क्या सांस के रूप में शरीर के अंदर ली जाने वाली हवा कैंसर का पता लगाने में मदद कर सकती है? वैज्ञानिक इस सवाल का जवाब ढूंढने की कोशिश में लगे हैं। इसके तहत उन्होंने ऐसे सलूशन यानी घोल विकसित किए हैं, जिनकी मदद से श्वसन गैस का विश्लेषण किया जा सकता है। खबर के मुताबिक, वैज्ञानिक शोध व अध्ययन से जुड़ी तकनीकों पर काम करने वाले एक अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम फ्रॉनहोफर प्रोजेक्ट हब फॉर माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक एंड ऑप्टिकल सिस्टम के वैज्ञानिकों ने इन सलूशन को डेवलेप किया है। हालांकि इन विशेषज्ञों के शोध का फोकस शुरुआती कैंसर डिटेक्शन पर है, फिर भी इस जानलेवा बीमारी की जल्दी पहचान करने के लिहाज से यह महत्वपूर्ण है। वहीं, अध्ययनकर्ताओं की मानें तो कैंसर के अलावा कोविड-19 और ऐसी अन्य श्वसन संबंधी रोगों में अंतर करने में भी यह नई तकनीक काम आ सकती है।

जानकारों के मुताबिक, कुछ बीमारियों की अपनी एक अलग गंध होती है। उदाहरण के लिए, थोड़ी ज्यादा मीठी और फ्रूटी एसीटोन जैसे गंध डायबिटीज का संकेतक हो सकती है। कुछ रिपोर्टें बताती हैं कि प्राचीन ग्रीस के समय के फिजिशन गंध के जरिये ही बीमारी का पता लगाते थे। ये विशिष्ट गंध विशेष प्रकार के वाष्पशील ऑर्गैनिक कंपाउंड्स (वीओसी) के कारण बनती हैं और लक्षणों के स्पष्ट रूप से दिखने से पहले बीमारी से ग्रस्त ऊतकों या सीधे रोगाणु से प्रसारित होती है।

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इस बारे में प्रोजेक्ट से जुड़ी एक शोधकर्ता डॉ. जेसी स्कॉनफेल्डर कहती हैं, 'कई बीमारियां ऐसी हैं, जो सांस के रूप में ली गई हवा (एक्स्हेल्ड एयर) में वोलटाइल ऑर्गेनिक ट्रेस गैसों की कंपोजीशन में बदलाव कर देती हैं। इस हवा को बीमारी के संकेतकों के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। ये (संकेतक) अक्सर अनेक ट्रेस गैसों का मिश्रण होते हैं, जो कम या ज्यादा घनत्व में होते हैं और किसी विशेष बीमारी के सूचक हो सकते हैं। इसे वीओसी फिंगरप्रिंट या वीओसी पैटर्न के रूप में जाना जाता है।'

रिपोर्ट के मुताबिक, डॉ. जेसी और उनकी टीम इसी वीओसी पैटर्न को आइडेंटिफाई करने के लिए विशेष आईओएन-मोबिलिटी स्पेक्ट्रोमीटर विकसित करने में लगे हुए हैं। लेकिन इस काम में बहुत ज्यादा मेहनत लगने वाली है। अनुमान के मुताबिक, हरेक व्यक्ति एक सांस में 200 के आसपास वीओसी एक्स्हेल करता है। बीमारी को डिटेक्ट करने के लिए हरेक वीओसी को समझना होगा और यही डॉ. जेसी और उनकी टीम के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। वे कैंसर और विशेषकर लंग कैंसर की पहचान करने के लिए इस प्रोजेक्ट पर काम कर रही हैं। उनकी टीम को यकीन है कि यह नई तकनीक बड़ी संख्या में बायोमार्कर्स की पहचान करने में सक्षम होगी।

