जानी-मानी मेडिकल पत्रिका दि लांसेट ने अपने उस विवादित शोध को वापस ले लिया है, जिसमें दावा किया गया था कि कोविड-19 महामारी की रोकथाम में हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन (एचसीक्यू) दवा से कोई फायदा नहीं है और नुकसान ज्यादा हैं। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, इसी अध्ययन के आधार पर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोविड-19 के इलाज के लिए शुरू किए अपने 'सॉलिडेरिटी प्रोजेक्ट' के ट्रायलों से हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन को हटा दिया था, हालांकि बाद में उसने अपना फैसला बदल दिया। इस बीच, कई वैज्ञानिकों ने दि लांसेट के अध्ययन से जुड़े डेटा पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। इस बारे में कुछ तथ्य सामने आए हैं, जो अध्ययन से जुड़ी कमियों को स्पष्ट रूप से सामने रखते हैं। आखिरकार पूरे विवाद के चलते दि लांसेट को अपना अध्ययन वापस लेना पड़ा है।

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उधर, एक और चर्चित अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य पत्रिका न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन (एनईजेएम) ने भी कोविड-19 से जुड़े एक अलग अध्ययन को प्रकाशन के बाद वापस ले लिया है। इस शोध में पत्रिका ने कोविड-19 के दौरान ब्लड प्रेशर से जुड़े मेडिकेशन पर चर्चा की थी। बताया गया है कि दोनों पत्रिकाओं ने प्रकाशित अध्ययनों के लेखकों की तरफ से अनुरोध किए जाने के बाद उन्हें वापस लिया है। ये लेखक सीधे तौर पर अध्ययन से नहीं जुड़े थे। लांसेट ने इस बारे में एक बयान जारी कर बताया कि अब वह इस स्थिति में नहीं है कि इस शोध से जुड़े प्राथमिक डेटा स्रोतों का समर्थन कर सके। बयान में पत्रिका ने कहा, 'इस दुर्भाग्यपूर्ण डेवलेपमेंट के चलते लेखकों ने शोधपत्र को वापस लेने का आग्रह किया है।'

क्या है मामला?
लांसेट और एनईजेएम को मेडिकल क्षेत्र की सबसे प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में गिना जाता है। लेकिन कोविड-19 को लेकर इनके हालिया शोधों पर जो विवाद हुआ, उसके तार एक डेटा कंपनी से जुड़े हैं। 'सर्जिसफेयर' नाम की इस कंपनी ने ही पत्रिकाओं को शोध से जुड़ा डेटा उपलब्ध कराया था। लांसेट का कहना है कि उसने सर्जिसफेयर से पूछा था कि डेटा कहां से और किस तरह इकट्ठा किया गया, लेकिन कंपनी ने न तो लांसेट के साथ सहयोग किया और न ही डेटा से जुड़ी जानकारी उपलब्ध कराई।

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सर्जिसफेयर अमेरिका के शिकागो स्थित एक हेल्थकेयर एनालिटिक्स कंपनी है। लांसेट द्वारा प्रकाशित शोध के लिए इसी कंपनी ने दुनियाभर के 671 अस्पतालों से कोविड-19 के 96 हजार से ज्यादा मरीजों का डेटा इकट्ठा किया था। उसने इन मरीजों को चार श्रेणियों में विभाजित किया था, जो कि इस प्रकार हैं-

  • केवल क्लोरोक्वीन लेने वाले मरीज
  • क्लोरोक्वीन-एंटीबायोटिक का मिश्रण लेने वाले मरीज
  • केवल हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन लेने वाले मरीज
  • हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन-एंटीबायोटिक का मिश्रण लेने वाले मरीज

सर्जिसफेयर द्वारा मुहैया कराए गए डेटा के आधार पर लांसेट ने बीती 22 मई को अपना अध्ययन प्रकाशित कर दिया। उसके कुछ दिन बाद डब्ल्यूएचओ ने एचसीक्यू को अपने ट्रायल से अस्थायी रूप से हटाने की घोषणा करते हुए मामले में जांच कराने की बात कही। इस बीच, कई मेडिकल विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों ने लांसेट के शोध पर सवाल खड़े कर दिए। ऐसे में बीती तीन जून को पत्रिका ने एक बयान जारी कर कहा कि उसने सर्जिसफेयर के लेखकों से पूछा है कि उन्होंने डेटा कहां से इकट्ठा किया था।

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इस पूरे विवाद के दौरान ब्रिटेन के चर्चित अखबार 'दि गार्डियन' ने इस पूरे मामले पर एक जांच आधारित रिपोर्ट प्रकाशित की। इसमें बताया गया कि सर्जिसफेयर के कर्मचारियों में एक ऐसा लेखक भी शामिल है, जो असल में विज्ञान आधारित काल्पनिक कहानियां लिखता है। अखबार ने अपनी जांच में कई जानकारियां हासिल कीं, जो सर्जिसफेयर के बारे में निम्नलिखित तथ्य सामने रखती हैं-

  • सर्जिसफेयर के कई कर्मचारियों का कोई डेटा या विज्ञान आधारित बैकग्राउंड नहीं है
  • कंपनी ने एक लेखक को साइंस एडिटर बताया हुआ है, जो असल में एक साइंस फिक्शन ऑथर (लेखक) है
  • मार्केटिंग एग्जीक्यूटिव बताई गई एक कर्मचारी असल में एक एडल्ट मॉडल है, जो कुछ संस्थाओं के वीडियो के लिए शूट भी करती है
  • कंपनी के लिंक्डइन पेज के सौ से कुछ ज्यादा फॉलोअर हैं और इस प्लेटफॉर्म पर इसके कर्मचारियों की संख्या भी छह से तीन हो गई है
  • सर्जिसफेयर का दावा है कि उसके पास दुनिया का सबसे बड़ा और सबसे तेज हॉस्पिटल डेटाबेस है, लेकिन इंटरनेट पर कंपनी का वजूद न के बराबर है
  • ट्विटर पर सर्जिसफेयर के केवल 170 फॉलोअर हैं और अक्टूबर 2017 से मार्च 2020 के बीच कंपनी ने एक भी पोस्ट नहीं किया था

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