चिकन पॉक्स एक वायरल इन्फेक्शन है जो कि वेरिसैला-जोस्टर वायरस के कारण होता है। ये वायरस हवा या संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने की वजह से फैलता है। आमतौर पर ये संक्रमण 10 वर्ष से कम आयु के बच्चों को प्रभावित करता है लेकिन कभी-कभी वयस्क भी इससे ग्रस्त हो सकते हैं। चिकन पॉक्स में पूरे शरीर पर खुजलीदार फफोले या दाने हो जाते हैं।
10 से 15 महीने के शिशु और उसके बाद 4 से 6 साल की उम्र के बच्चे को चिकन पॉक्स वैक्सीन लगवाकर इस बीमारी से बचा जा सकता है। हालांकि, वैक्सीन के बाद भी बच्चे को चिकन पॉक्स (हलका या सामान्य) हो सकता है।
आयुर्वेद के अनुसार त्रिदोष (वात पित्त और कफ) के खराब होने के कारण चिकन पॉक्स या लघु मसुरिका होता है। पंचकर्म थेरेपी में से एक वमन (औषधियों से उल्टी लाने की विधि) के साथ लेप (औषधियों से बने पेस्ट को प्रभावित हिस्से पर लगाना) से चिकन पॉक्स का इलाज किया जाता है। लेप में निम्बा (नीम) जैसी जड़ी बूटियों का इस्तेमाल किया जाता है।
शरीर से संक्रमण को दूर करने के लिए खून साफ करने वाली जड़ी बूटियों जैसे कि यष्टिमधु (मुलेठी), गुडूची, हरिद्रा (हल्दी) और मंजिष्ठा दी जाती है। संक्रमित व्यक्ति के आसपास साफ-सफाई का ध्यान रखकर, साफ कपड़ों और चीजों का प्रयोग कर बीमारी को फैलने से रोकने और जल्दी ठीक करने में मदद मिलती है। इस बीमारी में मरीज़ को कमरे में अकेला रहना पड़ता है।