निमोनिया को कोविड-19 बीमारी का गंभीर लक्षण माना जाता है। मेडिकल विशेषज्ञों के मुताबिक, अगर कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-2 से संक्रमित किसी व्यक्ति को निमोनिया हो जाए तो उसके बचने की संभावना काफी कम हो जाती है। लेकिन राजस्थान के जयपुर स्थित सवाई मान सिंह (एसएमएस) अस्पताल के डॉक्टरों का कहना है कि उन्होंने कोविड-19 के जितने मरीजों का इलाज किया है, उनमें से ज्यादातर की मौत निमोनिया नहीं, बल्कि फेफड़ों में खून के जमने (ब्लड क्लॉटिंग) के चलते हुई है।
हाल में कई शोध रिपोर्टों में पता चला है कि तेज बुखार, खांसी और सांस में तकलीफ (जो निमोनिया हो सकता है) के अलावा भी कोविड-19 के कई लक्षण हो सकते हैं। ब्लड क्लॉटिंग उन्हीं में से एक है, जिसकी तस्दीक सवाई मान सिंह अस्पताल के डॉक्टरों के बयानों से भी होती है। उनकी मानें तो ब्लड क्लॉटिंग की वजह से कोविड-19 के इलाज में मुश्किलें आ रही हैं।
एसएसएस अस्पताल को कोविड-19 के मरीजों के इलाज के लिए विशेष रूप से तैयार किया गया है। यहां अभी तक 600 से ज्यादा मरीजों का ट्रीटमेंट किया जा चुका है। इनमें से 40 से ज्यादा मरीजों की मौत हुई है, जिनमें से अधिकतर की मौत की वजह ब्लड क्लॉटिंग है। डॉक्टरों के मुताबिक, वे बकायदा आधुनिक तकनीक की मदद से मरीजों में ब्लड क्लॉटिंग डिसऑर्डर की पहचान कर रहे हैं। इस बारे में अस्पताल के प्रमुख और नियंत्रक डॉ. सुधीर भंडारी ने बताया, 'हमने पाया है कि ज्यादातर गंभीर मरीजों में (ब्लड) क्लॉटिंग डिसऑर्डर की समस्या है। ये क्लॉट्स फेफड़ों से जुड़ी नसों में रुकावट पैदा कर रहे हैं।'
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डॉ. भंडारी और उनकी टीम के डॉक्टरों ने कहा है कि इस समस्या के चलते मरीजों का इलाज मुश्किल हो रहा है। उनके मुताबिक, इससे मरीज थ्रोमोबोसिस की कंडीशन में चले जाते हैं। इसमें खून के जमे हुए थक्के फेफड़ों में ट्रैवल करते हैं और नसों को ब्लॉक कर देते हैं। इससे खून में डी-डिमर की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे मरीजों की हालत नाजुक हो जाती है। एसएमएस अस्पताल के डॉक्टरों ने बताया कि कोविड-19 के कई मरीजों में अस्पताल लाने से पहले ही यह कंडीशन देखी गई है, जो उनके मारे जाने का प्रमुख कारण रही है।