क्या नया कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-2 आंखों के जरिये भी संक्रमण फैला सकता है? इस सवाल के जवाब की खोज में शोधकर्ताओं ने एक अध्ययन किया है। इसमें इस संभावना पर चर्चा की गई है कि क्या कोरोना वायरस आंख की सतह को कवर करने वाली झिल्ली 'कॉन्जंकटाइवा' के जरिये शरीर में घुस सकता है। इसके लिए शोधकर्ताओं ने यह पता लगाने की कोशिश की कि इस झिल्ली में एसीई2 रिसेप्टर (जो एक प्रकार का प्रोटीन है) होता है या नहीं, क्योंकि इसी रिसेप्टर की मदद से सार्स-सीओवी-2 फेफड़ों समेत शरीर के कई अन्य अंगों की कोशिकाओं में घुस कर उन्हें संक्रमित करता है।

(और पढ़ें - कोविड-19: हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन के क्लिनिकल ट्रायल पर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने रोक लगाई, लांसेट के शोध में बताई गई थी 'बेअसर और असुरक्षित')

कैसे किया गया शोध?
शोधकर्ताओं ने करीब 68 मरीजों के कन्जंकटाइवल सैंपलों को अपने अध्ययन में शामिल किया। इन सभी मरीजों की औसत आयु 47 वर्ष थी। शोध के मुताबिक, 62 कन्जंकटाइवल सैंपल कोविड-19 संक्रमित मरीजों के थे, जबकि छह सामान्य रोगियों से जुड़े थे। सभी सैंपलों की रियल-टाइम क्वान्टिटेटिव रिवर्स ट्रांसक्रिप्शन (क्यूआरटी-पीसीआर) तकनीक के जरिये जांच की गई और पता लगाया कि उनमें एसीई2 का स्तर कितना है। इसमें उन्होंने (कोरोना वायरस वाली) अस्वस्थ और सामान्य कन्जंकटाइवल सैंपलों में एक उल्लेखनीय अंतर पाया।

शोधकर्ताओं ने देखा कि स्वस्थ और संक्रमित कन्जंकटाइवल टिशू के एमआरएनए लेवल में कोई खास फर्क नहीं था। इसी तरह का ट्रेंड एसीई2 प्रोटीन में पाया गया। लेकिन (कोरोना) संक्रमित कन्जंकटाइवा में एसीई2 प्रोटीन का लेवल अन्य बीमारियों से जुड़े कन्जंकटाइवल सैंपलों से काफी ज्यादा था। इम्यूनोहिस्टोकेमिस्ट्री के इस्तेमाल से पता चला कि एपिथिलियल सेल्स (शरीर और उसके अंगों की बाहरी सतह पर मिलने वाली कोशिकाएं) में एसीई2 के मॉलिक्यूल्स थे और संक्रमित कन्जंकटाइवा में इनका स्तर काफी बढ़ा हुआ था।

(और पढ़ें - भारत में कोविड-19 की वैक्सीन कम से कम एक साल से पहले नहीं बन पाएगी, विशेषज्ञों से लेकर स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन तक ने दिए संकेत)

शोध के परिणाम
इस शोध के परिणाम बताते हैं कि मानव नेत्र के ऊतकों में सार्स-सीओवी-2 का रिसेप्टर होता है। एपिथिलियल सेल्स पर इसकी मौजूदगी विशेष रूप से ज्यादा होती है। शोध के मुताबिक, इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि यह वायरस आंखों के जरिये भी शरीर में घुस सकता है। स्वस्थ कोशिकाओं की पैथलॉजिकल कन्जंकटाइवा से तुलना करने पर यह साफ होता है। शोध की मानें तो कई अन्य प्रकार के वायरस इस रूट के जरिये शरीर में घुस सकते हैं। इनमें बच्चों को संक्रमित करने वाले पराई इन्फ्लूएंजा वायरस शामिल हैं। वहीं, 2002-02 में आए कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-1 के बारे में भी कहा जाता है कि यह प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आंख की झिल्ली के जरिये शरीर में फैल सकता है।

यानी कोविड-19 से संक्रमित किसी व्यक्ति के छींकने या खांसने पर मुंह से निकलने वाली पानी की छोटी-छोटी बूंदें या ड्रॉपलेट्स के जरिये सार्स-सीओवी-2 आंखों में जाकर शरीर में फैल सकता है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि पिछले शोधों में यह बात सामने आई है कि कोविड-19 के मरीजों के कन्जंकटाइवल स्वैब सैंपलों के आरटी-पीसीआर परीक्षण में सार्स-सीओवी-2 वायरस मिला है। इस आधार पर यह शोध इस तथ्य की पुष्टि करता है कि कोविड-19 के मरीजों के लाल अथवा अस्वस्थ कन्जंकटाइवा में एसीई2 की मात्रा काफी ज्यादा होती है, लिहाजा नेत्ररोगियों का इलाज करने वाले विशेषज्ञों व अन्य स्टाफ को विशेष प्रकार के चश्मे (गॉगल्स) पहनने की जरूरत है।

(और पढ़ें - कोविड-19: इलेक्ट्रोस्यूटिकल फैब्रिक से बने पीपीई कोरोना वायरस से सुरक्षा देने में ज्यादा प्रभावी हो सकते हैं- शोधकर्ता)

नोट: यह शोध अभी तक किसी मेडिकल जर्नल में प्रकाशित नहीं हुआ है। हम इसके परिणामों की पुष्टि नहीं करते हैं। फिलहाल इसे 'मेडआरकाइव' ने प्रकाशित किया है। यह ऑनलाइन प्लेटफॉर्म वैज्ञानिक शोधपत्रों को उनके प्रकाशन से पहले सभी वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं के लिए उपलब्ध कराता है ताकि वे संबंधित शोध अथवा अध्ययन को पढ़ सकें।

और पढ़ें ...
ऐप पर पढ़ें