कोविड-19 संकट का विपरीत प्रभाव सरकारी क्षेत्र की स्वास्थ्य योजनाओं और सुविधाओं पर दिखने लगा है। देशभर में आम नागरिकों को अन्य प्रकार की बीमारियों से जुड़ा इलाज नहीं मिल पा रहा है। इस बीच, खबर है कि केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना 'आयुष्मान भारत' के तहत कोई 825 नॉन-कोविड स्वास्थ्य सुविधाओं (क्रिटिकल प्रोसीजर) के तहत मिलने वाले इलाज में 20 प्रतिशत की गिरावट आई है। अंग्रेजी अखबार 'इंडियन एक्सप्रेस' ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण (एनएचए) के आंकड़ों के हवाले से यह रिपोर्ट प्रकाशित की है। बता दें कि आयुष्मान भारत योजना को लागू करने का काम एनएचए का ही है। 

अखबार ने बताया कि फरवरी में आयुष्मान भारत से जुड़ी इन सुविधाओं के तहत एक लाख 93,679 उपचार किए गए थे, जो अप्रैल में घटकर एक लाख 51,672 हो गए। रिपोर्ट के मुताबिक, कैंसर के इलाज से जुड़े क्रिटिकल प्रोसीजर 57 प्रतिशत तक कम हो गए। वहीं, कार्डियॉलजी के तहत मिलने वाला इलाज 76 प्रतिशत घट गया और प्रसूति तथा स्त्रीरोग से संबंधित इलाज 26 प्रतिशत तक कम हो गया। इसके अलावा 12 घंटे से कम समय तक के लिए मिलने वाली एमरजेंसी रूम सेवा भी करीब 33 प्रतिशत कम हो गई।

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आयुष्मान भारत के तहत सरकार ने डायलिसिस और कीमोथेरेपी जैसे उपचारों की जिम्मेदारी निजी अस्पतालों पर डाली हुई है। लेकिन एनएचए के ही एक अन्य प्रारंभिक डेटा के मुताबिक, जब कोविड-19 के लक्षण से जुड़े मामले सामने आते हैं तो सरकारी और निजी दोनों प्रकार की स्वास्थ्य सुविधाओं से जुड़े प्रोसीजर 80 प्रतिशत तक कम हो जाते हैं। ये ट्रेंड इस आशंका को और बढ़ा देते हैं कि जब लॉकडाउन हटाया जाएगा तो कोविड-19 के मरीजों की संख्या तो बढ़ेगी ही, साथ ही अन्य बीमारियों से पीड़ित लोग भी बड़ी संख्या में अस्पतालों का रुख करेंगे।

इस स्थिति को लेकर एनएचए और आयुष्मान भारत योजना के मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ. इंदू भूषण कहते हैं, 'हमारे रोजाना के ट्रीटमेंट में 50 प्रतिशत से ज्यादा की गिरावट आई है। (लेकिन) डायलिसिस और कीमोथेरेपी जैसे जरूरी उपचारों में दस से 20 प्रतिशत की कमी हुई है, जो थोड़ी राहत की बात है। हालांकि हम (योजना के चलते) इन सुविधाओं के बढ़ने की उम्मीद कर रहे थे, क्योंकि कई (सरकारी) अस्पताल ये सुविधाएं नहीं दे पा रहे थे। हमसे जुड़े निजी अस्पतालों को यह जिम्मेदारी लेने योग्य होना चाहिए थी।'

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