अमेरिका की दवा कंपनी फाइजर और जर्मनी की फार्मा कंपनी बायोएनटेक द्वारा विकसित कोविड-19 वैक्सीन बीएनटी16बी2 को आखिरकार यूएस एफडीए ने आपातकालीन इस्तेमाल की मंजूरी दे दी है। स्थानीय मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, इस टीके को अप्रूवल दिए जाने को लेकर शीर्ष अमेरिकी ड्रग एजेंसी पर पहले से काफी दबाव था, क्योंकि ब्रिटेन और कनाडा में इसे इमरजेंसी अप्रूवल दिया जा चुका है। बहरहाल, इस मंजूरी के बाद उम्मीद की जा रही है कि अगले कुछ दिनों में फाइजर-बायोएनटेक की वैक्सीन आम अमेरिकी नागरिकों को लगना शुरू हो जाएगी। कंपनी ने पहले से इसके लिए वैक्सीन स्टॉक रखा हुआ है। हालांकि जानकारों और विशेषज्ञों के मन में कई सवाल बने हुए हैं।

खबरों के मुताबिक, एफडीए से मिली मंजूरी के तहत फाइजर की कोरोना वायरस वैक्सीन को 16 वर्ष या उससे ज्यादा उम्र के लोगों को लगाया जा सकता है। एफडीए ने यह भी कहा है कि पूर्व में किसी भी प्रकार के कॉम्पोनेंट के चलते गंभीर एलर्जिक रिएक्शन से प्रभावित रहे लोगों को भी यह वैक्सीन नहीं लगाई जानी चाहिए। अमेरिकी ड्रग एजेंसी ने दूसरे देशों में वैक्सीनेशन के दौरान टीके से विपरीत रिएक्शन होने के मामले सामने आने के बाद यह हिदायत दी है। वहीं, वैक्सीन सबसे पहले किसे दी जाएगी, इसे लेकर दो समूहों का ज्रिक किया गया है। बताया गया है कि कोरोना संकट से निपटने में लगे हेल्थकेयर वर्कर्स और स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं से जुड़े कर्मियों और रेजिडेंट को सबसे पहले टीका लगाया जाएगा।

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इस फैसले पर बयान जारी करते हुए एफडीए के सेंटर फॉर बायोलॉजिक्स इवैलुएशन एंड रिसर्च के निदेशक पीटर मार्क्स ने कहा है, 'आज दी गई मंजूरी (फुल) एफडीए अप्रूवल नहीं है। लेकिन इस महामारी को रोकने की प्रतिबद्धता के तहत फाइजर-बायोएनटेक की कोविड-19 वैक्सीन को आपातकालीन इस्तेमाल की अनुमति दी गई है।' इसके साथ ही बीएनटी162बी2 अमेरिका में कोविड-19 की रोकथाम के लिए एफडीए से मंजूरी प्राप्त पहली वैक्सीन बन गई है। हालांकि अमेरिका उन देशों (कनाडा और ब्रिटेन) में भी केवल इस वैक्सीन के बलबूते कोरोना वायरस संकट से पार पाना संभव नहीं होगा, जहां हाल ही में इसे इमरजेंसी अप्रूवल दिया गया है।

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उधर, जानकारों का कहना है कि फाइजर वैक्सीन कोविड-19 के सिम्प्टोमैटिक संक्रमण को डेवलेप होने से रोकने में 95 प्रतिशत सक्षम है, लेकिन ऐसे कई अन्य फैक्टर हैं जो इस महामारी को कमजोर करने की दिशा में टीके के लिए रोड़ा बन सकते हैं। उनकी मानें तो कम से कम छोटी अवधि में तो महामारी केवल वैक्सीन से कमजोर नहीं होने वाली। इसके अलावा और भी दूसरे मुद्दे हैं जो वैक्सीनेशन प्रोग्राम के आड़े आ सकते हैं। जैसे, शुरुआत में वैक्सीन की आपूर्ति काफी कम रहने वाली है; कई अमेरिकी नागरिक टीका लगवाने को लेकर नकारात्मक रुख अपनाए हुए हैं; आबादी के कुछ विशेष हिस्सों (बच्चों और गर्भवती महिलाएं) हिस्सों के लिए वैक्सीन ट्रायल नहीं किए गए हैं।

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इसके साथ ही यह भी ध्यान रखने वाली बात है कि फाइजर की वैक्सीन बीमारी के लक्षणों को तो रोकने का काम करती है, लेकिन यह साफ नहीं है कि क्या यह वायरस के ट्रांसमिशन को भी कम कर सकती है या नहीं। जानकारों के बीच यह अंदेशा बना हुआ है कि वैक्सीनेट होने के बाद भी संभवतः लोग वायरस की चपेट में आएं और खुद के इम्यून होने के विश्वास में लापरवाही बरतें और दूसरों को संक्रमित कर बैठें। यही कारण है कि विशेषज्ञों समेत सरकार के अधिकारी वैक्सीनेशन के बाद भी लोगों से सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क पहनने जैसे प्रिवेंटिव उपायों पर अमल करते रहने की अपील कर रहे हैं।

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