कोविड-19 की रोकथाम और इलाज के लिए वैक्सीन बनाने की दौड़ में रूस की सेचनव यूनिवर्सिटी भी शामिल हो गई है। रविवार को ऐसी रिपोर्टें आईं, जिनमें बताया गया कि यूनिवर्सिटी ने कोविड-19 वैक्सीन के क्लिनिकल ट्रायल पूरे कर लिए हैं और ऐसा करने वाला विश्व का पहला देश है। लेकिन यह अभी तक साफ नहीं है कि सेचनव यूनिवर्सिटी ने आखिर किस चरण के ट्रायल पूरे कर लिए हैं। कुछ अन्य मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, इस वैक्सीन को तैयार करने की दिशा में दूसरे चरण के ट्रायल सोमवार यानी आज से शुरू होने की बात कही गई है। लेकिन सेचनव यूनिवर्सिटी की आधिकारिक वेबसाइट पर ऐसी कोई जानकारी नहीं है। यानी संभवतः अभी केवल एक फेज के ट्रायल ही पूरे हुए हैं, जिनमें बहुत कम संख्या में प्रतिभागियों पर कोई वैक्सीन आजमाई जाती है। ऐसे में इस कोविड-19 की इस वैक्सीन को लेकर इतना हो-हल्ला मचाने का कोई मतलब कारण नजर नहीं आता।

(और पढ़ें - भारत में 2021 से पहले कोविड-19 की वैक्सीन बनना संभव नहीं, संसदीय पैनल के सामने सीएसआईआर और अन्य विज्ञान विभागों का साफ बयान)

एक और तथ्य यह है कि दरअसल रूस में अभी तक केवल एक ही कोविड-19 वैक्सीन तैयार की गई है, जो वास्तव में ह्यूमन ट्रायल की स्टेज तक पहुंची है। इस वैक्सीन को रूस के गेमालेई नेशनल रिसर्च सेंटर फॉर एपिडेमियॉलजी एंड माइक्रोबायोलॉजी ने वहां के रक्षा मंत्रालय के साथ मिलकर बनाया है। इस वैक्सीन का पहले चरण का ट्रायल 18 जून को शुरू हुआ था, जिसमें रूसी सेना से 18 वॉलन्टियर्स को लिया गया था। रूसी समाचार एजेंसी टीएएसएस ने बताया है कि इस वैक्सीन का पहला ट्रायल 15 जुलाई को खत्म होगा और 13 जुलाई से दूसरे चरण के ट्रायल शुरू हो जाएंगे। अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, रूसी समाचार एजेंसी ने वहां के रक्षा मंत्रालय के हवाले से यह जानकारी दी है। यानी जो वैक्सीन सेचनव यूनिवर्सिटी की वैक्सीन से पहले बन चुकी है, जब उसी के ट्रायल पूरे नहीं हुए हैं तो नई रूसी वैक्सीन के पहले चरण के ट्रायल पूरे होने पर इतना हंगामा क्यों बरपा हुआ है।

(और पढ़ें - कोविड-19 की गंभीरता और मृत्यु दर से सुरक्षा दे सकती है इन्फ्लूएंजा वैक्सीन: शोध)

वैक्सीन बनाने की प्रक्रिया में आमतौर पर तीसरे चरण के ट्रायल भी किए जाते हैं। पहले चरण में जहां यह देखा जाता है कि वैक्सीन वांछित रूप से प्रभावी और सुरक्षित है या नहीं, वहीं दूसरे चरण के तहत उसकी क्षमता का अवलोकन किया जाता है। फिर अंतिम चरण के तहत तीसरे फेज में बड़ी संख्या में लोगों को बतौर वॉलन्टियर वैक्सीन दी जाती है। सामान्यतः इसमें कई महीनों का समय लगता है, जिसके बाद ही किसी वैक्सीन को संबंधित बीमारी के खिलाफ कारगर और सुरक्षित माना जाता है।

लेकिन यह अभी तक साफ नहीं है कि रूस द्वारा तैयार की गई वैक्सीन तीसरे चरण के तहत आजमाई जाएगी भी या नहीं। इस मामले में साधारण समझ यही कहती है कि तीसरे चरण को पूरा किए बिना रूस के वैज्ञानिक वैक्सीन के पूरी तरह तैयार होने का दावा नहीं करेंगे। लेकिन फिर चीन का उदाहरण सामने आ जाता है, जहां दो चरणों के ट्रायल के बाद ही एक वैक्सीन को अप्रूव कर दिया गया। हालांकि अभी इस वैक्सीन को केवल सेना के जवानों पर आजमाने के लिए मंजूरी दी गई है। यानी यहां भी वैक्सीन को सही मायने में आम लोगों के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं माना जा सकता। इन सब बातों का अर्थ यही निकलता है कि रूस अपनी दोनों वैक्सीनों के पहले ट्रायल करने के बाद भी कोरोना वायरस के खिलाफ संपूर्ण वैक्सीन बनाने से काफी दूर है।

(और पढ़ें - कोविड-19: डीसीजीआई की एक्सपर्ट कमेटी ने 'कोवाक्सिन' वैक्सीन के ट्रायल को लेकर रखी विशेष शर्तें, अब 15 अगस्त से पहले तैयार होने की संभावना नहीं)

चलते-चलते एक बात और। सेचनव यूनिवर्सिटी की वैक्सीन के लिए कहा जा रहा है कि यह मानव परीक्षण पूरी करने वाली पहली वैक्सीन है। यह दावा भी सीधे गले नहीं उतरता है। क्योंकि इस वैक्सीन से पहले कुछ अन्य चर्चित कंपनियां और यूनिवर्सिटी अपनी-अपनी वैक्सीन के पहले चरण के ट्रायल पूरे कर दूसरे और तीसरे चरण के ट्रायल करने जा रहे हैं। इनमें ब्रिटेन की ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और अमेरिका की दवा कंपनी मॉडेर्ना द्वारा निर्मित वैक्सीनों के नाम सबसे पहले जहन में आते हैं।

और पढ़ें ...
ऐप पर पढ़ें