ऑस्ट्रिया स्थित मेडिकल यूनिवर्सिटी ऑफ विएना के वैज्ञानिकों ने एक ऐसा लैबोरेटरी टेस्ट विकसित किया है, जो बता सकता है कि कोविड-19 बीमारी उबरने वाले मरीज के शरीर में कोरोना वायरस से बचाने वाले सक्षम एंटीबॉडी पैदा हुए हैं या नहीं। इन विशेषज्ञों ने टेस्ट की मदद से कोविड-19 के ठीक हुए मरीजों का अध्ययन किया है। इसमें पता चला है कि कोरोना वायरस को मात देने वाले लोगों में से केवल 60 प्रतिशत में सुरक्षा देने वाले रोग प्रतिरोधक यानी प्रोटेक्टिव एंटीबॉडीज पैदा होते हैं। इसी टेस्ट के आधार पर यह जानकारी पहली बार सामने आई कि कैसे कुछ एंटीबॉडी होस्ट सेल में वायरस संक्रमण को बढ़ाने में मदद भी करते हैं। इस अध्ययन के परिणाम चर्चित मेडिकल पत्रिका 'एलर्जी' में प्रकाशित हो चुके हैं।
मेडिकल यूनिवर्सिटी ऑफ विएना के सेंटर फॉर पैथफीजियॉलजी, इन्फेक्शियॉलजी और इम्यूनॉलजी के शोधकर्ताओं ने कोविड-19 के मरीजों में प्रोटेक्टिव एंटीबॉडी को आइडेंटिफाई करने के लिए इस एलिसा लैबोरेटरी टेस्ट को तैयार किया है। इसी से किए गए परीक्षणों में यह पता चला है कि कोरोना वायरस के संक्रमण से उबर कर स्वस्थ होने वाली लोगों में से केवल 60 प्रतिशत के शरीर में ही ऐसे सक्षम एंटीबॉडी पैदा हो पाते हैं, जो वाकई में सार्स-सीओवी-2 वायरस को एसीई2 रिसेप्टर को बांधने से रोक सकते हैं। बता दें कि इसी रिसेप्टर से अटैच होकर सार्स-सीओवी-2 कोशिकाओं में घुसता है और उन्हें संक्रमित करना शुरू करता है। इस प्रक्रिया से बचाने के लिए मजबूत इम्यून रेस्पॉन्स की जरूरत होती है, जोकि सक्षम एंटीबॉडीज पर निर्भर है। लेकिन विएन की मेडिकल यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों का कहना है कि 40 प्रतिशत से ज्यादा स्वस्थ मरीजों में ये एंटीबॉडी वायरस को रोकने वाली क्षमता के साथ विकसित ही नहीं होते।
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इस तथ्य के सामने आने के बाद अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ता रुडॉल्फ वैलेंटा कहते हैं, 'इसका सकारात्मक पहलू यह है कि अब हमारे ऐसा टेस्ट है जो एंटीबॉडीज को आइडेंटिफाई कर सकता है और बता सकता है कि जो पहले संक्रमित हो चुके हैं उनमें प्रोटेक्टिव इम्यूनिटी विकसित हुई है या नहीं।' लेकिन रिसर्च टीम ने अध्ययन में यह भी जाना कि रिसेप्टर बाइंडिंग डोमेन से बने कुछ विशेष इम्यूनोकॉम्प्लेक्स (एक ऐसी मॉलिक्यूलर फॉर्म जिसमें कई एंटीजन और एंटीबॉडी मिल जाते हैं) और मरीज के एंटीबॉडीज में एसीई2 रिसेप्ट से बंधने की दर ज्यादा होती है। रुडॉल्फ ने बताया कि अब तक अनजान रहे इस मकैनिज्म से वायरस का कोशकाओं में घुसना आसान हो जाता है। वे कहते हैं कि कोविड-19 की वैक्सीन के विकास और इम्यूनिटी के संदर्भ में इसका क्या महत्व है, यह जानने के लिए और शोध करने की आवश्यकता है।