एक अध्ययन के शुरुआती परिणामों में कोविड-19 से ग्रस्त गर्भवती महिलाओं के नवजात बच्चों में जन्म के बाद कुछ प्रतिकूल प्रभाव देखे की जाने की बात सामने आई है। हालांकि बच्चों में इन प्रतिकूल प्रभावों की दर मामूली है और वैज्ञानिक इस बात को लेकर ज्यादा आश्वस्त दिखे हैं कि डिलिवरी के बाद शिशुओं पर मां के कोरोना संक्रमण का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। फिर भी वैज्ञानिक अध्ययन के पूरा होने की बात कह रहे हैं। अमेरिका स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, सैन फ्रांसिस्को (यूसीएसएफ) के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए अध्ययन में पता चला है कि गर्भावस्था के समय डिलीवरी से दो हफ्ते पहले सार्स-सीओवी-2 कोरोना वायरस से संक्रमित हुई महिलाओं के बच्चों को उच्च स्तर की नियोनैटल (नवजात शिशु संबंधी) इंटेंसिव केयर यूनिट (एनआईसीयू) में रखने की जरूरत पड़ी है। हालांकि ऐसे ज्यादातर बच्चों का स्वास्थ्य जन्म के छह से आठ हफ्तों तक सामान्य दिखा है।

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क्यों महत्वपूर्ण है अध्ययन?
कोविड-19 से पीड़ित गर्भवती महिलाओं की डिलिवरी के बाद उनके बच्चों में कोरोना संक्रमण के संभावित प्रभावों के बारे में जानने के लिए यूसीएसएफ के वैज्ञानिकों ने 263 नवजात बच्चों को अपनी स्टडी में शामिल किया। इनमें वे बच्चे भी शामिल थे, जिनमें से कुछ का जन्म तय समय से पहले हो गया था, कुछ को एनआईसीयू की जरूरत पड़ी थी और कुछ को श्वसन संबंधी समस्या थी। अध्ययन के मुताबिक, जन्म के आठ हफ्तों तक बच्चों में निमोनिया या निचले श्वसन मार्ग से जुड़े संक्रमण (लोअर रेस्पिरेटरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन) के कोई लक्षण नहीं दिखे थे। लेकिन इस दौरान कुछ बच्चों को हाई लेवल के आईसीयू में रखना पड़ा था।

अध्ययन से जुड़े ये परिणाम क्लिनिकल इन्फेक्शियस डिसीजेज नामक मेडिकल पत्रिका में प्रकाशित हुए हैं। इसकी रिपोर्ट में अध्ययन की प्रमुख लेखक वलेरी जे फ्लेहर्मन ने कहा है, 'बच्चों का स्वास्थ्य ठीक है। वे ठीक व्यवहार कर रहे हैं और यह अच्छी बात है।' यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के पेडियाट्रिक्स एंड एपिडेमियोलॉजी एंड बायोस्टेटिस्टिक्स डिपार्टमेंट की प्रोफेसर के रूप में वलेरी ने कहा, 'कोरोना वायरस जब पहली बार सामने आया तब इससे जुड़े कई अजीब और दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं देखने को मिली थीं। लेकिन इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी कि कोविड-19 गर्भवती महिलाओं और उनके नवजात बच्चों को किस प्रकार प्रभावित करती है। हमें कोई आइडिया नहीं था कि ऐसे बच्चों से किस प्रकार के व्यवहार की उम्मीद की जाए। इस लिहाज से देखा जाए तो यह (ज्यादातर बच्चों का कई हफ्तों बाद भी सामान्य व्यवहार करना) अच्छी खबर है।'

