कोविड-19 बीमारी से पीड़ित बच्चों में देखे जाने वाले मल्टीसिस्टम इनफ्लेमेटरी सिंड्रोम (एमआईएस-सी) को लेकर नई और चिंताजनक जानकारी सामने आई है। प्रतिष्ठित मेडिकल पत्रिका दि लांसेट से जुड़े एक अन्य जर्नल ईक्लिनिकलमेडिसिन में बताया गया है कि एमआईएस-सी बच्चों के हृदय को इस हद तक क्षतिग्रस्त कर सकता है कि उन्हें एक लंबे जीवनकाल तक मॉनिटरिंग की प्रक्रिया से गुजरना पड़ सकता है। साथ ही बीच-बीच में इलाज करवाना पड़ सकता है। एमआईएस-सी से जुड़े मामलों की मेडिकल जांच-पड़ताल में यह भी सामने आया है कि एमआईएस-सी उन स्वस्थ बच्चों पर भी हमला कर सकता है, जिनमें कोरोना वायरस के संक्रमण के लक्षण तीन से चार हफ्तों तक नहीं दिखते हैं। अध्ययन में शामिल वैज्ञानिक और लेखक तथा यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास हेल्थ साइंस सेंटर के डॉ. ऐलवरो मोरेरा ने पत्रिका में लिखी अपनी समीक्षा में यह बात कही है।

अध्ययन के हवाले से शोधकर्ताओं ने कहा है कि एमआईएस-सी होने के लिए बच्चों को कोविड-19 के पारंपरिक ऊपरी श्वसन मार्ग संबंधी लक्षणों की जरूरत नहीं है, जोकि ज्यादा डराने वाली बात है। इस बारे में डॉ. ऐलवरो मोरेरा ने कहा है, 'बच्चों में शायद लक्षण न दिखें। किसी को नहीं पता था कि उन्हें बीमारी हो गई है। कुछ हफ्तों बाद उनके शरीर में अत्यधिक इनफ्लेमेशन पैदा हो गई होगी।'

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एमआईएस-सी से जुड़ी इस जानकारी को प्राप्त करने के लिए वैज्ञानिकों ने एक जनवरी से 25 जुलाई के बीच दुनियाभर में सामने आए इस बीमारी के 662 मामलों का अध्ययन किया। इसमें जो तथ्य सामने आए उनमें से कुछ इस प्रकार हैं-

  • एमआईएस-सी के चलते 71 प्रतिशत बच्चों को आईसीयू में भर्ती होना पड़ा
  • 60 प्रतिशत पीड़ित बच्चों में शॉक के लक्षण देखने को मिले
  • बच्चों के अस्पताल में रहने की औसत अवधि 7.9 दिन रही
  • सभी बच्चों को बुखार हुआ, 73.7 प्रतिशत के पेट में दर्द या डायरिया के लक्षण देखे को मिले
  • 63.8 प्रतिशत को उल्टी की शिकायत हुई
  • हृदय गति पर नजर रखने के लिए 90 प्रतिशत बच्चों के ईकोकार्डियोग्राम टेस्ट हुए, इनमें 54 प्रतिशत के परिणाम असामान्य निकले
  • 22.2 प्रतिशत बच्चों को मकैनिकल वेंटिलेशन की जरूरत पड़ी
  • चार को एक्स्ट्राकॉर्पोरियल मेम्ब्रेन ऑक्सीजनेशन यानी एक्मो थेरेपी की जरूरत पड़ी
  • 11 बच्चों की मौत हो गई

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इन जानकारियों के आधार पर डॉ. ऐलवरो ने एमआईएस-सी को बच्चों से जुड़ी एक नई बीमारी बताया है, जिसका संबंध सार्स-सीओवी-2 कोरोना वायरस से है। वे कहते हैं, 'यह शरीर के कई अंगों के लिए घातक हो सकती है, चाहे हृदय हो या फेफड़े। आंतों से जुड़ा सिस्टम हो या न्यूरोलॉजिकल सिस्टम, इस बीमारी के कई रूप हैं, जिन्हें शुरुआत में पहचानने में विशेषज्ञों को मुश्किलें आई थीं.' डॉ. ऐलवरो के मुताबिक, एमआईएस-सी में होने वाली इनफ्लेमेशन (सूजन और जलन) बच्चों से जुड़ी दो अन्य बीमारियों कावासाकी और टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम से भी ज्यादा है। उन्होंने बताया, 'अच्छी बात यह है कि इस बीमारी के मरीजों के इलाज के लिए कावासाकी बीमारी से जुड़ी थेरेपी का इस्तेमाल किया जाता है। इम्यूनोग्लोबुलिन और ग्लूकोकॉर्टिकोस्टेरॉयड पीड़ितों में सुधार करती हैं।'

लेकिन चिंता की बात यह है कि अध्ययन में शामिल 662 बच्चों में से ज्यादातर में हृदय से जुड़ी समस्याएं देखने मिलीं। मिसाल के लिए हृदय में आई समस्या को जानने की कोशिश में वैज्ञानिकों को ट्रोपोनिन बायोमार्कर का पता लगाया, जिन्हें वयस्कों में हार्ट अटैक के डायग्नॉसिस के लिए इस्तेमाल किया जाता है। ट्रोपोनिन हृदय में पाए जाने वाले प्रोटीन समूह होते हैं, जो उसकी मांसपेशी को कॉन्ट्रैक्ट करने का काम करते हैं। इनके क्षतिग्रस्त होने पर हार्ट अटैक होने का खतरा पैदा हो जाता है। बहरहाल, अध्ययन में ज्यादातर बच्चों में हृदय क्षति के संकेत मिलने को लेकर डॉ. ऐलवरो ने कहा, 'लगभग 90 प्रतिशत बच्चों के ईकोकार्डियोग्राम टेस्ट किए गए थे, क्योंकि उनमें हृदय से जुड़ी यह समस्या देखने को मिली थी।' इस क्षति से जुड़े जो संकेत अध्ययनकर्ताओं को मिले, उनमें से प्रमुख ये थे-

  • कोरोनरी रक्त वाहिनियों का खिंचकर लंबा होना, जोकि कावासाकी बीमारी का एक प्रमुख लक्षण है
  • हृदय में रक्त प्रवाह के मापन इजेक्शन फ्रैक्शन का कम होना, जिससे इस बात के संकेत मिले की हृदय की रक्त को ऊतकों तक पहुंचाने की क्षमता कम हुई है
  • दस प्रतिशत बच्चों की कोरोनरी हृदय वाहिनी में धमनी विस्फार की समस्या का पता चला

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शोधकर्ताओं का कहना है कि रक्त वाहिनी में धमनी विस्फार का पता चलना भविष्य के लिहाज से ज्यादा खतरनाक है। डॉ. ऐलवरो का कहना है, 'इन बच्चों को आगे चलकर विशेष ऑब्जर्वेशन और फॉलोअप की जरूरत पड़ने वाली है, जिसमें कई अल्ट्रासाउंड करने होंगे ताकि पता चल सके उनकी (हृदय की) समस्या ठीक होगी या उन्हें इसे बाकी जिंदगी झेलना होगा। साक्ष्य बताते हैं कि एमआईएस-सी से पीड़ित बच्चों में बहुत ज्यादा इनफ्लेमेशन होती है और उनका हृदय में टिशू इंजरी हो सकती है। हमें इन बच्चों पर करीबी से नजर रखनी होगी और समझना होगा कि लंबे वक्त में उनमें और क्या समस्याएं हो सकती हैं।'

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