नए कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-2 और इससे फैली कोविड-19 महामारी ने दुनिया को बदल दिया है। दुनियाभर में लॉकडाउन बढ़ाए जा रहे हैं और सोशल डिस्टेंसिंग (जिसे अब फिजिकल डिस्टेंसिंग भी कहा जा रहा है) समाज में नए प्रश्नों को जन्म दे रही है। लोग सवाल कर रहे हैं कि आखिर यह संकट कब खत्म होगा और वे पहले की तरह आजादी से घूम-फिर सकेंगे। इस सवाल का जवाब फिलहाल किसी के पास नहीं है। लेकिन विश्लेषण आधारित एक नया शोध पहले से किए जा रहे इस सवाल को और ज्यादा जटिल जरूर कर सकता है।

दरअसल, वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि कोरोना वायरस की वजह से फिजिकल डिस्टेंसिंग 2022 तक जारी रह सकती है। हालांकि ऐसा लगातार नहीं होगा, लेकिन समय-समय पर लोगों को एक-दूसरे से शारीरिक दूरी बनाने को कहा जा सकता है। जानी-मानी विज्ञान पत्रिका 'साइंस' में प्रकाशित एक शोधपत्र में यह संभावना जताई गई है। इसकी मानें तो कोविड-19 महामारी को एक बार के लॉकडाउन से नियंत्रित करना संभव नहीं है। पत्रिका की रिपोर्ट के मुताबिक, अगर फिजिकल डिस्टेंसिंग जैसे कदम जारी नहीं रखे गए तो कोरोना वायरस से पैदा होने वाला एक और संकट ज्यादा बड़ा हो सकता है।

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पत्रिका में प्रकाशित शोधपत्र में कुछ अलग-अलग संभावनाओं पर चर्चा की गई है। इनमें एक संभावना यह है कि अगर कोविड-19 बीमारी की वैक्सीन बनने में ज्यादा समय लगता है तो यह संकट 2025 तक फिर सामने आ सकता है। शोध के सह-लेखक और महामारी विज्ञान के विशेषज्ञ प्रोफेसर मार्क लिपसिच कहते हैं, 'संक्रमण दो स्थितियों में फैलता है। संक्रमित लोगों और (संक्रमण के प्रति) अतिसंवेदनशील लोगों से। जब तक एक बहुत बड़े पैमाने पर सामूहिक प्रतिरक्षा नहीं बनती, तब तक अधिकतर लोगों के वायरस से संक्रमित होने की संभावना बनी हुई है... यानी (इस साल) गर्मी में महामारी के खत्म होने की भविष्यवाणी और संक्रमण के फैलने से जुड़ी हमारी जानकारी, दोनों अलग-अलग बाते हैं।'

यही वजह है कि शोधपत्र में लंबे समय के लिए फिजिकल डिस्टेंसिंग कायम रखने पर जोर दिया गया है। भारत ही नहीं यूरोप में भी इस विषय पर चर्चा शुरू हो चुकी है। युनाइटेड किंगडम की सरकार के सलाहकार समूह ने मार्च में कुछ सुझावों के तहत कहा था कि वहां अगले एक साल तक अलग-अलग अवधि में कम या ज्यादा कड़े लॉकडाउन या फिजिकल डिस्टेंसिंग जैसे कदम उठाने की जरूरत पड़ सकती है ताकि कोरोना वायरस के मामले इतने ही बढ़ें कि उनसे निपटा जा सके।

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शोधपत्र में फिजिकल डिस्टेंसिंग पर इसलिए भी जोर दिया गया है, क्योंकि वैक्सीन नहीं होने की सूरत में संक्रमण के प्रति संवेदनशील लोगों के हमेशा वायरस से प्रभावित होने की आशंका बनी रहेगी। हालांकि फिजिकल डिस्टेंसिंग को कुछ हद तक कम करने के विकल्प जरूर मौजूद हैं। शोधपत्र के मुताबिक, इलाज के नए तरीकों, वैक्सीन और स्वास्थ्य सेवा से जुड़ी बुनियादी सुविधाओं को बेहतर और बढ़ा कर फिजिकल डिस्टेंसिंग की संभावना को कम किया जा सकता है। लेकिन फिलहाल इन सभी विकल्पों की कमी सभी देशों में साफ देखी जा सकती है। इसी कारण शोधकर्ताओं ने लिखा है, 'इन सबकी गैर-मौजूदगी के चलते (लोगों की) निगरानी और समय-समय पर (फिजिकल या सोशल) डिस्टेंसिंग की नीति 2022 तक जारी रखनी पड़ सकती है।'

एक और बड़ी वजह यह है कि अभी सामूहिक प्रतिरक्षा प्रणाली की क्षमता को लेकर निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता। शोधकर्ताओं के मुताबिक, अगर कोरोना वायरस के खिलाफ सामूहिक इम्युन सिस्टम स्थायी तौर पर बना रहता है तो हो सकता है यह विषाणु पांच या उससे ज्यादा सालों के लिए भी गायब हो जाए। लेकिन अगर लोगों की इम्युनिटी करीब एक साल तक ही कायम रहती है, तो मौजूदा संकट जैसे हालात हर साल देखने मिल सकते हैं। ऐसे में फिजिकल डिस्टेंसिंग की जरूरत बार-बार महसूस होगी।

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