खबर के मुताबिक, कोरोना वायरस के गर्भवती महिलाओं और उनके बच्चों पर पड़ने वाले संभावित जोखिमों को समझने के लिए यूसीएसएफ ने मार्च 2020 में एक राष्ट्रीय प्रोजेक्ट के तहत इस प्रॉसपेक्टिव स्टडी की शुरुआत की थी। यह पहले से ज्ञात है कि गर्भावस्था में महिलाओं के इम्यून सिस्टम में बदलाव होता है, जो वायरस से होने वाली बीमारियों (जैसे इन्फ्लूएंजा) के खतरे को बढ़ा सकता है। अतीत में आई महामारियों में यह देखा गया है कि गर्भावस्था में होते हुए जिन महिलाओं को फ्लू संक्रमण हुआ, उनमें से कइयों को अस्पताल में भर्ती होना पड़ा, उनका मिसकैरिज हुआ या उन्होंने मृत बच्चों को जन्म दिया और/या उनके बच्चों में जन्म से शारीरिक कमियां होने का ज्यादा खतरा देखा गया।

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यहां उन अध्ययन आधारित रिपोर्टों का उल्लेख भी जरूरी है, जिनमें कहा गया है कि गर्भावस्था के दौरान कोरोना संक्रमण होने से महिलाओं के समय से पहले प्रसव होने का खतरा बढ़ सकता है और मां से बच्चे को भी इन्फेक्शन हो सकता है। भारत समेत दुनिया के कई देशों में ऐसे दुर्लभ मामले सामने आ चुके हैं। इन तमाम पहलुओं पर पहले जानकारी उपलब्ध नहीं थी और न ही यह ज्ञात था कि कोविड-19 नवजात बच्चों को जन्म के बाद प्रभाव करती है या नहीं।

कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी का अध्ययन इन पहलुओं पर प्रकाश डालता है। इसमें वैज्ञानिकों ने 179 कोरोना पॉजिटिव और 84 नेगेटिव टेस्ट वाली मांओं के नवजात बच्चों को शामिल किया, जिनका जन्म कोविड-19 संकट के दौरान हुआ था। पॉजिटिव पाई गई 179 महिलाओं में से 146 (81 प्रतिशत) सिम्प्टोमैटिक थीं। वहीं, नेगेटिव टेस्ट वाली 84 मांओं में से 53 में संक्रमण से जुड़े लक्षण दिखे थे। अध्ययन के मुताबिक, इन कुल 263 महिलाओं में से 44 के बच्चों को नवजात संबंधी आईसीयू में एडमिट करना पड़ा था। हालांकि किसी में भी निमोनिया या फेफड़ों से जुड़े श्वसनमार्ग संक्रमण की शिकायत देखने को नहीं मिली थी। हालांकि 56 नवजातों में ऊपरी श्वसन संक्रमण की जांच की गई थी और उनमें से तीन में यह समस्या देखने को मिली थी। इन तीन नवजातों में से दो को कोविड पॉजिटिव महिलाओं ने जन्म दिया था, जबकि एक बच्चा नेगेटिव टेस्ट वाली महिला से जन्मा था।

अध्ययन के परिणामों के हवाले से बताया गया है कि जिन गर्भवती महिलाओं के टेस्ट पॉजिटिव निकले थे, उनके बच्चों में सार्स-सीओवी-2 टेस्ट पॉजिटिव निकलने की दर केवल 1.1 प्रतिशत थी। हालांकि बीमारी उन्हें किसी प्रकार से प्रभावित करती नहीं देखी गई। इस बारे में अध्ययन की एक और लेखिका स्टेफनी गॉ का कहना है, 'कुल मिलाकर शुरुआती परिणामों से इसकी फिर पुष्टि होती है कि (गर्भवती महिलाओं के कोरोना वायरस से संक्रमित होने से) उनके नवजातों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। लेकिन यहां यह कहना जरूरी है कि ये परिणाम गर्भावस्था की तीसरी त्रैमासिक अवधि (आखिरी तीन महीने) में संक्रमण की चपेट में आई महिलाओं के नवजातों से संबंधित हैं। इसलिए प्रेग्नेंसी रिस्क से जुड़ी पूरी तस्वीर हमारे अध्ययन के पूरी तरह मुकम्मल होने के बाद साफ होगी।'

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