क्यों कोविड टीकों की आपस में तुलना करना सही नहीं है
कोविशील्ड, कोवैक्सिन और स्पुतनिक वी - भारत में एप्रूव्ड तीन कोविड वैक्सीन।
फाइजर, मॉडर्ना और स्पुतनिक वैक्सीन की एफेकसी है: 95, 94 और 91 प्रतिशत।
लेकिन कोवैक्सिन और कोविशील्ड 70 से 80 प्रतिशत असरदार पायी गयी हैं। (अभी तक कोवैक्सिन के केवल अंतरिम परिणाम ही साझा किए गए हैं।)
अगर आप सिर्फ इन नंबरों को देखें, तो यह सोचना स्वाभाविक है कि पहली तीन वैक्सीन बेहतर हैं।
लेकिन यह सही नहीं है...
आइए समझते हैं क्यों।
यह समझने के लिए कि इन एफिकेसी नंबरों का क्या मतलब है, आपको सबसे पहले यह समझना होगा कि वैक्सीन के ट्रायल किए कैसे जाते हैं।
वैक्सीन की एफिकेसी बड़े क्लिनिकल ट्रायल में मापी जाती है जिनमें हज़ारों लोगों को दो ग्रुप में बांट दिया जाता है - एक ग्रुप को वैक्सीन लगायी जाती है, और दूसरे को नहीं।
फिर, सभी को वापिस भेज दिया जाता है अपनी नार्मल लाइफ जारी रखने के लिए है।
अगले कई महीनों तक वैज्ञानिक यह मॉनिटर करते हैं कि कितने लोगों को कोविड-19 हुआ।
इसके बाद क्या होता है, यह जानने के लिए फाइजर वैक्सीन के ट्रायल डेटा को देखते हैं।
उस परीक्षण में, 43,000 लोगों को दो बराबर साइज के ग्रुप में बांटा गया था।
ट्रायल के अंत तक उनमें से 170 कोविड-19 से संक्रमित हुए।
वैक्सीन कितनी असरदार है, यह इससे तय होगा कि इन 170 में से कितने उस ग्रुप में थे जिन्हें वैक्सीन लगी थी।
उदाहरण के लिए, अगर इन 170 में से 85 को वैक्सीन लगी, और 85 को नहीं, तो इसका मतलब यह होगा कि वैक्सीन बिल्कुल भी असरदार नहीं है - यानी 0% एफिकेसी।
दूसरी ओर, अगर सभी 170 को वैक्सीन नहीं लगी थी, तो वैक्सीन 100% असरदार होगी।
फाइजर के ट्रायल में, 162 लोग उस ग्रुप में थे जिसे वैक्सीन नहीं लगी थी,
और वैक्सीन वाले ग्रुप में सिर्फ 8।
तो, एफिकेसी रेट = (162 - 8)/162 * 100 = 95%
इसका मतलब है कि वैक्सीन वाले ग्रुप में बिना वैक्सीन वाले ग्रुप के मुकाबले कोविड -19 के 95% कम मामले हुए।
हर वैक्सीन का एफिकेसी रेट इसी तरह पता लगाया जाता है।
कोविशील्ड की रिपोर्ट की गई एफिकेसी 70% है।
इसका मतलब यह नहीं है कि अगर 100 लोगों को कोविशील्ड लगी है,
तो उनमें से 30 को कोविड होगा।
बल्कि इसका मतलब ये है कि अगर आपको कोविशील्ड लगी है तो आपको कोविड होने की संभावना उस व्यक्ति के मुकाबले 70% कम है जिसे कोई भी वैक्सीन नहीं लगी है।
(और पढ़ें - क्या कोविड-19 वैक्सीन लगवाने से पहले या बाद शराब पी सकते हैं?)
तो, क्या इसका मतलब यह नहीं है कि फाइजर का टीका लगवाने वाले व्यक्ति को कोविशील्ड लगवाने वाले से कोविड होने की संभावना 25% कम है?
नहीं, यह कहना गलत है।
याद रखें कि वैक्सीन के ट्रायल वैक्सीन और बिना वैक्सीन वाले लोगों में इन्फेक्शन रेट की तुलना करते हैं।
उन लोगों में इन्फेक्शन रेट की तुलना नहीं जिन्हें अलग-अलग वैक्सीन लगी हो।
इसलिए, हम जो एफिकेसी रेट देखते हैं, उसका उपयोग दो वैक्सीन की तुलना करने के लिए नहीं किया जा सकता है।
इसके आलावा, हर वैक्सीन का ट्रायल अलग-अलग परिस्थितियों में हुआ होता है।
अलग-अलग देशों में ट्रायल किए गए होते हैं,
अलग-अलग समय पर,
जब मामलों की दरें बहुत अलग थीं,
और जब फैल रहे वैरिएंट भी अलग थे।
तो दो वैक्सीन्स के बीच तुलना करने का सिर्फ एक तरीका है कि एक ही ट्रायल में, सेम जगहों और समय पर उनको टेस्ट किया जाए।
ये एफिकेसी रेट असल में आपको सिर्फ ये बताते हैं कि उस वैक्सीन के ट्रायल में क्या हुआ, ये नहीं कि अलग-अलग वैक्सीन की तुलना कैसे की जाए।
(और पढ़ें - क्या हम कोविड-19 को हमेशा के लिए खत्म कर पाएंगे?)
कई विशेषज्ञों का तो यहाँ तक मानना है कि ये एफिकेसी नंबर वैक्सीन की क्वालिटी का सही माप हैं ही नहीं।
ऐसा क्यों?
क्योंकि इन्फेक्शन को पूरी तरह से रोकना हमेशा वैक्सीन का उद्देश्य नहीं होता है।
इनका काम वायरस को फैलने से रोकना और गंभीर बीमारी, अस्पताल की ज़रूरत और मृत्यु होने से बचाना है।
और उपलब्ध कोविड वैक्सीन में से हर एक यह सभी काम बखूबी करती हैं।
इन वैक्सीन्स के कुछ ट्रायल्स में, कुछ लोग जिन्हे वैक्सीन नहीं लगी थी, उनको अस्पताल में भर्ती करना पड़ा था, कुछ की कोविड -19 से मृत्यु भी हो गयी थी।
लेकिन किसी भी ट्रायल में एक भी पूरी तरह से वैक्सीन लगे व्यक्ति को न तो अस्पताल में भर्ती करने की ज़रूरत पड़ी और न ही कोविड से किसी की मृत्यु हुई।
ऐसा नहीं है कि एफिकेसी रेट का कोई महत्व नहीं है। लेकिन यह सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण नंबर भी नहीं है।
तो सबसे अच्छी वैक्सीन कौन सी है? वो, जो भी आपको तुरंत मिल सकती है।
हर व्यक्ति जो वैक्सीन लगवाता है, वह कोविड से जीत की तरफ हमारा एक और कदम है।
(और पढ़ें - कोविड-19 वैक्सीन के बाद साइड इफेक्ट न होने पर भी क्या वैक्सीन असरदार होती है?)
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