कोविड-19 पर शोध कर रहे वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि आखिर नए कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-2 से होने वाली यह बीमारी ज्यादातर मरीजों को किस तरह मारती है। उन्होंने बताया कि कोविड-19 के अधिकतर मरीजों की मौत इम्यून सिस्टम के जरूरत से ज्यादा सक्रिय होने के कारण होती है। 'फ्रंटियर्स इन पब्लिक हेल्थ' नाम की पत्रिका में प्रकाशित रिपोर्ट में वैज्ञानिकों ने क्रमवार तरीके से (स्टेप-बाई-स्टेप) बताया है कि कैसे सार्स-सीओवी-2 शरीर में घुस कर श्वसन मार्ग को संक्रमित करता है, कोशिकाओं में अपनी कॉपियां बनाता है और कैसे गंभीर मामलों में मरीज के इम्यून सिस्टम को भड़काता यानी जरूरत से ज्यादा हमलावर बनाता है।

कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-2 के शरीर में घुसने के बाद इम्यून सिस्टम अति-सक्रिय हो जाता है, जिसे वैज्ञानिक 'साइटोकिन स्टॉर्म' भी कहते हैं। शरीर के इम्यून सिस्टम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली श्वेत रक्त कोशिकाएं (वाइट ब्लड सेल्स) के बड़ी संख्या में साइटोकिन्स (जलन और सूजन पैदा करने वाले मॉलिक्यूल) रिलीज करने से यह स्थिति पैदा होती है। शोध में शामिल वैज्ञानिक और लेखक प्रोफेसर दाइशुन लियू ने बताया कि सार्स और मेर्स (कोरोना वायरस संक्रमण से होने वाले दो अन्य रोग) की तरह कोविड-19 के गंभीर मरीजों में 'साइटोकिन स्टॉर्म सिन्ड्रोम' हो सकता है। उन्होंने बताया, 'साइटोकिन बढ़ने के चलते लिम्फोसाइट और न्यूट्रोफिल जैसे इम्यून सेल्स की तादाद तेजी से बढ़ती है। परिणामस्वरूप, ये सेल्स फेफड़ों के ऊतकों में घुस जाते हैं और उन्हें क्षतिग्रस्त कर देते हैं।'

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रिसर्च के मुताबिक, साइटोकिन स्टॉर्म के प्रभाव में मरीज को तेज बुखार होने लगता है, रक्तवाहिकाओं से ज्यादा स्राव होने लगता है और शरीरत में ब्लड क्लॉटिंग की समस्या पैदा हो जाती है। इसके अलावा लो बीपी, ऑक्सीजन की कमी, रक्त में ऐसिडिटी और फेफड़ों में तरल पदार्थ बनने जैसे दिक्कतें भी होने लगती हैं।

अध्ययन के दौरान शोधकर्ताओं को पता चला है कि सार्स-सीओवी-2 शरीर को इस तरह प्रभावित करता है कि वाइड ब्लड सेल्स गलत तरीके से हमला करने लगती हैं और स्वस्थ ऊतकों को भी (जला कर) खत्म कर देती हैं। यह प्रक्रिया आखिर में फेफड़ों, हृदय, लिवर, आंतों, किडनी और गुप्तांगों के फेल होने की वजह बनती है। इसे 'मल्टिपल ऑर्गन डिस्फंक्शन सिन्ड्रोम' (एमओडीएस) कहते हैं। एमओडीएस की स्थिति में हो सकता है फेफड़ें काम करना ही बंद कर दें, जिसे एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिन्ड्रोम (एआरडीएस) कहते हैं। शोधकर्ताओं के मुताबिक, कोविड-19 के अधिकतर मरीजों की मौत इसी रेस्पिरटेरी फेलियर के कारण हुई है।

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एक और खोज में लगे ब्रिटेन के वैज्ञानिक
उधर, ब्रिटेन के वैज्ञानिक नए कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-2 को समझने के लिए नया प्रयास करने जा रहे हैं। खबर है कि वे कोविड-19 बीमारी के मरीजों के जीन्स या वंशाणुओं का अध्ययन कर यह पता लगाने की कोशिश करेंगे कि आखिर क्यों कोरोना वायरस से संक्रमित कुछ लोगों की मौत हो जाती है, जबकि कुछ को सिरदर्द तक नहीं होता। खबर के मुताबिक, पूरे यूनाइटेड किंगडम के शोधकर्ता कोविड-19 से गंभीर रूप से बीमार हुए लोगों के जेनेटिक कोड को एक विशेष क्रम में रख कर उनकी जांच करेंगे। बताया गया है कि ऐसे करीब 20,000 मरीजों को इस शोध में शामिल किया जाएगा। इनमें वे दोनों मरीज शामिल होंगे, जो संक्रमण के चलते इस समय या पहले आईसीयू में रह चुके हैं। शोधकर्ता इन मरीजों के वंशाणुओं की तुलना उन 15,000 लोगों के जीन्स से करेंगे जो या तो कोविड-19 के चलते कम बीमार पड़े या बिल्कुल बीमार नहीं हुए।

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दरअसल, वैज्ञानिकों का मानना है कि नए कोरोना वायरस को लेकर उनकी जानकारी अभी भी कम है। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि कैसे एक तरफ यह वायरस कुछ लोगों के लिए जानलेवा है और दूसरी तरफ, बाकी लोगों के लिए बहुत कम घातक है। अगले कुछ हफ्तों में शोध के तहत 2,000 लोगों पर शोध किया जा रहा होगा, लिहाजा उम्मीद जताई गई है कि वायरस के संबंध में ऐसे सवालों के जवाब जल्दी ही सामने आ जाएंगे। हालांकि उनकी पुष्टि और ज्यादा लोगों की जांच के बाद ही हो पाएगी। वैज्ञानिकों ने कहा है कि उनके शोध के परिणाम वैश्विक रूप से साझा किए जाएंगे।

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