कोशिकाओं के जेनेटिक कोड में बदलाव होने पर कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। इसी के चलते शरीर में कोशिकाएं असामान्य रूप से बढ़ने लगती हैं। अब सिंगापुर की नेशनल यूनिवर्सिटी के कैंसर साइंस इंस्टीट्यूट (सीएसआई) ने एक ऐसे प्रोटीन की खोज की है, जो भोजन नलिका, लिवर आदि प्रकार के कैंसरों को बढ़ाने का काम करता है। इस प्रोटीन का नाम है 'डीएपी3' (डेथ-एसोसिएटिड प्रोटीन 3)। कोशिकाओं में नए तरीके का बदलाव कर यह प्रोटीन एडीनोसिन-टू-इनोसिन (ए-टू-आई) नामक आरएनए एडिटिंग प्रक्रिया को दबा देता है। 

ए-टू-आई यह सुनिश्चित करता है कि जीन्स सही तरीके से व्यवहार कर रहे हैं या नहीं। शोधकर्ताओं के मुताबिक, इस आरएनए एडिटिंग में हस्तक्षेप कर डीएपी3 एक तरह से कैंसरकारी जीन की तरह काम करता है। इस नई खोज के बाद कैंसर के इलाज के लिए नए प्रकार की दवाएं बनने की संभावनाएं जताई जा रही है। जानकारों के मुताबिक, डीएपी3 को टार्गेट करने वाले ड्रग तैयार कर कैंसर के इलाज में नई प्रगति की जा सकती है। बता दें कि सीएसआई सिंगापुर के एक प्रमुख शोधकर्ता असिस्टेंड प्रोफेसर पोली चेन के नेतृत्व में किए गए इस शोध को बीते महीने वैज्ञानिक पत्रिका 'साइंस एडवांसेज' ने अपने एक अंक में प्रकाशित किया था।

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क्या है ए-टू-आई आरएनए एडिटिंग?
आरएनए यानी रीबोन्यूक्लिक एसिड हमारी कोशिकाओं के सबसे महत्वपूर्ण मॉलिक्यूल (अणु) होते हैं। ये हमारी जेनेटिक इन्फॉर्मेशन को डीएनए में स्टोर करने का काम तो करते ही हैं, साथ ही कई जैविक प्रक्रियाओं में अनेक प्रकार से जरूरी नियामक भूमिकाएं भी निभाते हैं। आरएनए एडिटिंग एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें डीएनए से निर्मित होने के बाद आरएनए में बदलाव किया जाता। यह प्रक्रिया आरएनए को एक संशोधित जीन प्रॉडक्ट बनाती है। ए-टू-आई इंसानों में होने वाली सबसे सामान्य आरएनए एडिटिंग प्रक्रिया है। इसमें एडीएआर1 और एडीएआर2 नामक प्रोटीन मध्यस्थ की भूमिका निभाते हैं।

बीते एक दशक के दौरान आए कई अध्ययनों में बताया गया है कि ए-टू-आई आरएनए एडिटिंग में होने वाले घातक बदलाव बड़ी संख्या में इकट्ठा होने पर शरीर की एक विशेष कोशिका को कैंसर पैदा करने के लिए भड़का सकते हैं। हालांकि, ए-टू-आई आरएनए प्रोसेस की इसमें क्या भूमिका होती है, इस संबंध में मौजूदा जानकारी अभी भी सीमित ही है। इसीलिए सीएसआई सिंगापुर की रिसर्च टीम ने डीएपी3 पर शोध करना शुरू किया, क्योंकि ए-टू-आई आरएनए एडिटिंग के दौरान एडीएआर प्रोटीन के साथ इसी प्रोटीन का इंटरेक्शन होता है। इसलिए कैंसरकारी कोशिकाओं को रेग्युलेट करने में इसकी भूमिका को जानना आवश्यक था।

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अध्ययन के दौरान टीम ने पाया कि डीएपी3 प्रोटीन एडीएआर2 प्रोटीन को इसके टार्गेट आरएनए से अलग कर देता है। इस कारण कैंसर पैदा करने वाली कोशिकाओं की ए-टू-आई आरएनए एडिटिंग में बाधा उत्पन्न होती है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह एक प्रकार का प्रतिबंध डीएपी3 के लिए कैंसर को बढ़ाने का एक जरिया हो सकता है। उन्होंने यह भी बताया कि यह प्रोटीन 17 अलग-अलग प्रकार के कैंसरों को और ज्यादा फैला सकता है। वहीं, आगे के प्रयोगों में पता चला कि भोजन नलिका से जुड़े कैंसर और लिवर कैंसर की कोशिकाओं में डीएपी3 कैंसरकारी वंशाणु की तरह काम करता है।

शोधकर्ताओं को यह भी पता चला कि कोशिकाओं में डीएपी3 प्रोटीन पीडीजेडडी7 नामक वंशाणु को टार्गेट करता है। इसकी एडिटिंग में बदलाव कर वह एक नया पीडीजेडडी7 प्रोटीन विकसित करता है, जो कैंसर ट्यूमर को बढ़ाने में डीएपी3 की मदद करता है। निष्कर्ष के रूप में वैज्ञानिकों ने कहा कि ए-टू-आई आरएनए एडिटिंग की जटिलता और डीएपी3 प्रोटीन, कैंसर के खिलाफ ड्रग विकसित करने की दिशा में महत्वपूर्ण और भरोसेमंद विषय हो सकते हैं। प्रोफेसर पोली चेन का मानना है कि इस जानकारी के सामने आने के बाद डीएपी3 और एडीएआर प्रोटीन के इंटरेक्शन में हस्तक्षेप कर कैंसर बढ़ाने वाली प्रक्रियाओं के बारे में जाना जा सकता है।

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