वैज्ञानिकों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने एक ऐसा नॉन-इनवेसिव ब्लड टेस्ट विकसित किया है, जो किसी व्यक्ति में पांच अलग-अलग कैंसर का पता लगा सकता है, वह भी बीमारी के सामने आने से चार साल पहले। दावा है कि यह ब्लड टेस्ट पेट के कैंसर, भोजन नलिका के कैंसर, कोलोरेक्टल कैंसर, फेफड़ों के कैंसर और लिवर कैंसर का सालों पहले ही पता लगाने में सक्षम है। खबर के मुताबिक, 'पैनसीर' नामक इस टेस्ट ने ऐसे 91 प्रतिशत सैंपलों में कैंसर का पता लगाया है, जो उन लोगों से लिए गए थे, जिनमें इस बीमारी के लक्षण तक नहीं थे। बाद में एक से चार साल के अंदर उनके कैंसर से पीड़ित होने की पुष्टि हुई। वहीं, जो लोग सैंपलिंग के दौरान कैंसर से पीड़ित थे, उनमें इस टेस्ट ने 88 प्रतिशत सटीक परिणाम दिए। इसके अलावा जिन लोगों को कैंसर की बीमारी नहीं थी, उनमें इस टेस्ट से सटीक परिणाम देने की दर 95 प्रतिशत रही।

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इस शोध से जुड़े परिणाम दस सालों से भी ज्यादा समय से चल रहे अध्ययन में सामने आए हैं। चीन की फूडान यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने साल 2007 से लोगों के सैंपल लेना शुरू किया था। अगले कई सालों तक यह सिलसिला चलता रहा। इस अध्ययन से जुड़े शोधपत्र के लेखकों में से एक और यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया सैन डिएगो के बायोइंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर कुन झांग का कहना है कि इस प्रयास का मकसद हर साल होने वाली स्वास्थ्य जांचों में इस तरह के ब्लड टेस्ट करना है। उन्होंने कहा, 'फिलहाल हमारा फोकस उन लोगों की टेस्टिंग करने पर है, जिन पर, आनुवंशिक, आयु और अन्य कारणों के चलते (कैंसर होने का) खतरा ज्यादा है।'

वैज्ञानिक इस ब्लड टेस्ट को काफी ज्यादा महत्वपूर्ण मान रहे हैं। जानकार बताते हैं कि कैंसर का पता जितना जल्दी चलेगा, मरीज के बचने की संभावना भी उतनी ज्यादा होती है। इसमें देरी होने पर पीड़ित का बचना मुश्किल होता जाता है। ऐसे में पैनसीर ब्लड टेस्ट एक अभूतपूर्व भूमिका निभा सकता है। इसकी मदद से कैंसर ट्यूमर का जल्दी पता करके डॉक्टर उसे मरीज के शरीर से समय रहते हटा सकते हैं या उचित ड्रग्स से इलाज कर सकते हैं। यही कारण है कि फूडान यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता सिंगलेरा जेनोमिक्स नाम के एक स्टार्टअप की मदद से पैनसीर ब्लड टेस्ट को बाजार में लाने की कोशिश में लगे हुए हैं।

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हालांकि इन वैज्ञानिकों का साफ कहना है कि यह टेस्ट इस बात की भविष्यवाणी नहीं करता कि भविष्य में किसे कैंसर होने वाला है। बजाय इसके, यह परीक्षण केवल उन मरीजों की पहचान करता है, जिनमें में कैंसरकारी विकास हो चुका है, लेकिन मौजूदा डिटेक्शन मेथडों से उनकी पहचान नहीं हो पा रही है। टीम ने कहा कि टेस्ट की क्षमता की पुष्टि के लिए अभी और दीर्घकालिक अध्ययन किए जाने की जरूरत है ताकि यह पता लगाया जा सके कि यह कैंसर होने से कितना समय पहले पीड़ितों में इसका पता लगा सकता है।

साल 2007 से 2017 के बीच चले शोध से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें

  • यह शोध जानी-मानी मेडिकल पत्रिका नेचर कम्युनिकेशन के सहयोग से किया गया
  • दस सालों के अंतराल में एक लाख 20 हजार से ज्यादा लोगों के प्लाज्मा सैंपल लिए गए
  • शोध के दौरान हरेक प्रतिभागी ने सैंपल दिए और बार-बार नियमित जांच कराई
  • पूरे अध्ययन के दौरान 16 लाख से ज्यादा सैंपल इकट्ठा किए गए
  • किसी व्यक्ति के कैंसर पीड़ित होने के बाद उसके चार सालों के सैंपलों की जांच की गई
  • इस तरह उनमें कैंसर की शुरुआत होने का पता लगाया गया

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