कोविड-19 से जुड़ा एक आम तथ्य यह है कि यह बीमारी पुरुषों के लिए ज्यादा जानलेवा है। बीते छह महीनों के दौरान ऐसे कई शोध सामने आए हैं, जिनमें कहा गया है कि दुनियाभर में कोविड-19 से मारे गए लोगों में ज्यादातर पुरुष शामिल हैं। लेकिन भारत में एक अलग स्थिति देखने को मिल रही है। यहां कोरोना वायरस के ज्यादातर मरीज तो पुरुष हैं, लेकिन मौत का खतरा उनकी अपेक्षा महिलाओं पर ज्यादा है। देश-विदेश के कुछ प्रतिष्ठित संस्थानों द्वारा कोविड-19 से जुड़े 20 मई तक के आंकड़ों का विश्लेषण करने के बाद यह बात सामने आई है। इसके मुताबिक, भारत में कोरोना वायरस के कुल मामलों के हिसाब से पुरुषों की मृत्यु दर यानी केस फटैलिटी रेट (सीएफआर- कुल पुष्ट मामलों से संबंधित पुष्ट मौतों के अनुपात में) जहां 2.9 प्रतिशत था, वहीं, महिलाओं में यह दर आश्चर्यजनक रूप से 3.3 प्रतिशत थी।
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जानी-मानी विज्ञान व स्वास्थ्य पत्रिका 'जर्नल ऑफ ग्लोबल हेल्थ साइंस' में प्रकाशित इस अध्ययन को पॉप्युलेशन रिसर्च सेंटर, इंस्टीट्यूट ऑफ इकनॉमिक ग्रोथ (दिल्ली), इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ मैनेजमेंट रिसर्च, आईआईएचएमआर यूनिवर्सिटी (जयपुर), सेंटर फॉर डेवलेपमेंट स्टडीज (तिरुवनंतपुरम), हार्वर्ड सेंटर फॉर पॉप्युलेशन एंड डेवलेपमेंट स्टडीज (कैंब्रिज), यूएसए एंड डिपार्टमेंट ऑफ सोशल एंड बिहैवियरल साइंसेज और हार्वर्ड टीएच चैन स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ (बॉस्टन) के शोधकर्ताओं ने अंजाम दिया है।
इन विशेषज्ञों ने कोविड-19 के मरीजों और मृतकों के आंकड़ों का आयु और लिंग के आधार पर विश्लेषण किया। इसमें मालूम चला कि बीती 20 मई तक देश में कोरोना वायरस के कुल मरीजों में 66 प्रतिशत पुरुष थे, जबकि महिला मरीजों की संख्या 34 प्रतिशत थी। शुरुआती आंकलनों में स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा था कि देश में कोविड-19 के कुल मामलों में से तीन-चौथाई पुरुषों से जुड़े हैं, लेकिन शोधकर्ताओं का कहना है कि इन आंकड़ों को भिन्न-भिन्न तरीके से देखना होगा ताकि यह समझा जा सके कि क्या बच्चों, वयस्कों और वृद्धों में संक्रमण और मौत का खतरा एक जैसा है। इस मामले में (आयु और लिंग) ज्यादातर अध्ययन वयस्क और बुजुर्ग मौतों पर आधारित हैं। वहीं, भारत में इस विषय पर विस्तृत जानकारी उपलब्ध नहीं है कि यहां किस आयु और किस लिंग के लोगों को कोरोना वायरस से ज्यादा खतरा है।
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बहरहाल, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपने स्टैंडर्ड पॉप्युलेशन स्ट्रक्चर के आधार पर जनसंख्या के लिहाज से भारत के लिए सीएफआर 3.34 प्रतिशत रखा हुआ है। वहीं, शोध में यह समायोजित-सीएफआर 4.8 प्रतिशत निकला है। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में पॉप्युलेशन हेल्थ और जियोग्राफी के प्रोफेसर एसवी सुब्रमणियन का कहना है, 'कोविड-19 के संक्रमण और इससे होने वाली मौतों के संपूर्ण खतरे के साथ-साथ आयु और लिंग आधारित जांच भी की जानी चाहिए। यह एक चिंता का विषय है। कई देशों में पहले सामने आए साक्ष्य बताते हैं कि पुरुषों पर संक्रमण और मृत्यु दोनों का खतरा ज्यादा है, लेकिन इस तरह के तथ्यों की व्याख्या करते हुए सावधानी बरतने की जरूरत है।'
शोध के मुताबिक, पांच साल से कम उम्र के लड़के-लड़कियों में ये दोनों खतरे लगभग एक बराबर (क्रमशः 51.5 प्रतिशत और 48.5 प्रतिशत) हैं। मध्य आयु वर्ग के मरीजों में यह खतरा पुरुषों में ज्यादा हो जाता है, जो 70.4 प्रतिशत तक पहुंच जाता है। लेकिन इसके बाद आयु के लिहाज से महिलाओं में कोरोना वायरस से संक्रमित होने और मारे जाने का खतरा बढ़ता जाता है। कुल मौतों में जहां उनकी मृत्यु दर 36.9 प्रतिशत है, वहीं 70-79 और 80 साल से ज्यादा उम्र के मरीजों में यह दर 40 प्रतिशत से ज्यादा हो जाती है।
20 मई तक के आंकड़ों के मुताबिक, कुल संक्रमितों में बच्चों और 20 वर्ष से कम आयु के मरीजों की संख्या 13.8 प्रतिशत थी। लेकिन उस समय तक हुई कुल मौतों में ऐसे मरीजों की तादाद केवल 2.8 प्रतिशत थी। लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि इस आयु वर्ग में किसी भी पुरुष की मौत नहीं हुई थी। यानी इस वर्ग में कोविड-19 से मारे गए सभी मृतक महिलाएं थीं। वहीं, 60 साल या उससे ज्यादा उम्र के संक्रमितों का आंकड़ा 9.7 प्रतिशत था, लेकिन उनकी मृत्यु दर 51.6 प्रतिशत थी। अब इस आंकड़े को अगर लिंग के आधार पर देखें तो पता चलता है कि इन 51.6 प्रतिशत मृतकों में पुरुषों की संख्या 50.7 प्रतिशत थी, जबकि महिलाओं की संख्या 54.5 प्रतिशत थी।