कैंसर एक ऐसी बीमारी है जो सफल इलाज के बाद भी फिर से सामने आ सकती है। ऐसे लोगों की संख्या कम नहीं है, जिनका कैंसर एक बार ठीक होने के बाद फिर से विकसित हो गया। वैज्ञानिक ऐसा होने के कारणों का पता लगाने की कोशिश में लगे हुए हैं। इसके तहत वे यह जानने और समझने का प्रयास कर रहे हैं कि कैसे पहचान में न आने वाली (अनडिटेक्टिबल) कोशिकाएं फिर से बीमारी को सक्रिय कर सकती हैं, जो अक्सर पिछले अनुभव से ज्यादा गंभीर और तीव्र होती है। इस सिलसिले में हाल में प्रकाशित एक अध्ययन कहता है कि स्ट्रेस हार्मोन का बढ़ना शरीर में निष्क्रिय (कैंसरकारी) ट्यूमर सेल्स को फिर से जगाने का काम कर सकता है। ऐसा होने पर ट्रीटमेंट से ठीक हुआ कैंसर फिर सामने आ सकता है। यह जानकारी अध्ययन समेत साइंस ट्रांसलेशन मेडिसिन नामक मेडिकल पत्रिका में प्रकाशित हुई है।

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अध्ययन में जिस स्ट्रेस हार्मोन को इनएक्टिव ट्यूमर सेल्स को जगाने के लिए जिम्मेदार बताया गया है, उसका नाम नॉरएपिनेफ्रिन है। यह हार्मोन प्राकृतिक रूप से शरीर में पाया जाता है। जब शरीर में तनाव उच्च स्तर पर पहुंचता है तो रक्त वाहिकाओं में इस हार्मोन रसायन की संख्या बढ़ जाती है। कुछ दूसरे कैंसर मॉडल आधारित अध्ययनों में पता चला है कि नॉरएपिनेफ्रिन का बढ़ा स्तर न्यूट्रोफिल्स नाम की कोशिकाओं को एक्टिव कर देता है। ये कोशिकाएं ट्यूमर सेल्स को इम्यून सिस्टम से सुरक्षा प्रदान करती हैं। इसके अलावा, न्यूट्रोफिल्स के सक्रिय होने से इन कोशिकाओं में विशेष प्रकार के लिपिड (एक प्रकार का पदार्थ) रिलीज होते हैं, जो सो रही कैंसर सेल्स को जगा देते हैं।

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इस जानकारी को सामने लाने वाले वैज्ञानिकों में शामिल और अध्ययन की प्रमुख लेखक मिखेला पेरेगो कहती हैं, 'यह एक तरह का ट्राएंगल है। इसमें शरीर में कई तरह की गतिविधियां होती हैं, जो अंत में एक बहुत ही ताकतवर फोर्स के साथ निष्क्रिय ट्यूमर सेल्स को जगाने का काम करती हैं।' पेरेगो और उनके साथियों ने चूहों पर परीक्षण करने के बाद यह बात कही है। उन्होंने पहले चूहों में लंग कैंसर से जुड़ी डोरमेंट सेल्स इन्जेक्ट कीं। फिर इन चूहों को एक खास जगह पर रखा गया, जहां उनके पास घूमने के बहुत कम जगह थी। इससे चूहों को लगा कि वे किसी जाल में फंस गए हैं। इस कारण चूहों में तनाव का लेवल बढ़ गया। अध्ययन में शामिल इन चूहों में से कुछ को प्रयोग के तौर पर बेटा ब्लॉक ड्रग्स भी दिए गए थे, जिन्हें ब्लड प्रेशर के इलाज के लिए इस्तेमाल किया जाता है। शोधकर्ताओं ने पाया है कि जिन चूहों को ये दवाएं दी गई थीं, उनमें ट्यूमर सेल्स निष्क्रिय बने रहे।

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चूहों पर परीक्षण करने के अलावा, वैज्ञानिकों ने लंग कैंसर के ऐसे 80 मरीजों की भी जांच की, जिन्हें अपनी बीमारी के इलाज के लिए सर्जरी करवानी पड़ी थी। इस ग्रुप में 17 मरीज ऐसे थे, जिनका कैंसर ट्यूमर सर्जरी के बाद के तीन सालों में ही वापस उभर गया था। वहीं, 63 मरीजों में से कुछ में कैंसर एक वक्त के बाद वापस आया और कुछ में कभी नहीं आया। इन मरीजों की तुलना में जिन बाकी 17 मरीजों में कैंसर जल्दी वापस आया, उनके शरीर में हार्मोन आधारित रासायनिक बढ़ोतरी पाए जाने का पता चला है, जिससे न्यूट्रोफिल के एक्टिवेट होने का संकेत मिलता है। इस पर पेरेगो का कहना है, 'यह प्रारंभिक खोज आगे के अध्ययनों में भी सच साबित हुई तो आप थेरेपी करवा रहे किसी कैंसर पेशंट के स्ट्रेस हार्मोन की निगरानी कर सकेंगे।'

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