कोविड-19 को लेकर कुछ समय पहले कहा गया था कि यह बीमारी विशेष ब्लड ग्रुप (टाइप ओ) वाले लोगों के लिए कम घातक मालूम होती है। लेकिन हाल में आए एक नए अध्ययन में इसके उलट राय दी गई है। इसमें कहा गया है कि सार्स-सीओवी-2 कोरोना वायरस की चपेट में आने के बाद कोविड-19 से ग्रस्त हुए लोगों पर उनके ब्लड ग्रुप का बहुत कम प्रभाव पड़ता है। अध्ययन का तर्क है कि पहले आई जिन स्टडीज में कोरोना वायरस के प्रभावों और एबीओ ब्लड ग्रुप के बीच के संबंध को जोड़ा गया था, उनमें मरीजों की नियंत्रित तुलना नहीं की गई थी।

अमेरिका स्थित मैसच्युसेट्स जनरल अस्पताल (एमजीएच) के शोधकर्ताओं ने अपने रिसर्च में कोविड-19 के 957 मरीजों को शामिल किया। इन सभी को कोरोना वायरस से संक्रमित होने के चलते अस्पताल में भर्ती किया गया था। वहीं, फरवरी के मध्य और मई के मध्य के बीच किए गए एक अन्य संबद्ध रिसर्च को भी इस अध्ययन में शामिल किया गया। रिसर्च में शामिल 957 मरीजों में से 135 की कोविड-19 से मौत हो गई थी। लेकिन उनकी मौत का उनके ब्लड ग्रुप से कोई संबंध नहीं पाया गया। शोधकर्ताओं ने अस्पताल में भर्ती मौजूदा मरीजों की तुलना अन्य कारणों या बीमारियों के चलते अस्पताल में भर्ती दूसरे मरीजों से भी की। लेकिन यहां भी ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिला, जिसके आधार पर यह कहा जा सके कि विशेष रक्त समूह वाले लोगों को कोविड-19 से खतरा ज्यादा होता है।

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ये परिणाम बीते महीने प्रकाशित हुए एक अन्य अध्ययन के परिणामों से मिलते हैं। इसमें बताया गया था कि हालांकि टाइप ओ ब्लड ग्रुप वाले लोगों के आसानी से कोविड-19 की चपेट में आने की आशंका कम लगती है, लेकिन अन्य ब्लड ग्रुपों का भी कोविड-19 के गंभीर होने से कोई संबंध नहीं है। बता दें कि कोविड-19 से गंभीर रूप से बीमार होने के पीछे ब्लड ग्रुप को एक वजह बताए जाने दावा तब चर्चा का विषय बन गया जब चीन के शोधकर्ताओं ने अपने एक अप्रकाशित अध्ययन के आधार पर कहा कि ओ रक्त समूह वाले लोगों पर कोविड-19 होने का खतरा काफी कम होता है। इस बारे में नए अध्ययन के वैज्ञानिकों का कहना है कि चीनी शोधकर्ताओं ने कोविड-19 के मरीजों के ब्लड ग्रुप की तुलना स्वस्थ आबादी के आधार पर की थी, न कि अस्पताल में भर्ती नॉन-कोविड-19 मरीजों से, जोकि बेहतर परिणाम देने वाला एक ज्यादा उपयुक्त कंट्रोल ग्रुप होता है।

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चीन की ही तरह स्पेन और इटली के वैज्ञानिकों ने भी अपने-अपने अध्ययनों के हवाले से टाइप ओ ब्लड ग्रुप वाले लोगों को कोरोना संक्रमण के प्रति ज्यादा प्रोटेक्टिव पाया था। लेकिन उसमें स्वस्थ ब्लड डोनर्स को बतौर कंट्रोल ग्रुप इस्तेमाल किया गया था। एमजीएच के शोधकर्ताओं ने बताया है कि इस तरह का कंट्रोल ग्रुप केवल ओ समूह के पक्ष में परिणाम देने के लिए जाना जाता है, क्योंकि इस ग्रुप के रक्तदाताओं को ब्लड डोनेट करने के लिए ज्यादा प्रेफर किया जाता है। इन नई जानकारियों के आधार पर मिशिगन यूनिवर्सिटी में इम्यूनोहेमटोलॉजी की निदेशक लॉरा कूलिंग का कहना है, 'कोविड-19 और ब्लड ग्रुप से जुड़े जो नए अध्ययन सामने आए हैं, उनसे यह पता चलता है कि यह संबंध असल में कमजोर है।'

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