संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि कोविड-19 महामारी के चलते वैश्विक स्तर पर एक बहुत बड़ा मानसिक स्वास्थ्य संकट खड़ा हो सकता है। गुरुवार को इस बारे में चेतावनी देते हुए संयुक्त राष्ट्र ने कहा कि इस स्वास्थ्य संकट से पैदा हुई मनोवैज्ञानिक आपदा पर ध्यान देते हुए तुरंत जरूरी कदम उठाए जाने चाहिए। इस संबंध में अपनी नीति का विवरण देते हुए यूएन नए कहा है कि कोविड-19 महामारी के शुरुआती महीनों में शारीरिक स्वास्थ्य को लेकर खास तौर पर चिंता जताई गई है, लेकिन इसी दौरान वैश्विक जनसंख्या के एक बड़े हिस्से में मानसिक तनाव पैदा हुआ है।
खबर के मुताबिक, यूएन ने कहा, 'मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी सेवाओं पर दशकों तक निवेश नहीं किया गया है। नतीजा यह है कि कोविड-19 संकट परिवारों और संप्रदायों के मानसिक तनाव की वजह बन रहा है। यह महामारी नियंत्रण में आने के बाद भी लोगों के बीच व्यक्तिगत और सामाजिक दुख, चिंता और डिप्रेशन खत्म नहीं होंगे।'
(और पढ़ें - कोविड-19 से उबरने के बाद भी मरीजों को हो सकती हैं दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्याएं: शोधकर्ता)
यूएन के मुताबिक, लोगों में यह तनाव बढ़ता जा रहा है कि वे और उनके करीबी लोग नए कोरोना वायरस से संक्रमित हो जाएंगे। उसने यह भी कहा कि स्वास्थ्य संकट के बीच बहुत बड़ी संख्या में लोगों ने अपनी आजीविका के साधन खो दिए हैं या खो सकते हैं। वहीं, लॉकडाउन जैसे फैसलों ने लोगों को उनके अपनों से दूर कर दिया है। यूएन का कहना है कि इन बातों ने लोगों को मनोवैज्ञानिक रूप से तनाव में डाला है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े विभाग के प्रमुख डेवोरा केसल ने बताया कि मौजूदा हालात, डर और अनिश्चितता के चलते लोग तनाव में आए हैं या आ सकते हैं। केसल ने कोविड-19 से लड़ाई में सबसे अहम भूमिका निभा रहे स्वास्थ्यकर्मियों का विशेष उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि ये लोग जबर्दस्त तनाव के साथ काम कर रहे हैं और बीमारी की चपेट में आने के सबसे ज्यादा खतरे का सामना कर रहे हैं। डब्ल्यूएचओ के अधिकारी ने उन न्यूज रिपोर्टों का भी हवाला दिया, जिनमें मेडिकल वर्कर्स के आत्महत्या करने के मामलों में बढ़ोतरी होने की बात कही गई है।
कोविड-19 की वजह से पैदा हुआ मनोवैज्ञानिक संकट केवल वयस्कों तक सीमित नहीं है। इसकी चपेट में बच्चे भी आ सकते हैं, जो काफी समय से स्कूल नहीं जा पा रहे और एक प्रकार की अनिश्चितता और चिंता का सामना कर रहे हैं। वहीं, महिलाएं घरेलू हिंसा के साये में रह रही हैं। हाल के दिनों में ऐसी रिपोर्टें आई हैं, जिनमें बताया गया है कि कैसे कोविड-19 महामारी के दौरान लागू लॉकडाउन की वजह से महिलाओं के साथ होने वाली घरेलू हिंसा में बढ़ोतरी हुई है। बाहर नौकरी करने वाले पुरुष लंबे वक्त से घरों में कैद हैं। इससे उनमें गुस्से का संचार हो रहा है, जो सबसे पहले महिलाओं पर निकलता है।
वहीं, बुजुर्ग लोग अलग तरह का दबाव झेल रहे हैं। वे हर जगह यही सुन और पढ़ रहे हैं कि इस वायरस से सबसे ज्यादा खतरा उन्हीं को है, लिहाजा उन्हें घर से बाहर न निकलने दिया जाए। ये दोहरा दबाव उनके मानसिक तनाव की वजह है। इसके अलावा, जो लोग पहले से मानसिक समस्याओं का सामना कर रहे हैं, उनके लिए यह समय और ज्यादा कष्टदायी है। वे अपने ट्रीटमेंट के लिए मनोचिकित्सकों के पास नहीं जा पा रहे और न ही फेस-टू-फेस थेरेपी में शामिल हो पा रहे हैं।
(और पढ़ें - कोविड-19 महामारी के दौरान अफ्रीका में 25 करोड़ लोगों के कोरोना वायरस से संक्रमित होने की आशंका: शोधकर्ता)
यही कारण है कि कई देशों में हुए राष्ट्रीय स्तर के अध्ययनों से ऐसे संकेत मिले हैं कि कोविड-19 संकटकाल में मानसिक तनाव की समस्या तेजी से बढ़ती जा रही है। ऐसे में यूएन ने जोर देते हुए कहा है कि सरकारों को महामारी से निपटने के साथ-साथ लोगों के लिए मनोवैज्ञानिक सपोर्ट और मेन्टल हेल्थकेयर से जुड़े सभी पहलुओं का भी ध्यान रखना चाहिए। उसने कहा कि मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में ज्यादा निवेश करना एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है।