कोविड-19 महामारी से जुड़ी हालिया रिपोर्टों ने आम लोगों के साथ-साथ मेडिकल विशेषज्ञों की चिंता भी बढ़ा दी है। इन रिपोर्टों में कहा गया है कि नए कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-2 के खिलाफ विकसित होने वाले एंटीबॉडीज कुछ ही महीनों में लुप्त हो जाते हैं और जो मरीज कम गंभीर रूप से इसकी चपेट में आते हैं, उनमें ये रोग प्रतिरोधक और तेजी से घटने लगते हैं। लेकिन क्या इसका मतलब यह है कि कोविड-19 से उबरने के बाद इसके खिलाफ मिलने वाली इम्यूनिटी भी एंटीबॉडी के लुप्त होने के साथ खत्म होती जाती है? जानकार इस संबंध में कुछ काम की जानकारी देते हैं।
अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसी एसोसिएटिड प्रेस (एपी) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, स्वास्थ्य क्षेत्र के कई एक्सपर्ट इस बात से इत्तफाक नहीं रखते कि एंटीबॉडी के साथ इम्यूनिटी भी खत्म हो जाती है। अमेरिका की वैंडरबिल्ट यूनिवर्सिटी में संक्रामक रोग विशेषज्ञ डॉ. बडी क्रीच कहते हैं, 'यह जरूरी नहीं है कि कोरोना वायरस से होने वाले संक्रमण से पूरे जीवन के लिए इम्यूनिटी मिल जाए। एंटीबॉडीज इसकी पूरी कहानी का केवल एक हिस्सा हैं। हमारा इम्यून सिस्टम यह याद रखता है कि जरूरत पड़ने पर नए एंटीबॉडी कैसे बनाने हैं और इसके दूसरे हिस्से (अन्य रोग प्रतिरोधक कोशिकाएं) भी हैं जो (वायरस पर) हमला कर सकते हैं।'
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एंटीबॉडी या रोग प्रतिरोधक असल में वे प्रोटीन हैं, जिन्हें हमारे शरीर की श्ववेत रक्त कोशिकाएं वायरल को बांध कर उसे खत्म करने के लिए बनाती हैं। इन श्वेत रक्त कोशिकाओं को बी सेल्स कहा जाता है। जानकारों के मुताबिक, किसी संक्रमण के होने की स्थिति में शरीर में बनने वाले शुरुआती एंटीबॉडी संभव है काफी हद तक अधूरे या अपरिपक्व हों, लेकिन संक्रमण के बढ़ने या वापस आने पर हमारा इम्यून सिस्टम उसके खिलाफ ज्यादा प्रभावी एंटीबॉडी के साथ हमला करने के लिए प्रशिक्षित हो जाता है।
लॉस एंजलिस स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के डॉ. ओटे यैंग और अन्य विशेषज्ञ भी इस बात से सहमति जताते हैं। उन्होंने कोविड-19 से ग्रस्त पाए गए 30 मरीजों में विकसित हुए ऐसे अधिक क्षमतावान एंटीबॉडी की जांच की है। इन मरीजों की औसत आयु 43 वर्ष थी और ज्यादातर कम गंभीर रूप से कोविड-19 का शिकार हुए थे। शोधकर्ताओं ने पाया कि इन मरीजों में कोविड एंटीबॉडी विकसित होने के 36 दिनों बाद ही आधे हो गए थे। ये तथ्य उन रिपोर्टों से मेल खाता है, जिनमें बताया गया है कि कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाने वाले एंटीबॉडी तेजी से लुप्त होते जाते हैं। लेकिन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता कहते हैं कि एंटीबॉडी के लुप्त होने के आधार पर इम्यूनिटी, हर्ड इम्यूनिटी और वैक्सीन की स्थिरता के विषय में कोई दावा करते हुए सावधानी बरतनी चाहिए।
एपी के मुताबिक, इस पर डॉ. क्रीच का कहना है कि यह सही है कि रोग प्रतिरोधक समय के साथ कम होते जाते हैं, लेकिन इम्यून सिस्टम और भी कई तरीकों से सुरक्षा प्रदान करता है। उन्होंने कहा कि एंटीबॉडी बनाने के अलावा बी सेल्स एक मेमरी भी विकसित कर लेते हैं, जिसकी मदद से वे यह याद रखते हैं कि दोबारा जरूरत पड़ने पर फिर से एंटीबॉडी कैसे बनाने हैं। क्रीट ने बताया, 'दोबारा वायरस की चपेट में आने पर वे (बी सेल्स) तुरंत एक्शन में आ जाते हैं। तब तक वे इंतजार करते हैं और असक्रिय रहते हैं।' बी सेल के अलावा इम्यून सिस्टम की एक और महत्वपूर्ण रोग प्रतिरोधक कोशिका टी सेल फिर से संक्रमण आने पर वायरस पर सीधा हमला करती है।
इस बारे में बात करते हुए यूनिवर्सिटी ऑफ वर्जीनिया में प्रतिरक्षा विज्ञानी ऐलिसन क्रिस का कहना है, 'शरीर में सर्कुलेट हो रहे एंटीबॉडी ज्यादा समय तक नहीं जीवित रहते। लेकिन यह जानने की जरूरत है कि कोरोना वायरस के एक और संक्रमण से प्रभावित होने पर क्या लोग फिर से एंटीबॉडी बना पाते हैं, यदि हां तो कैसे। हमें यह भी जानना होगा कि क्या इम्यून सिस्टम में प्रोटेक्टिव टी सेल्स मौजूद हैं।' गौरतलब है कि किसी संक्रमण के खिलाफ टी सेल्स दीर्घकालिक इम्यूनिटी दे सकते हैं। ऐलिसन कहती हैं, 'इम्यून सिस्टम को एंटीबॉडी बनाने के लिए उकसाने वाली वैक्सीन प्राकृतिक संक्रमण के मुकाबले ज्यादा लंबे वक्त तक के लिए सुरक्षा दे सकती हैं, क्योंकि वे विशुद्ध इम्यून रेस्पॉन्स को प्रेरित करती हैं।'
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