कोविड-19 से जुड़े एक अध्ययन में पाया गया है कि नए कोरोना वायरस से संक्रमित होने के चलते अस्पताल में भर्ती होने वाले लोगों में से लगभग एक-तिहाई के मानसिक संचालन में किसी न किसी प्रकार का नकारात्मक बदलाव होता है। इनमें उलझन से लेकर प्रलाप और अनरेस्पॉन्सिवनेस जैसी कंडीशन शामिल हैं। अमेरिका के शिकागो राज्य के चर्चित हेल्थ सिस्टम नॉर्थवेस्टर्न मेडिसिन के शोधकर्ताओं को पांच मार्च से छह अप्रैल के बीच किए अध्ययन में इस जानकारी का पता चला है। यह भी जानने में आया है कि जिन कोविड मरीजों के मस्तिष्क संचालन में किसी भी प्रकार विकृति (या ऑल्टर्ड मेंटल फंक्शन) आती है, उनकी मेडिकल कंडीशन ज्यादा खराब देखी गई है और मृत्यु होने का खतरा भी तुलनात्मक रूप से काफी ज्यादा होता है।
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अमेरिकी अखबार दि न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, नॉर्थवेस्टर्न मेडिसिन के वैज्ञानिकों ने कोरोना वायरस के मरीजों में न्यूरोलॉजिकल लक्षणों का पता करने के लिए अब तक का सबसे अध्ययन किया है, जिसे इसी हफ्ते जानी-मानी मेडिकल पत्रिका एनल्स ऑफ क्लिनिकल एंड ट्रांसलेशनल न्यूरोलॉजी में प्रकाशित किया गया है। अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने शिकागो स्थित दस अस्पतालों में भर्ती हुए कोरोना वायरस के 509 मरीजों के रिकॉर्ड की जांच की है। ये ऐसे मरीज थे, जिन्हें बिना किसी ऑल्टर्ड मेंटल फंक्शन के तीन बार अस्पताल में रहना पड़ा था। लेकिन डिस्चार्ज होने के बाद उनमें से करीब 33 प्रतिशत (162) मरीजों के मस्तिष्क संचालन में खराबी आई थी। एनवाईटी ने बताया है कि इनमें से 32 प्रतिशत संक्रमित ही अपने रोजमर्रा के काम कर पा रहे थे, जैसे खाना बनाना, बिल का भुगतान करना आदि। अध्ययन में शामिल शोधकर्ता, वरिष्ठ लेखक और नॉर्थवेस्टर्न मेडिसिन के न्यूरोलॉजिकल डिसीज एंड ग्लोबल न्यूरोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. आइगर कॉरलनिक ने यह जानकारी दी है। उन्होंने बताया कि ऑल्टर्ड मेंटल फंक्शन से अप्रभावी संक्रमितों में से 89 प्रतिशत सामान्य दैनिक कार्य आसानी से कर पा रहे थे। उन्हें दूसरे समूह के मरीजों की तरह किसी की मदद की आवश्यकता नहीं लेनी पड़ रही थी।
मस्तिष्क के संचालन में आए नकारात्मक परिवर्तन या विकृति को मेडिकल भाषा में इन्सेफेलोपैथी कहते हैं। अध्ययन में पता चला है कि कोरोना संक्रमण के चलते जिन लोगों को यह समस्या होती है, उनके इस बीमारी से मरने का खतरा भी उन लोगों की अपेक्षा सात गुना ज्यादा होता है, जिनमें इस तरह की समस्या नहीं पैदा होती। डॉ. कॉरलनिक इस बारे में बताते हैं, 'इन्सेफेलोपैथी एक जेनेरिक टर्म है। इसका मतलब है कि मस्तिष्क के साथ कुछ गलत हुआ है। इससे व्यक्ति की सावधानी बरतने या एकाग्रता की क्षमता प्रभावित हो सकती है। उसकी स्मरणशक्ति अल्पकालिक (शॉर्ट टर्म मेमरी) हो सकती है। इसके अलावा, भटकाव, सदमा और प्रतिक्रिया देने की क्षमता भी प्रभावित हो सकती है, जो चेतना के एक तरह से कोमा में जाने जैसा है।' डॉ. कॉरलनिक ने आगे बताया, 'हमने पाया है कि अस्पताल से जाने के बाद जो लोग अपने (दैनिक या सामान्य) काम नहीं कर पा रहे थे, उनकी इस समस्या का संबंध इन्सेफेलोपैथी से था। हमने (कोविड-19 की) उच्च मृत्यु दर और श्वसन रोग के गंभीर होने के पीछे भी इसी को बतौर वजह पाया है।'
हालांकि अध्ययन के लेखक के रूप में डॉ. कॉरलनिक ने यह भी कहा कि इसके शोधकर्ता ने यह नहीं बता पाए कि कोविड-19 के चलते कुछ लोग इन्सेफेलोपैथी से क्यों ग्रस्त होते हैं। उन्होंने कहा कि अन्य बीमारियों में भी यह कंडीशन देखने को मिल सकती है, विशेषकर बुजुर्गों में और अलग-अलग कारणों (जैसे इन्फ्लेमेशन और ब्लड सर्कुलेशन पर पड़ने वाले प्रभाव) के चलते सक्रिय हो सकती है। दरअसल, ऐसे साक्ष्य काफी कम हैं, जो बताते हों कि नया कोरोना वायरस मस्तिष्क की कोशिकाओं पर सीधे हमला करता है। इस बार में ज्यादातर मेडिकल एक्सपर्ट फिलहाल यही कह पाते हैं कि कोरोना वायरस की चपेट में आने से शरीर में होने वाली इन्फ्लेमेशन और इम्यून सिस्टम के रेस्पॉन्स के चलते शरीर के दूसरे अंग भी प्रभावित होते हैं। इनमें दिमाग भी शामिल है। परिणामस्वरूप, कुछ मरीजों में न्यूरोलॉजिकल लक्षण देखने को मिलते हैं।
अध्ययन से जुड़े कुछ अन्य महत्वपूर्ण तथ्य
- इन्सेफेलोपैथी वाले 162 मरीजों में ज्यादातर बुजुर्ग और पुरुष शामिल
- इन लोगों में पहले से अन्य मेडिकल कंडीशन होने की आशंका, जैसे- कोई न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर, कैंसर, सेरेब्रोवस्क्युलर डिसीज, क्रॉनिक किडनी रोग, डायबिटीज, हाई कोलेस्ट्रॉल, हार्ट फेलियर, हाइपरटेंशन और स्मोकिंग
- न्यूरोलॉजिकल लक्षण वाले मरीजों में से 45 प्रतिशत में मांसपेशी के दर्द और 38 प्रतिशत में सिरदर्द की समस्या
- 30 प्रतिशत पीड़ित डिजिनेस (चक्कर आना) से परेशान
- कुछ की सूंघने या स्वाद लेने की क्षमता में कमी
- युवा मरीजों में इन्सेफेलोपैथी के बजाय अन्यू न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर दिखने की आशंका अधिक