हर्ड इम्यूनिटी का मुद्दा एक बार फिर चर्चा में आ सकता है। अमेरिका स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ इलिनॉइस और ब्रूकहेवन नेशनल लैबोरेटरी द्वारा किए गए एक अध्ययन में सामने आया है कि न्यूयॉर्क शहर और कोविड-19 महामारी से बुरी तरह प्रभावित अन्य इलाके हर्ड इम्यूनिटी के काफी करीब (हर्ड इम्यूनिटी थ्रेसहोल्ड या एचआईटी) पहुंच गए हैं। शोधकर्ताओं ने पर्सिस्टेंट कॉन्टैक्ट हेटेरोजेनिटी नामक फैक्टर के आधार पर कोविड-19 महामारी के अंतिम आकार का अनुमान लगाते हुए यह जानकारी दी है। इसका एक मतलब यह भी है कि अगर आने वाले समय में कोविड-19 की 'दूसरी लहर' आती है तो इन इलाकों से कोरोना वायरस दूसरे क्षेत्रों में नहीं फैलेगा।
दरअसल, इस नए शोध में वैज्ञानिकों ने नई अप्रोच के साथ अध्ययन करते हुए यह साबित करने की कोशिश नहीं की है कि कोरोना वायरस के चलते पैदा हुई कोविड-19 महामारी की अंतिम अवस्था क्या होगी है, बल्कि यह जानने का प्रयास किया गया है कि समय के साथ इस महामारी के परिदृश्य में किस तरह के बदलाव आएंगे। अध्ययन के परिणाम के आधार पर शोधकर्ताओं ने कहा है कि न्यूयॉर्क और शिकागो में कोविड-19 की दूसरी लहर नहीं आएगी, यानी संभवतः यहां एचआईटी का आरंभ हो चुका है। शोधकर्ताओं के मुताबिक, अगर शिकागो में महामारी की दूसरी लहर आई भी तो हेटेरोजेनिटी (विषमांगता यानी एक तरह की विविधता)) के चलते उसका प्रभाव अनुमानित रूप से काफी कम होगा। वहीं, इस कम प्रभाव को पूरी तरह से अप्रभावी किया जा सकता है, अगर लोग मास्क पहनें, बार, डाइनिंग एरिया और भीड़ वाले आयोजनों में कम संख्या में इकट्ठा हों। इसके अलावा कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग करके भी दूसरी लहर को पूरी तरह से टाला जा सकता है।
संक्रामक रोगों के फैलाव और उनसे जुड़े आंकड़ों के अध्ययन के लिए महामारी विज्ञान आधारित मॉडलों का इस्तेमाल प्रमुखता से होता रहा है। लेकिन बीमारी के प्रति व्यक्तिगत संवेदनशीलता के संदर्भ में जनसंख्या विषमांगता या पॉप्युलेशन हेटेरोजेनिटी और साथ ही सोशल नेटवर्क की शामिल भूमिका के चलते इस तरह के मॉडलों में स्वास्थ्य संकट का अध्ययन चुनौतीपूर्ण हो जाता है। इन फैक्टर्स के प्रभाव के चलते जो परिणाम सामने आते हैं, उनमें सुपरस्प्रेडर वाले मामले शामिल हैं, जोकि शुरुआती संकट को बढ़ाने का काम करते हैं। इससे एचआईटी और महामारी की निर्णायक अवस्था में फेरबदल देखने को मिलता है।
कई विशेषताओं और मानकों के मद्देनजर महामारी से जुड़े गति विज्ञान या डायनैमिक्स को तैयार करते हुए कई प्रकार की अप्रोच के तहत इस फैक्टर को अपनाया जाता रहा है। मिसाल के लिए, किसी बीमारी के मरीजों के संपर्क में आए लोगों और उनकी सस्केप्टिबिलिटी (संक्रमित होने की संभावना) का आयु के आधार पर व्यवस्थित किए गए समूहों में आंकलन करना। वहीं, दूसरे तरह के मॉडल में वास्तविक या आर्टिफिशियल सोशल नेटवर्क आधारित नमूने तैयार करने के लिए गणितीय मॉडल का इस्तेमाल किया जा सकता है।
नोट: यह शोध अभी तक किसी मेडिकल जर्नल में प्रकाशित नहीं हुआ है। इसकी समीक्षा होनी बाकी है। फिलहाल इसे मेडआरकाइव पर पढ़ा जा सकता है। हम इसके तथ्यों का समर्थन और विरोध दोनों ही नहीं करते हैं।