयार करने की संभावना नहीं है। हालांकि मीडिया रिपोर्टों की मानें तो बाद में विभाग को अपनी यह प्रेस रिलीज वापस लेनी पड़ी और बाद में एक संशोधित प्रेस रिलीज जारी की गई। उधर, इन तमाम टिप्पणियों से अलग केंद्र सरकार के विज्ञान व तकनीकी मंत्रालय ने कहा है कि भारत बायोटेक की कोवाक्सिन और जाइडस कैडिला की जाइकोव-डी वैक्सीन कोरोना संकट के 'अंत की शुरुआत' है।