गुजरात में कोविड-19 के इलाज के लिए इस्तेमाल हो रही दवा टोसिलिजुमैब की नकल बेचे जाने का मामला सामने आने के बाद राज्य के फूट एंड ड्रग कंट्रोल एडिमिनिस्ट्रेशन (एफडीसीए) ने बयान जारी किया है। प्रतिष्ठित समाचार एजेंसी पीटीआई की खबर के मुताबिक, एफडीसीए के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा है कि कोविड-19 के इलाज में टोसिलिजुमैब के अंधाधुंध इस्तेमाल के कारण गुजरात में इस दवा की मांग तेजी से बढ़ी है, जिसके परिणामस्वरूप नकली दवा निर्माताओं ने मौजूदा स्थिति का फायदा उठाया और फर्जी दवा बनाना शुरू कर दी। इस अधिकारी ने साफ किया कि टोसिलिजुमैब की मैन्युफैक्चरिंग स्विट्जरलैंड स्थित दवा कंपनी रॉश फार्मा करती है। भारत में इसकी मार्केटिंग सिप्ला के हाथ में है।

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एफडीसीए की तरफ से यह टिप्पणी सूरत और अहमदाबाद में पुलिस और एफडीसीए की छापेमारी के बाद की गई है। इन रेडों में इन दोनों शहरों के कुछ इलाकों से नकली टोसिलिजुमैब के रैकेट का भंडाफोड़ हुआ है। खबरों के मुताबिक, सूरत में 'जेनिक फार्मा' नाम की एक फर्जी दवा कंपनी चलाई जा रही थी, जिसने टोसिलिजुमैब के फर्जी वर्जन की मैन्युफैक्चरिंग की थी। पीटीआई के मुताबिक, एफडीसीए कमिश्नर हेमंत कोशिया ने बताया कि छापेमारी में ड्रग एजेंसी ने कंपनी के सूरत स्थित ठिकाने से फिलिंग मशीनें और पैकेजिंग मटीरियल (एपीआई) जब्त किए हैं। साथ ही नकली कंपनी चला रहे मास्टरमाइंड को भी गिरफ्तार कर लिया गया है। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, उसने कई दवा विक्रेताओं को नकली टोसिलिजुमैब वितरित की है। इस मामले में एफडीसीए ने पांच लोगों को ड्रग्स एंड कॉस्मैटिक्स एक्ट के तहत नामजद किया है। एजेंसी ने कहा है कि वह इनके खिलाफ पुलिस में शिकायत करने की तैयारी कर रही है।

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क्या है टोसिलिजुमैब और गुजरात में इसकी नकल बनने की वजह?
टोसिलिजुमैब गठिया रोग के इलाज के लिए इस्तेमाल होने वाली दवा है। यह एक मोनोक्लोनल एंटीबॉडी है, जो शरीर को नुकसान पहुंचाने वाली कोशिकाओं के खिलाफ एंटीबॉडी की तरह काम करता है, बिल्कुल वैसे ही जैसे कि हमारे इम्यून सिस्टम से पैदा होने वाले रोग प्रतिरोधक करते हैं। दरअसल, टोसिलिजुमैब शरीर में मौजूद एक रिसेप्टर आईएल-6 को बांध देती है, जो इन्फेक्शन होने पर बॉडी में सूजन और जलन बढ़ाने का काम करता है। इस प्रभाव के चलते शरीर में केमिकल पदार्थ बड़ी संख्या में रिलीज होते हैं, जिसे मेडिकल भाषा में साइटोकिन स्टॉर्म कहा जाता है। इस स्थिति में शरीर के ऊतक और ज्यादा क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। चूंकि टोसिलिजुमैब आईएल-6 रिसेप्टर को रोक कर साइटोकिन स्टॉर्म की स्थिति नहीं आने देती, इसीलिए कोरोना संक्रमण से ग्रस्त कुछ मरीजों की जान बचाने में यह दवा काम आई है। यही कारण है कि केंद्र सरकार के तहत सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड ऑर्गनाइजेशन ने कोविड-19 के मरीजों के लिए टोसिलिजुमैब को आजमाने की अनुमति दी थी।

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बीते मई महीने में आई खबरों के मुताबिक, गुजरात के गांधीनगर में इस दवा से कोरोना वायरस के दो मरीजों को रिकवर होने में मदद मिली थी। इसके बाद राज्य की सरकार ने दवा के इस्तेमाल का फैसला किया था। तब से टोसिलिजुमैब के 6,400 इन्जेक्शनों को आयात किया जा चुका है। राज्य स्थित एफडीसीए के अधिकारी ने बताया कि इस दौरान गुजरात में टोसिलिजुमैब की डिमांड काफी ज्यादा बढ़ गई है। अधिकारी के मुताबिक, हालांकि डॉक्टर इस दवा को केवल कुछ विशेष मामलों में ही मरीजों पर आजमा रहे हैं, लेकिन लोग अंधाधुंध तरीके से इस दवा को खरीद रहे हैं, जिसके एक टीके की कीमत ही 40 हजार रुपये से ज्यादा है। इसी का फायदा उठाते हुए नकली दवा बनाने वाली कंपनियों ने बाजार में फेक टोसिलिजुमैब बेचना शुरू कर दिया।

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