कोरोना वायरस के इलाज में अब तक कोई प्रभावी वैक्सीन विकसित नहीं हुई है। लिहाजा वैज्ञानिक संभावित विकल्पों के तौर पर अन्य बीमारी के उपचार में इस्तेमाल की जाने वाली दवा या वैक्सीन का उपयोग कर रहे हैं। इसमें से एक है बेसिल कालमेट ग्युरिन (Bacille Calmette-Guerin) यानी बीसीजी वैक्सीन, जिसका इस्तेमाल ट्यूबरक्लोसिस यानी टीबी संक्रमण से बचाव के तौर पर किया जाता है। लेकिन शोधकर्ताओं का कहना है कि बीसीजी वैक्सीन के जरिए कोविड-19 संक्रमण से भी बचाव में मदद मिल सकती है। 

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एंटीबॉडी के उत्पादन में सहायक बीसीजी वैक्सीन
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च यानी आईसीएमआर के शोधकर्ताओं ने यह दावा किया है। अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया कि लगभग एक सदी पुरानी बीसीजी की वैक्सीन बुजुर्गों को कोविड-19 जैसे संक्रमण के खिलाफ लड़ने में मदद कर सकती है। शोधकर्ताओं का कहना है कि बीसीजी वैक्सीन के जरिए "बुजुर्गों में मेमोरी सेल रिस्पॉन्स और टोटल एंटीबॉडी प्रोडक्शन में वृद्धि" देखने को मिली है। हालांकि, अभी इस अध्ययन के निष्कर्षों की समीक्षा की जानी बाकी है। इसके बाद ही वैज्ञानिकों के दावे को पुष्टि के तौर पर देखा जा सकता है।

कैसे की गई रिसर्च ?
बीसीजी वैक्सीन से जुड़े अध्ययन के तहत आईसीएमआर के शोधकर्ताओं ने जुलाई से सितंबर तक 86 व्यक्तियों को चिन्हित किया। रिपोर्ट में बताया गया है कि शोध में शामिल इन सभी लोगों की उम्र 60 से ऊपर थी। लेकिन इस दौरान केवल 54 लोगों को ही बीसीजी की वैक्सीन दी गई थी, जबकि 32 लोगों को यह टीका नहीं लगाया गया था। शोधकर्ताओं ने वैक्सीनेशन के एक महीने बाद टीकाकरण वाले समूह के लोगों को फॉलोअप में रखा। इसके बाद उन्होंने पाया कि बीसीजी वैक्सीन के जरिए स्वस्थ व्यक्तियों में प्राकृतिक और अडैप्टिव इम्यूनिटी को बढ़ाने में मदद मिली। वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला, "बीसीजी वैक्सीनेशन से जुड़े समूह के लोगों में प्राकृतिक और अडैप्टिव मेमोरी सेल में वृद्धि हुई। साथ ही साथ यह बुजुर्ग व्यक्तियों में कुल एंटीबॉडी स्तर से भी जुड़ा था। इस तरह सार्स-सीओवी-2 संक्रमण में बीसीजी वैक्सीन की संभावित उपयोगिता का पता चला है।" 

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श्वसन संक्रमण के खिलाफ सुरक्षा देती है बीसीजी वैक्सीन
आईसीएमआर के वरिष्ठ महामारी विशेषज्ञ और मुख्य वैज्ञानिक डॉ. समीरन पांडा का कहना है "बीसीजी वैक्सीन बुजुर्गों के लिए एक उपयोगी उपकरण हो सकती है जिसकी सहायता से कोविड-19 महामारी की स्थिति में संक्रमण से लड़ने की उनकी क्षमता बढ़ सकती है। इस तरह यह रिसर्च उन आयु वर्ग के लोगों के लिए एक बड़ी उम्मीद की तरह है, जिन्होंने इस महामारी में अब तक सबसे ज्यादा जान गंवाई है। डॉ. पांडा आगे कहते हैं कि एक बार इस रिसर्च की समीक्षा पूरी हो जाए, इसके बाद निश्चित रूप से कोविड-19 के खिलाफ एक मजबूत हथियार साबित हो सकता है।

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रिपोर्ट के मुताबिक जो लोग (32 बुजुर्ग) आईसीएमआर की इस रिसर्च में शामिल नहीं हुए उनमें से कुछ सार्स-सीओवी-2 वायरस से पॉजिटिव पाए गए थे। वहीं कुछ व्यक्ति एचआईवी से संक्रमित थे। इसके अलावा कुछ लोगों का ट्रांसप्लांट हुआ था तो कुछ डायलिसिस या एंटी-साइकेट्रिक दवा ले रहे थे। दूसरी ओर कुछ लोग वैक्सीन को लेकर संवेदनशील दिखाई दिए। वहीं, इसमें कुछ ऐसे भी बुजुर्ग थे जो टीबी की बीमारी से पीड़ित थे और छह महीने पहले ही उन्हें इस बीमारी से संक्रमित होने का पता चला था। गौरतलब है कि बुजुर्ग व्यक्तियों से जुड़े पिछले अध्ययनों से पता चला था कि बीसीजी की वैक्सीन से सांस संबंधी संक्रमण के खिलाफ भी सुरक्षा मिलती है।

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