डॉ. जेसी मानती हैं कि मौजदा सेंसर सिस्टम में ब्रेथ गैस का विश्लेषण करने की काफी क्षमता है। उन्होंने इसके लिए विशेष आईओएन-मोबिलिटी स्प्क्ट्रोमीटर (आईएमएस) विकसित किया है, जो वीओसी पैटर्न की पहचान कर सकता है। वे कहती है, 'सेंसर सिस्टम में ब्रेथ गैस का विश्लेषण करने की काफी संभावना है। आईएमएस टेक्नोलॉजी नॉन-इनवेसिव, सेंसिटिव और सिलेक्टिव होती है। यह तेजी से काम करती है और कम खर्चीली है। साथ ही इसे आसानी से छोटी सी जगह में रखना और कहीं ले जाना भी संभव है। लिहाजा ऐसा कोई कारण नहीं है कि इसका मेडिकल एक्सपर्ट और अस्पतालों द्वारा इस्तेमाल न किया जाए। हम जो प्रॉडक्ट तैयार कर रहे हैं, उसका साइज किसी जूते के डिब्बे जितना होगा।'

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जेसीन ने जिस प्रॉडक्ट यानी आईएमएस सिस्टम की बात की, उसके केंद्र में एक फेम्स चिप ऑल्टरनेटिंग वोल्टाज के साथ लगा होगा। माइक्रोइलेक्ट्रोमकैनिकल सिस्टम में आईओएन फिल्टर और एक डिटेक्टर शामिल होते हैं। इसके अलावा डिवाइस में एक यूवी लैंप भी होता है। गैस के रूप में वीओसी जब स्पेक्ट्रोमीटर में पंप होंगे तो यूवी लाइट उन्हें आयोनाइज (किसी इलेक्ट्रॉन का एक हिस्सा छोड़ते या पकड़ते हुए उसमें पॉजिटिव या नेगेटिव इलेक्ट्रिक चार्ज प्राप्त करना) कर देगा। दूसरे शब्दों में कहें तो वीओसी चार्ज्ड मॉलिक्यूल्स में बदल जाएंगे। आगे की प्रक्रिया को लेकर जेसी ने बताया, 'फिर इन्हें (मॉलिक्यूल्स) फेम्स चिप में डाला जाएगा और फिल्टर इलेक्ट्रोड्स पर ऑल्टरनेटिंग वोल्टाज को अप्लाई किया जाएगा। फिल्टर में वोल्टाज को अजस्ट कर आप डिटेक्टर में पारित होने वाले वीओसी को नियंत्रित कर सकते हैं। इससे एक वीओसी फिंगरप्रिंट जनरेट होगा, जिससे हम उस बीमारी की पहचान कर सकते हैं, जिसका पता लगाने की कोशिश हो रही है।'

फिलहाल वैज्ञानिक इस काम के लिए इलेक्ट्रॉनिक कंट्रोल सिस्टम को बेहतर करने और सैंपल एक्स्ट्रैक्शन और सैंपल प्रोसेसिंग को सुधारने में लगे हुए हैं। इस बीच, लैब में कुछ नमूनों की सफलतापूर्वक जांच कर ली गई है और आगे की जांच के लिए क्लिनिकल ह्यूमन सैंपल लिए जा रहे हैं। बताया जा रहा है कि इस प्रोजेक्ट से मिलते-जुलते एक दूसरे प्रोजेक्ट में फ्रॉनहोफर के ही वैज्ञानिकों ने इसी तकनीक से कई बैक्टीरियल स्ट्रेन में सफलतापूर्वक अंतर किया है। इसी दौरान, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के तहत विशेष रूप से विकसित अल्गोरिदम से उम्मीद लगाई गई है कि यह वीओसी फिंगरप्रिंट के आंकलन को सरल तरीके से समझने में मदद करेगा। अगर सबकुछ ठीक रहा तो नए आईओएन-मोबिलिटी स्पेक्ट्रोमीटर से एक दिन हवाई यात्रियों की सांस की जांच कर यह पता लगाया जा सकेगा कि वे कोरोना वायरस से संक्रमित हैं या नहीं।

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